logo

ट्रेंडिंग:

भारत में नदी जल विवाद  क्यों होते हैं और क्या कहता है कानून?

भारत में नदी जल विवाद एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चला आ रहा है। इस आर्टिकिल में हम आपको बताएंगे कि इसको लेकर क्या कानून हैं और अब तक क्या हुआ है?

representational image inter state water dispute । Photo Credit: PTI

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

भारत में नदियां बहुतायत में हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत में नदियां शरीर में नसों की तरह फैली हैं। गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और ब्रह्मपुत्र जैसी विशाल नदियां देश की जीवनरेखा मानी जाती हैं। इन नदियों के पानी का उपयोग करोड़ों लोगों के पीने, सिंचाई, बिजली और उद्योगों में होता है। मगर जब ये नदी प्रणालियां दो या उससे अधिक राज्यों से होकर गुजरती हैं, तो उन राज्यों में नदी-जल के उपयोग और उसकी मात्रा के बंटवारे को लेकर मतभेद सामने आते रहते हैं। यह मतभेद कभी-कभी तो साधारण बातचीत और असहमति तक सीमित होते हैं और कभी कभी सुप्रीम कोर्ट और नदी न्यायाधिकरण तक पहुंच जाते हैं।

 

भारत में नदी-जल विवादों का मूल कारण यह है कि नदी का स्रोत या ऊपरी हिस्सा एक राज्य में है, तो उसका निचला हिस्सा दूसरे राज्य से होकर बहता है। यानी कि चूंकि नदी कई राज्यों से होकर बहती है इसलिए उसके जल के बंटवारे को लेकर विवाद भी होता है। उदाहरण के लिए कावेरी नदी कर्नाटक से होकर तमिलनाडु तक पहुंचती है तो कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच लंबे समय से इसका विवाद चला आ रहा है। इसी तरह कृष्णा नदी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच तनाव का मुद्दा है।

 

यह भी पढ़ेंः भाखड़ा नहर के पानी पर हरियाणा-पंजाब के उलझने की पूरी कहानी

 

हाल ही में ऐसा ही एक विवाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच देखने को मिला जिनके बीच गोदावरी के पानी को लेकर एक बार फिर से विवाद खड़ा हो गया है। तेलंगाना सरकार ने एक बिल पास किया जिसमें कहा गया कि वह आंध्र प्रदेश सरकार को एक बूंद पानी भी गलत तरीके से नहीं ले जाने देगी।

 

खबरगांव इस लेख में इसी बात की पड़ताल करेगा कि आखिर भारत में नदी जल के बंटवारे को लेकर क्या कानून है और इसे लेकर बार-बार विवाद क्यों होते हैं।

बनाए गए हैं विशेष कानून

इन विवादों का समाधान करने के लिए भारत में विशेष कानून और नदी न्यायाधिकरण स्थापित किए गए हैं। भारत का संविधान नदी-जल जैसे मुद्दों को 'राज्य सूची' और 'केंद्र सूची'  में स्थान देता है, ताकि केंद्र और राज्य मिलकर इसका समाधान खोज सकें। साथ ही, नदी-जल विवाद समाधान के लिए 1956 में बनाया गया विशेष कानून (Inter-State River Water Disputes Act, 1956) आज भी लागू है। यह कानून केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह नदी-जल विवादों को सुलझाने के लिए न्यायाधिकरण गठित कर सके।

भारत में नदी-जल विवाद क्यों होते हैं?

भारत में नदी प्रणालियां अलग-अलग राज्यों से होकर गुजरती हैं। जैसे गोदावरी नदी महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों से होकर गुजरती है। इसी तरह से कावेरी नदी कर्नाटक से शुरू होती है और तमिलनाडु से होते हुए समंदर में मिलती है। कर्नाटक पानी का उपयोग अपने राज्य में अधिक चाहता है जबकि नदी का उपयोग अपने राज्य में अधिक चाहता है, तो तमिलनाडु खुद के लिए ज्यादा पानी की मांग करता है।

जनसंख्या बढ़ने से मांग में बढ़ोत्तरी

भारत की जनसंख्या हर साल लगभग 1.1% की दर से बढ़ रही है, जिसकी वजह से पानी की मांग में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसकी वजह से हर राज्य अपने लिए ज्यादा से ज्यादा पानी चाहते हैं।

सिंचाई और जलवायु परिवर्तन

कृषि और उद्योग नदी-जल के सबसे बड़े उपयोगकर्ता हैं। जब दोनों राज्य अपनी ज़रूरतें पूरी करने की मांग करते हैं तो मतभेद पैदा होते हैं। बदलते मौसम के कारण कई राज्य में सूखे की स्थिति देखनी पड़ती है ऐसी स्थिति में बढ़ती पानी की मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा नदियों के पानी की मांग बढ़ती है। वर्षा का नियत समय पर न होना और और उसकी अनिश्चितता भी नदी जल विवाद को बढ़ावा देती है।

 

यह भी पढ़ें: पानी पर भिड़े हरियाणा-पंजाब के CM, मान बोले, 'एक बूंद नहीं दे सकते'

कानून क्या है?

भारत में नदी-जल विवाद सुलझाने के लिए कई कानून हैं जिनके आधार पर विवादों का निपटारा किया जाता है-

 

इंटर-स्टेट रिवर वाटर डिस्प्यूट्स ऐक्ट, 1956 

भारत में अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों को सुलझाने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम केंद्र सरकार को राज्यों के बीच नदी जल बंटवारे से संबंधित विवादों को हल करने के लिए एक व्यवस्थित ढांचा प्रदान करता है।

 

इस अधिनियम के तहत, जब दो या अधिक राज्य नदी जल के बंटवारे पर सहमत नहीं हो पाते, तो कोई भी राज्य केंद्र सरकार से विवाद के समाधान के लिए अनुरोध कर सकता है। केंद्र सरकार एक ट्रिब्यूनल का गठन करती है, जिसमें उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होते हैं। ट्रिब्यूनल दोनों पक्षों की सुनवाई कर, वैज्ञानिक और तकनीकी आधार पर जल बंटवारे का निर्णय देता है। इसका निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है, हालांकि सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

 

उदाहरण के लिए, कावेरी और गोदावरी जैसे नदी जल विवादों में इस अधिनियम का उपयोग हुआ है। यह कानून जल संसाधनों के उचित बंटवारे को सुनिश्चित करता है, लेकिन समय-समय पर इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं, क्योंकि ट्रिब्यूनल के गठन और निर्णय में देरी आम है। कावेरी नदी न्यायाधिकरण (Cauvery Water Disputes Tribunal) 1990 में स्थापित हुआ।  कृष्णा नदी न्यायाधिकरण (Krishna Water Disputes Tribunal) 1969 में स्थापित किया गया।

 

संविधान का अनुच्छेद 262

भारत का संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 262, अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों के समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह केंद्र सरकार को नदियों और नदी घाटियों के जल के उपयोग, वितरण और नियंत्रण से संबंधित विवादों को हल करने की शक्ति प्रदान करता है। अनुच्छेद 262(1) के तहत, संसद को ऐसे विवादों के लिए कानून बनाने का अधिकार है, और इसके तहत इंटर-स्टेट रिवर वाटर डिस्प्यूट्स ऐक्ट, 1956 बनाया गया। यह अधिनियम ट्रिब्यूनल के गठन की प्रक्रिया को परिभाषित करता है, जो विवादों का निपटारा करता है।

 

अनुच्छेद 262(2) में प्रावधान है कि संसद कानून बनाकर यह सुनिश्चित कर सकती है कि अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों पर सर्वोच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय का क्षेत्राधिकार सीमित हो। इसका उद्देश्य विवादों को तेजी से और विशेषज्ञता के साथ हल करना है, ताकि लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं से बचा जा सके।

हालांकि, ट्रिब्यूनल के निर्णयों को लागू करने में देरी और राज्यों के बीच राजनीतिक तनाव चुनौतियां पैदा करते हैं। फिर भी, अनुच्छेद 262 जल संसाधनों के समन्यायिक प्रबंधन के लिए एक संवैधानिक ढांचा प्रदान करता है, जो देश की कृषि और आर्थिक जरूरतों के लिए आवश्यक है।

 

यह भी पढ़ें: दीघा मंदिर पर ओडिशा और पश्चिम बंगाल में ठन क्यों गई? इनसाइड स्टोरी

भारत के प्रमुख जल-विवाद

भारत में अंतर-राज्यीय नदी जल बंटवारे को लेकर कई राज्यों के बीच विवाद है। पहला, कावेरी जल विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच लंबे समय से चला आ रहा है, जिसमें कावेरी नदी के जल बंटवारे और डेल्टा क्षेत्र की सिंचाई जरूरतों को लेकर तनाव है। कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन 1990 में हुआ, लेकिन निर्णयों का कार्यान्वयन विवादास्पद रहा। दूसरा, यमुना जल विवाद उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के बीच जल बंटवारे को लेकर है, विशेष रूप से पेयजल और सिंचाई के लिए। तीसरा, गोदावरी जल विवाद महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों के बीच जल उपयोग को लेकर है। चौथा, नर्मदा जल विवाद मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के बीच नर्मदा नदी के जल और बांधों के लाभों के बंटवारे को लेकर रहा है, जिसे नर्मदा ट्रिब्यूनल ने हल किया। पांचवां, कृष्णा जल विवाद कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल बंटवारे पर केंद्रित है। इन विवादों को हल करने के लिए इंटर-स्टेट रिवर वाटर डिस्प्यूट्स ऐक्ट, 1956 के तहत ट्रिब्यूनल गठित किए गए हैं, लेकिन अभी तक पूरी तरह से इसका समाधान हो नहीं पाया है।

 

Related Topic:

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap