तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने स्थानीय निकायों में पिछड़ा वर्ग को 42 फीसद आरक्षण देने के मामले में कोई राहत नहीं दी है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने प्रदेश सरकार की याचिका को भी खारिज कर दिया। दरअसल, तेलंगाना की सरकार ने स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्ग को 42 फीसद आरक्षण देने का आदेश जारी किया था।
26 सितंबर को कुछ लोगों ने सरकारी आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। इसमें कहा गया कि पिछड़े वर्गों को 42 प्रतिशत कोटा देने से स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण 67 प्रतिशत हो जाएगा। उनका दावा था कि यह न्यायालय से निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है। अपने आदेश में तेलंगाना हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी और 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
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इस बीच तेलंगाना सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 9 अक्टूबर को याचिका दाखिल की। गुरुवार यानी 16 अक्तूबर को न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने तेलंगाना सरकार को झटके देते हुए याचिका खारिज कर दिया।
तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम में तर्क दिया कि स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी को 42 फीसद आरक्षण देना नीतिगत फैसला है। शीर्ष अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तेलंगाना सरकार का पक्ष रखा। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक सिंघवी ने तर्क दिया, 'सभी दलों की सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव इस नीति का समर्थन करता है। बिना दलीलों के इस पर रोक कैसे लगाई जा सकती है? शुरुआती कुछ पन्नों को छोड़कर रोक लगाने की कोई वजह नहीं बताई गई है।'
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सिंघवी ने आगे कहा, 'ये लोग कौन होते हैं, जो बिना किसी दलील के इस पर रोक लगा रहे हैं, जब विधायिका ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया है। 50 फीसद तक आरक्षण की सीमा पर उन्होंने तर्क दिया, 'यह गलत धारणा है कि इंदिरा साहनी मामले में 50 फीसद की सीमा तय की गई थी। फैसला असाधारण परिस्थितियों में उल्लंघन की अनुमति देता है। सरकारी आदेश को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने हाई कोर्ट के फैसले का बचाव किया।