महाराष्ट्र सरकार ने तीन-भाषा नीति को मंजूरी दी है। अब कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के तौर पर चुना गया है। दक्षिण भारतीय राज्य, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के खिलाफ मोर्चा खोल बैठे हैं, ऐसे में नए फैसले से महाराष्ट्र में भी सियासी हंगामा बरपा है। इस फैसले की वजह से विपक्षी दलों को एक नया मुद्दा मिल गया है। भाषा और मराठा मानुष की सबसे उग्र राजनीति करने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे ने इस पर बेहद कड़ा रुख अख्तियार किया है।
सिर्फ राज ठाकरे ही नहीं, उनके चचेरे भाई और बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे भी इस नई नीति से बेहद नाराज हैं। उनके पिता भी मराठी भाषा और स्थानीयता की राजनीति करते थे, अब ठाकरे बंधु भी इस नीति के खिलाफ मुखर हो गए हैं। महा विकास अघाड़ी की एक और सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने भी तीन भाषा नीति का विरोध किया है। मनसे, शिवसेना (UBT) और कांग्रेस का कहना है कि स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाना गलत है।
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क्यों ज्यादा शोर मचा है?
महाराष्ट्र में निकाय चुनाव होने वाले हैं। मुंबई में बीएमसी इलेक्शन पर पूरे देश की नजर है। यहां पहले ही मराठी बनाम गैर मराठी की राजनीति हावी रही है। राज ठाकरे भले ही राज्य के स्तर राजनीति में कमजोर साबित हुए हों लेकिन स्थानीय स्तर पर उनके कार्यकर्ता बेहद सक्रिय हैं। भारतीय जनता पार्टी का रुख साफ है। बीजेपी बेहद सधे कदमों से अपनी भाषा नीति पर काम करना चाहती है, जिससे हंगामा न बरपे और काम भी हो जाए। बीजेपी खुद को मराठी विरोधी नहीं दिखाना चाहती है।
दक्षिण जैसा विरोध नहीं चाहती है बीजेपी
बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित राज्यों में से एक महाराष्ट्र भी है। प्रचंड बहुमत से बीजेपी और गठबंधन के दल सत्ता में हैं लेकिन हर कदम संभालकर बीजेपी चलना चाह रही है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि महाराष्ट्र में हर व्यक्ति को मराठी भाषा आनी चाहिए लेकिन उन्होंने पूरे देश में एक सामान्य भाषा के रूप में हिंदी को उपयोगी बताया। उन्होंने सलाह दी कि हिंदी भाषा सीखनी चाहिए।
महाराष्ट्र के लोगों को कितनी रास आती है हिंदी?
दक्षिण भारतीय राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में हिंदी की स्वीकार्यता ज्यादा है। राज्य में हिंदू बोलने वाले बड़ी संख्या में हैं। विदर्भ और मराठवाड़ा इलाकों में हिंदी उतनी ही सामान्य है, जितनी कि मराठी। मुंबई में बॉलीवुड है, जिसकी मुख्य भाषा ही हिंदी है। हिंदी सिनेमा का तीर्थ ही महाराष्ट्र है।
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विपक्ष को ऐतराज क्या है?
महाराष्ट्र के ज्यादातर लोगों का कहना है कि उन्हें ऐतराज हिंदी से नहीं, हिंदी की तुलना में मराठी की पहचान खत्म करने को लेकर है। महाराष्ट्र में लोगों की मांग है कि मराठी संस्कृति को कमजोर न किया जाए। महाराष्ट्र में मराठा मानुष की राजनीति भी चुनावी मुद्दे में तब्दील होती रही है।
महाराष्ट्र में भाषा का इतिहास क्या है?
साल 1950 के दशक में 'संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन' शुरू हुआ था। आंदोलन का मकसद तत्कालीन बॉम्बे राज्य से अलग होकर एक मराठी भाषी राज्य बनाना था। तब इस राज्य में आज का गुजरात और कर्नाटक के कुछ हिस्से शामिल थे। यह आंदोलन महाराष्ट्र की मराठी पहचान को स्थापित करने की लड़ाई थी।
कैसे भाषा के आधार पर बंटा बॉम्बे?
1960 में, संसद ने बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम पारित किया, जिसके तहत 1 मई 1960 से गुजरात और महाराष्ट्र दो अलग राज्य बने। गुजरात को बॉम्बे राज्य के कुछ हिस्से मिले और बाकी हिस्सा महाराष्ट्र बना। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई बनी। साल 1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी। इस पार्टी का मकसद ही मराठी मानुष की संकल्पना थी। उनकी पार्टी का उभार, इसी स्थानीयता की वजह से हुआ था।
बाल ठाकरे का दावा था कि दक्षिण भारतीय और गुजराती लोग बैंक की नौकरियों और व्यवसायों में हावी हो रहे हैं। शिवसेना का इतिहास हिंसक रहा है। बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी ने एक जमाने में दक्षिण भारतीयों और फिर उत्तर प्रदेश-बिहार के लोगों के खिलाफ आंदोलन किए। शिवसेना ने दुकानों, बैंकों और सरकारी दफ्तरों में मराठी अनिवार्य की। इसी राजनीति पर बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे की पार्टी मनसे की राजनीति चल रही है। अलग बात है कि उनका महाराष्ट्र में अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (UBT) जितना जनाधार नहीं है। वह दहाई भी नहीं पहुंच पाते हैं।
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क्या चाहते हैं MVA दल?
शिवेसेना (UBT) समेत अन्य दलों का कहना है कि केंद्र सरकार महाराष्ट्र के साथ भेदभाव करती है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी यही कहते हैं। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के नेता सुरेश जोशी ने हाल ही में कहा था कि मुंबई में एक भाषा नहीं है, मराठी सीखना अनिवार्य नहीं है। उनके इस बयान की वजह से हंगामा बरपा था। महा विकास अघाड़ी के दलों ने इसका विरोध किया था।
अब सरकार ने फैसला किया है कि अगले साल से स्कूलों में हिंदी तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य होगी। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह मराठी भाषा और महाराष्ट्र की पहचान पर हमला है। कांग्रेस और मनसे ने भी इसे केंद्र की साजिश बताया। हाल ही में, नवी मुंबई में मनसे कार्यकर्ताओं और छात्रों ने इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया। मनसे के कार्यकर्ताओं ने अनिवार्य हिंदी को लेकर मारपीट भी की थी।