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10 साल में कितनी स्मार्ट सिटी बन गईं? आंकड़ों से समझ लीजिए

साल 2015 में जब स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट शुरू किया गया था तब 5 साल में 100 शहरों को विकसित किया जाना था। इन 10 सालों में क्या-क्या हुआ है, उसका लेखा-जोखा सरकार ने बताया है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo: Freepik

साल 2014 में चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी की छवि 'विकास पुरुष' की थी। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी जीत में गुजरात में किए गए काम भी एक अहम वजह रहे। सीएम के बाद पीएम बनने वाले नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर इसी विकास को फैलाने के लिए साल 2015 में 'स्मार्ट सिटी मिशन' की शुरुआत की। 25 जून 2015 को शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के तहत जितना बजट रखा गया, वह 5 साल में खर्च होना था लेकिन लगभग 10 साल पूरे होने वाले हैं और अभी भी कुछ काम बाकी हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की दिशा में शुरू किया गया काम आज भी जारी है और कुछ शहरों की तस्वीर बदली भी है। कुछ शहर ऐसे भी हैं जो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत मिले पैसों का इस्तेमाल भी सही से नहीं कर पाए हैं।

 

हाल ही में स्मार्ट सिटी को लेकर केंद्र सरकार से कई सवाल पूछे गए। संसद में समाजवादी पार्टी के सांसद आनंद भदौरिया, तृणमूल कांग्रेस की सांसद माला रॉय और बीजेपी की सांसद रूपकुमारी चौधरी ने संसद में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जुड़े सवाल पूछे। इन सवालों के जो जवाब दिए गए उनके आधार पर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की हकीकत सामने आई है। आइए डेटा के आधार पर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की असलियत समझते हैं...

क्या है स्मार्ट सिटी योजना?

 

शहरों में मूलभूत सुविधाएं सुविधाएं सुनिश्चित करने, उन्हें आधुनिक सुविधाओं से लैस करने और अन्य मानदंडों पर खरा उतारने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई। योजना के नाम में भी स्पष्ट है कि शहरों को स्मार्ट बनाना है। योजना की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि अधिकारी और अन्य जिम्मेदार लोग नागरिकों को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाएंगे तो आगे बढ़ने में कोई रुकावट नहीं आई थी। 25 जून 2015 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा था, 'स्मार्ट सिटी का मकसद जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है। शहर का विकास ऐसा हो कि हम गांव को साथ लेकर चलें। स्मार्ट सिटी में शहरों को स्मार्ट बनाने का निर्णय सरकार नहीं, वहां के नागरिक करेंगे। यह प्लान सरकार को दिया जाएगा और उसी के हिसाब से निर्माण होगा।'

 

कहां है इस योजना का फोकस?

 

इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए 6 मुख्य पैरामीटर रखे गए थे। योजना बनाने में जनता की भूमिका, कम संसाधन से ज्यादा नतीजे, आपसी सहयोग, टेक्नोलॉजी, कनवर्जेंस और इनोवेशन पर खास ध्यान देते हुए इस योजना के तहत काम किया जाता है। इस योजना के तहत स्वास्थ्य, शिक्षा, ट्रांसपोर्ट, स्ट्रीटलाइट, जल सप्लाई, सॉलिड वेस्ट मैनजेटमेंट, पब्लिक सेफ्टी और आवासीय योजना संबंधी काम किए जाते हैं।

 

 

इसको और आसान भाषा में समझें तो तारों के जंजाल से मुक्ति दिलाकर अंडरग्राउंड बिजली पहुंचाना, साइकिल से लेकर ट्रक तक के चलने के लिए उपयुक्ति सड़कें बनाना, बेघर लोगों को घर मुहैया कराना, सार्वजनिक स्थल विकसित करना, स्कूलों में पर्याप्त क्लासरूम और डिजिटल लाइब्रेरी का इंतजाम करना, स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करना और स्किल डेवलपमेंट संबंधी योनजाएं बेहतर कराने जैसे काम किए जा रहे हैं। इन कामों पर नजर रखने के लिए इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (ICCC) बनाए गए हैं।  

स्मार्ट सिटी की परिभाषा क्या है?

 

स्मार्ट सिटी जैसा नाम सामने आने पर लोग तरह-तरह से स्मार्ट सिटी की कल्पना कर सकते हैं। यही वजह है कि सांसद आनंद भदौरिया ने सरकार से ही पूछा कि आखिर स्मार्ट सिटी की परिभाषा क्या है? इस पर आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री तोखन साहू ने जवाब दिया, 'स्मार्ट सिटी की कोई स्पष्ट और सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। अलग-अलग लोगों के लिए इसके अलग-अलग मायने हैं। अलग शहर और अलग देश के लिए इसका सिद्धांत अलग है। शहरों की मूलभूत सुविधाओं को सुधारना और वहां के लोगों को बेहतर जीवन देना ही प्रोजेक्ट का मकसद है।'

 

सरकार ने आगे बताया है कि इस योजना के तहत लोगों के पैदल चलने के लिए फुटपाथ बनाना, खाली पड़ी जगहों का सही इस्तेमाल करना, ट्रांसपोर्ट के बेहतर जरिए बनाना, सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना और अन्य सुविधाएं देना भी स्मार्ट सिटी मिशन का हिस्सा है।

आंकड़ों से समझिए

 

भारत सरकार की ओर से दिए गए जवाब के मुताबिक, 100 स्मार्ट सिटी बनाने के लिए स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) कुल 48 हजार करोड़ का बजट रखा गया। 15 नवंबर 2025 तक इसमें से 47,225 करोड़ रुपये राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को जारी किए जा चुके हैं। इसमें 44,626 करोड़ रुपये खर्च भी किए जा चुके हैं। ये सारे पैसे यानी कुल 94 पर्सेंट पैसे केंद्र सरकार के हिस्से के हैं। 

 

 

15 नवंबर 2024 तक कुल 8066 वर्क ऑर्डर जारी किए गए हैं। यानी इतने अलग-अलग काम किए जाने हैं या इसमें से कई काम हो भी चुके हैं। उदाहरण के लिए अगर एक जगह पर स्ट्रीट लाइट लग रही है तो वह एक वर्क ऑर्डर हुआ, एक जगह सड़क बन रही है तो वह दूसरा वर्क ऑर्डर हुआ। इस तरह अब तक 8066 वर्क ऑर्डर जारी किए गए हैं। इसमें से 7352 वर्क ऑर्डर पूरे भी हो गए हैं। इतने काम के लिए कुल 1,64,669 करोड़ रुपये खर्च होने थे जिसमें से 1,47,336 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। यानी 91 पर्सेंट काम हो चुका है।

 

100 में से 13 शहर ही ऐसे हैं जिनमें स्मार्ट सिटी मिशन के तहत जो काम शुरू हुए वे पूरे भी कर लिए गए गए। 100 में से 48 शहर ऐसे हैं जहां 90 पर्सेंट काम हो चुका है। 23 शहर ऐसे हैं जहां 75 पर्सेंट काम पूरा हो चुका है। बाकी के 16 शहरों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।  कुल 17303 करोड़ रुपये की लागत वाले 714 प्रोजेक्ट का काम अभी जारी है। इसी जवाब में यह भी बताया गया है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के अनुरोध पर स्मार्ट सिटी मिशन की डेडलाइन 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दी गई है।

क्यों होती है देरी?

 

आंकड़े स्पष्ट बता रहे हैं कि जो काम 91 पर्सेंट पूरा हुआ है उसे 5 साल में होना था लेकिन 10 साल में भी खत्म नहीं हो पाया है। सरकार ने बताया है कि कानूनी विवाद, अलग-अलग विभागों की ओर से होने वाली देरी, भूमि अधिग्रहण में लगने वाला समय, पहाड़ी इलाकों में होने वाले निर्माण में लगने वाला समय और छोटे शहरों में संसाधन उपलब्ध कराने वाले वेंडरों की कमी के चलते इन कामों में देरी हुई है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि भूमि जैसे मामले राज्य सरकार के अधीन आते हैं और शहरों की योजना जैसे काम स्थानीय निकायों के जिम्मे होते हैं, ऐसे मामलों की वजह से भी कुछ कामों में देरी होती है।

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