क्या है मेवाड़ के उस राज परिवार की कहानी, जहां हो गया झगड़ा
कभी दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले महाराणा प्रताप के वंशज अब आपस में लड़ रहे हैं। वजह संपत्ति और राजगद्दी पर कब्जा है और चर्चा में इस बार चाचा-भतीजे हैं। आइए पूरा मामला समझते हैं।

महेंद्र सिंह मेवाड़ (File Photo)
मेवाड़ का सिटी पैलेस इन दिनों महाराणा प्रताप के वंशजों की रणभूमि बना हुआ है। इस बार संघर्ष चाचा और भतीजे का है। रोचक बात यह है कि यही मेवाड़ राजघराना कभी बाप-बेटे के मुकदमे की वजह से भी चर्चा में आ चुका है। भाई-भाई में संपत्ति को लेकर संघर्ष हुआ है। मां के खिलाफ बेटे ने अदालत में केस किया है और बहन से संपत्ति को लेकर झगड़ा हुआ है। यह कहानी मेवाड़ के उसी राज परिवार की है जिसे शूरवीर महाराणा प्रताप के वंशजों का परिवार कहा जाता है। ताजा मामला ताजपोशी से जुड़ा है और इस बार चर्चा का केंद्र बने हैं नए दीवान की गद्दी संभालने जा रहे विश्वराज सिंह मेवाड़। वही विश्वराज सिंह जो राजस्थान की नाथद्वारा विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक भी हैं।
परिवार शाही है, घराना ऐतिहासिक है और संपत्ति अपार है। ये तीन वजहें पर्याप्त हैं कि आने वाली पीढ़ियों में पर्याप्त विवाद होता रहे। यह विवाद आज से नहीं कई दशकों से हो रहा है और ताजपोशी पर तो इसको अपने चरम पर आना ही था। इस विवाद का एक सिरा महाराणा भगवत सिंह के जमाने से ही शुरू होता है। महाराणा भगवत सिंह यानी महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह के पिता। महेंद्र सिंह दिवंगत हो चुके हैं और वही विश्वराज सिंह के पिता थे। अरविंद सिंह जीवित हैं और वह विश्वराज सिंह के चाचा हैं। कई बार चर्चा में आने वाले युवराज लक्ष्यराज सिंह, इन्हीं अरविंद सिंह मेवाड़ के बेटे हैं।
क्यों शुरू हुआ विवाद?
संपत्ति को लेकर लड़ाई का बीज बोने की शुरुआत 1963 से 1983 के बीच होती है। महाराणा भगवत सिंह ने इन 20 सालों में राजघराने की कई ऐतिहासिक धरोहरों को लीज पर दिया। कुछ को बेच भी दिया। फतह प्रकाश, गार्डन होटल, सिटी पैलेस म्यूजियम, जग मंदिर, लेक पैलेस जैसी प्रॉपर्टी भी इनमें शामिल थीं। भगवत सिंह के इस फैसले के चलते ये प्रॉपर्टी एक कंपनी को मिल गईं। यही वह फैसला था जिसने महेंद्र सिंह मेवाड़ को अपने ही पिता के खिलाफ कोर्ट जाने को मजबूर कर दिया। साल 1983 में महेंद्र सिंह मेवाड़ ने कोर्ट में अपील दायर करके कहा कि पैतृक संपत्ति को सब में बराबर बांट दिया जाए। इसमें रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर प्रथा वाली संपत्तियों को छोड़ा जा सकता है।
#WATCH | Udaipur, Rajasthan: BJP MLA from Rajsamand and newly crowned Maharana of Mewar, Vishvaraj Singh Mewar and his supporters camp outside the City palace after they were stopped from entering the palace.
— ANI (@ANI) November 25, 2024
Vishvaraj Singh Mewar, the 77th Maharana of Mewar had a stand-off with… pic.twitter.com/zRASFAoKfI
बेटे ने मुकदमा किया तो पिता नाराज हो गए। उन्होंने अदालत में कहा कि यह प्रॉपर्टी अविभाज्य है यानी इसे बांटा नहीं जा सकता है। 1984 में उन्होंने एक वसीयत कर दी और अपने छोटे बेटे यानी अरविंद सिंह मेवाड़ को संपत्तियों को एग्जीक्यूटर बना दिया। यहां से विवाद और गहरा गया। यहां यह भी जानना जरूरी है कि रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर को आजादी के बाद लागू किया गया था जो यह कहता है कि राजा का बड़ा बेटा ही राजा होगा और संपत्ति उसी की होगी। बड़े बेटे महेंद्र सिंह थे लेकिन भगवत सिंह ने छोटे बेटे के नाम वसीयत करके मामले को और उलझा दिया।
भाइयों का झगड़ा
1984 के मई महीने में यह वसीयत की गई थी और नवंबर में भगवत सिंह का निधन हो गया। उनकी वसीयत के मुताबिक, अरविंद सिंह मेवाड़ खुद को महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन का अध्यक्ष बताते हैं। ज्यादातर संपत्तियों का प्रबंधन यही ट्रस्ट करता है। विश्वराज सिंह को रोकने के बारे में भी अरविंद सिंह की दलील यही है कि विश्वराज इस ट्रस्ट के सदस्य ही नहीं हैं। महेंद्र सिंह 76वें दीवान थे लेकिन अरविंद सिंह मेवाड़ भी खुद को 76वां दीवान बताते हैं। उनके हिस्से का इतिहास बताने वाली एक वेबसाइट पर लिखा गया है कि महेंद्र सिंह यानी बड़े बेटे ने स्वेच्छा से सबकुछ छोड़ दिया था।
महेंद्र सिंह मेवाड़ की ओर से दायर किए गए मुकदमे में साल 2020 में उदयपुर कोर्ट ने फैसला सुनाया। इस फैसले के मुताबिक, राजघराने की संपत्ति को चार हिस्से में बांटा जाना था। चार हिस्सा यानी एक हिस्सा भगवत सिंह और तीन हिस्सा उनके दो बेटों और एक बेटी का होगा। हालांकि, फैसला आने तक भगवत सिंह का निधन हो चुका था। इसी आदेश में यह भी कहा गया कि राजपरिवार के मुख्य निवास यानी शंभू निवास पैलेस में पहले चार साल महेंद्र सिंह मेवाड़, फिर चार साल योगेश्वरी कुमारी और फिर अरविंद सिंह मेवाड़ बारी-बारी से रहेंगे। साथ ही, जिस संपत्ति को बेचा नहीं गया है उसका व्यावसायिक इस्तेमाल फिलहाल नहीं किया जाएगा। जब यह फैसला आया तब शंभू निवास पैलेस में अरविंद सिंह मेवाड़ रह रहे थे। मौजूदा समय में भी इस पर उन्हीं का कब्जा है।
यह मामला फिलहाल हाई कोर्ट में चल रहा है। साल 2022 में राजस्थान हाई कोर्ट ने जिला अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी। फैसले पर रोक लगने का नतीजा यह हुआ कि मामले का अंतिम निर्णय आने तक के लिए विवादित स्थलों पर अरविंद सिंह मेवाड़ का ही अधिकार रहेगा। यही वजह है कि अब अरविंद सिंह और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह का परिवार उदयपुर स्थित सिटी पैलेस में रहता है। वहीं, विश्वराज सिंह का परिवार सिटी पैलेस से बाहर समोर बाग में बने दूसरे महल में रहता है। यानी 4-4 साल बारी-बार से शंभू निवास पैलेस में रहने वाला फैसला फिलहाल लागू नहीं है।
लक्ष्यराज सिंह कौन हैं?
सोशल मीडिया और यूट्यूब वीडियो में खूब दिखने वाले लक्ष्यराज सिंह अरविंद सिंह के बेटे हैं। उनकी पत्नी निवृत्ति कुमार ओडिशा से हैं। वह ओडिशा के डिप्टी सीएम कनक वर्धन सिंह देव और बलांगीर से सांसद संगीता कुमारी की बेटी हैं। यह वही लक्ष्यराज सिंह है जिनके निमंत्रण पर अक्तूबर 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का दौरा हुआ था और विश्वराज सिंह के परिवार ने इस पर ऐतराज जताया था।

भगवत सिंह मेवाड़ कौन थे?
महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह मेवाड़ के पिता भगवत सिंह मेवाड़ ही वह शख्स थे जिन्होंने साल 1969 में महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन की स्थापना की थी। उन्होंने सिटी पैलेस का कुछ हिस्सा इसी ट्रस्ट पैलेस को दान में दे दिया था। वह एक क्रिकेटर के रूप में भी मशहूर थे और राजस्थान की रणजी क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। उनके बारे में एक और चर्चित तथ्य यह है कि वह महाराजा भोपाल सिंह के नहीं महाराजा संग्राम सिंह द्वितीय के पुत्र थे। महाराजा भोपाल सिंह ने उन्हें गोद लिया और उन्हें ही अपना वारिस बनाया।
क्या है मेवाड़ राज परिवार की कहानी?
साल 568 में इस राजघराने की शुरुआत होती है। बप्पा रावल ने इस राजघराने के तमाम नियम-कायदे तय किए और यह भी बताया कि इसी के मुताबिक यह राजघराना चलेगा। यहीं से यह भी तय हुआ कि राजघराने का मुखिया राजा के तौर पर नहीं, एक दीवान के तौर पर राज्य चलाएगा। साथ ही, एकलिंगनाथ भगवान को मेवाड़ का आराध्य माना गया। तब से अब तक 76 दीवान इस राजपरिवार को आगे बढ़ाते रहे हैं। महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविंद सिंह मेवाड़ दोनों ही खुद को 76वां दीवान बताते रहे हैं। 76वें दीवान से ही शुरू हुई लड़ाई अब 77वें के दौरान भी जारी है।
मेवाड़ साम्राज्य मुख्य रूप से नागड़ा से शुरू होता है जिसकी पहाड़ियों पर एकिंलगनाथ जी का मंदिर है। दूसरी मुख्य जगह अहार रही है जो उदयपुर के पूर्व में स्थित है। यह मेवाड़ के राजनीतिक केंद्र के रूप में चर्चित रहा है। तीसरा केंद्र चित्तौड़ है जो इस साम्राज्य की राजनीति और कारोबार का केंद्र रहा है। कुंभलगढ़, गोगुंडा, चावंद और उदयपुर सैकड़ों साल से इस साम्राज्य के केंद्र रहे हैं और आज भी इन्हें मेवाड़ राजघराने की वजह से जाना जाता है।
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