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वैज्ञानिक सुब्बन्ना अय्यप्पन की मौत, लापता थे, कावेरी नदी में लाश मिली

वैज्ञानिक डॉ. सुबन्ना अय्यप्पन मैसूर से 7 मई को लापता हो गए थे। परिवार ने इसी दिन गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

Subanna Ayyapan

कृषि में योगदान के लिए डॉ. सुबन्ना अय्यप्पन को पद्म पुरस्कार। (Photo Credit: Rashtrapati Bhavan)

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ. सुबन्ना अय्यपन नहीं रहे। वह देश के मशहूर कृषि वैज्ञानिक रहे हैं। वह कुछ दिन पहले लापता हुए थे, अब उनकी कर्नाटक के मांड्या में कावेरी नदी के तट पर लाश मिली है। उनके घरवालों ने 7 मई को ही विद्यारण्यपुरम पुलिस स्टेशन में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दायर कराई थी। पुलिस ने कहा कि एक शख्स ने उनकी लाश नदी के पास सड़ी-गली हातल में देखी। शख्स ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने कहा कि यह डॉ. अय्यप्पन ही हैं। एक बाइक भी उनकी लाश के पास मिली है। 

पुलिस को शक है कि डॉ. सुबन्ना अय्यपन खुदकुशी की है। उनकी उम्र 69 साल थी। पुलिस केस की छानबीन में जुटी है। पुलिस मौत की दूसरी वजहों के बारे में जांच कर रही है। केआर अस्पताल में लाश का पोस्टमार्टम हुआ है, पूरी रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है। पुलिस हर नजरिए केस की जांच कर रही है।
 
कौन थे डॉ. अय्यप्पन?
डॉ. अय्यप्पन का जन्म 10 दिसंबर 1955 को चामराजनगर जिले के यलंदूर में हुआ था। उन्होंने मंगलुरु से मत्स्य विज्ञान में स्नातक और मास्टर डिग्री हासिल की। उन्होंने बेंगलुरु के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की। उन्होंने देश में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया।

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डॉ. अय्यप्पन ने भारत की नीली क्रांति (ब्लू रिवोल्युशन) को बढ़ावा देने में अहम योगदान दिया। यह क्रांति मछली पालन से संबंधित थी। सरकार ने उनके उल्लेखनीय काम के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। वह नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लैबोरेटरीज (NABL) के मौजूदा अध्यक्ष भी थे।

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ये हैं उपलब्धियां
डॉ. अय्यप्पन ने भुवनेश्वर में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA) और मुंबई में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन (CIFE) के निदेशक के रूप में काम किया। वे हैदराबाद में नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड (NFDB) के पहले चीफ एग्जीक्युटिव थे। बाद में, उन्होंने भारत सरकार के कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) में सचिव के रूप में भी काम किया। वह इंफाल में सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (CAU) के कुलपति भी रह चुके थे। 

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