सुप्रीम कोर्ट ने दत्तक पुत्र और दत्तक माता-पिता से जुड़े एक मामले में दोनों पक्षों के संपत्ति संबंधी अधिकारों की व्यख्या की है। महेश बनाम संग्राम और अन्य से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दत्तक पुत्र वाली विधवा मां का उसकी संपत्ति पर गोदनामे के बाद भी पहले जैसे ही अधिकार होते हैं।
द हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 की धारा 14 (1) कहती है कि अगर कोई विवाहित व्यक्ति संतान गोद लेता है तो उसकी पत्नी, दत्तक बेटे की मां समझी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि गोद लिया हुआ बच्चा, मां-बाप के संपत्ति पर गोदनामे के पहले से मौजूद अधिकारों को खत्म नहीं करता है।
किस केस के संदर्भ में कोर्ट ने ऐसा कहा?
साल 1982 में भावकन्ना शहापुरकर की मौत हुई थी। उनकी संपत्तियां उनकी दो पत्नियों में बंट गई। पहली पत्नी पवित्राबाई थीं वहीं दूसरी का नाम लक्ष्मीबाई थीं। दोनों में सुलह-समझौते के मुताबिक ही संपत्ति बंटी। पृथ्वीबाई ने याचिकाकर्ता महेश को साल 1994 में गोद लिया था। पृथ्वीबाई ने अपनी संपत्ति का एक हिस्सा साल 2007 में सेल डीड के जरिए और दूसरा 2008 में गिफ्ड डीड के जरिए दी। महेश ने इस याचिका को चुनौती दी। उन्होंने विरासत संबंधी अधिकारों का हवाला देकर कोर्ट में याचिका दायर की थी।
कोर्ट ने फैसला क्या सुनाया?
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में सेल डीड को सही ठहराया। कहा कि कि इस संपत्ति पर मां का पूरा अधिकार है। साल 2008 में हुए गिफ्ट डीड को कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने महेश को ही उनकी संपत्ति का सही वारिस ठहराया। कोर्ट ने ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि जब तक संपत्ति का अधिकार, उसकी सुपुर्दगी और सहमति पूरी न हो जाए तो इसे ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के तहत वैध गिफ्ट नहीं माना जा सकता है।
क्या है धारा 13, जो सीमित करती है अधिकार
हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 13 कहती है कि गोद लेने की प्रक्रिया, कहीं से उनके संपत्ति के क्रय-विक्रय के अधिकार को खत्म नहीं करती है। वह अपनी संपत्ति जिसे चाहें, उसे दे सकते हैं। माता-पिता को संपत्ति से जुड़े अधिकार, बच्चा गोद लेने की वजह से सीमित नहीं होते हैं।
धारा 13 कहती है कि गोद लेने का कॉन्ट्रैक्ट किसी संतान को उसे गोद लिए हुए माता-पिता के संपत्ति, उसे ट्रांसफर करने के अधिकार या उसे हटाने के अधिकार से नहीं रोकती है। इस धारा का अर्थ यह है कि अगर किसी दत्तक मां-पिता ने अपनी जमीन या संपत्ति बेचने या उसे खर्च करने का फैसला किया है तो दत्तक पुत्र, कानूनी तौर पर उसे नहीं रोक सकेगा।
एडवोकेट आनंद कुमार मिश्र बताते हैं कि दत्तक पुत्र की तुलना में जैविक पुत्र का कानूनी हक, ज्यादा मजबूत होता है। जैविक पुत्र अगर चाहे तो मां-बाप को उनकी 'पैतृक संपत्ति' या विरासत में मिली संपत्ति बेचने से रोक सकता है। अर्जित संपत्ति पर उसका भी अधिकार, दत्तक पुत्र की तरह ही होता है।
ऐसी स्थिति में गोद लिए हुए बच्चे के अधिकार क्या हैं?
एडवोकेट आनंद कुमार मिश्र बताते हैं कि किसी भी स्थिति में वैध गोदनामा कभी खारिज नहीं होता है। 'हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956' की धारा 15 कहती है कि किसी भी स्थिति में दत्तक मां-पिता किसी वैध गोदनामे को खारिज नहीं कर सकते हैं। न ही गोद गया हुआ बच्चा भी अपनी हैसियत बदलकर अपने पुराने परिवार में लौट सकता है। वह जिस परिवार में गोद गया है, उसी परिवार का बना रहेगा।
गोद लिए हुए बच्चे का भविष्य कैसे हो सुरक्षित?
एडवोकेट आनंद मिश्र बताते हैं कि अगर गोद लिए हुए मां-बाप की अपनी संतान पैदा हो जाती है, तो भी दत्तक पुत्र के विरासत संबंधी अधिकार सुरक्षित रहते हैं। अगर मां-बाप वसीयत नहीं कर देते हैं तो उनके न रहने पर दत्तक पुत्र का भी वही अधिकार होगा जो उनकी जैविक संतान का होगा।