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13 साल के छात्र से प्रेग्नेंट हुई 23 साल की टीचर, बच्चे का क्या होगा?

सूरत में 23 साल की एक टीचर 13 साल के स्टूडेंट से प्रेग्नेंट हो गई है। दोनों लंबे समय से रिलेशनशिप में थे। पुलिस ने महिला टीचर को POCSO एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

गुजरात के सूरत से एक 23 साल की टीचर को गिरफ्तार किया गया है। टीचर पर अपने 13 साल के स्टूडेंट को भगाकर ले जाने का आरोप है। 25 अप्रैल को टीचर अपने स्टूडेंट को लेकर भाग गई थी। 30 अप्रैल को पुलिस ने दोनों को राजस्थान बॉर्डर के पास एक बस से पकड़ लिया। टीचर के खिलाफ केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया है।


टीचर और स्टूडेंट एक साल से रिलेशनशिप में थे। जब परिवार वालों को इस रिश्ते पर आपत्ति हुई तो दोनों ने भागने का फैसला किया। 5 दिन में दोनों कई शहरों में घूमे। 30 अप्रैल को जब दोनों बस से अहमदाबाद लौट रहे थे, तब पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। पुलिस ने बताया कि 23 साल की टीचर उस स्टूडेंट को ट्यूशन पढ़ाती थी। पुलिस ने टीचर के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया है।


हालांकि, अब इस मामले में एक नया मोड़ आ गया है। पुलिस से पूछताछ में बताया है कि टीचर ने बताया है कि वह 5 महीने की प्रेग्नेंट है। टीचर का कहना है कि इस बच्चे का पिता स्टूडेंट ही है।


यह पूरा मामला सामने आने पर सबसे बड़ा सवाल तो यही खड़ा होता है कि जो बच्चा गर्भ में पल रहा है, उसका अब क्या होगा? अगर बच्चे ने जन्म लिया तो उसकी कस्टडी किसे मिलेगी? और अगर टीचर बच्चे को जन्म न देना चाहती है तो क्या अबॉर्शन करवा सकती है?

बच्चे ने जन्म लिया तो...?

अगर बच्चे ने जन्म ले लिया तो ऐसी स्थिति में उसकी कस्टडी किसके पास रहेगी? इसे लेकर एक 'हिंदू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956' है। इस कानून की धारा 6 में इसका जिक्र है। 

 


इस कानून की धारा 6(a) में साफ लिखा है कि 5 साल से छोटे बच्चे की कस्टडी हमेशा मां को ही मिलेगी। धारा 6(b) कहती है कि अगर मां अविवाहित है तो ऐसी स्थिति में बच्चे की कस्टडी मां को ही मिलती है। 

 


इसके अलावा, अगर बच्चे के पैदा होने के बाद मां उसे पालने-पोसने में असमर्थ है तो वह उसे चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) को सौंप सकती है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 35 के तहत, अगर माता-पिता या गार्जियन शारीरिक, मानसिक या किसी भी कारण से बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ हैं तो वह उसे CWC को सौंपने के लिए आवेदन कर सकते हैं।

क्या अबॉर्शन करवा सकती है महिला?

भारत में अबॉर्शन या गर्भपात करवाना गैर-कानूनी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में गर्भपात को अधिकार बता चुका है। अबॉर्शन को लेकर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट है। 


भारत में पहले प्रेग्नेंसी के 20 हफ्ते के अंदर गर्भपात कराने का अधिकार था। 2021 में इस कानून में संशोधन किया गया, जिसके बाद 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार मिल गया। कुछ खास मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन करवाने की मंजूरी मिल सकती है।


जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला देते हुए साफ कर दिया था कि अगर कोई महिला अविवाहित है तो उसे गर्भपात करवाने से नहीं रोका जा सकता।

 


हालांकि, इसके बावजूद अबॉर्शन करवाने की खुली छूट नहीं मिल जाती। अबॉर्शन तभी होता है, जब डॉक्टर उसकी मंजूरी देता है। अगर लगता है कि बच्चा के जन्म लेने पर उसे और मां को शारीरिक या मानसिक रूप से कोई बीमारी हो सकती है तो 24 हफ्ते तक अबॉर्शन करवाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में दो डॉक्टर पूरी जांच के बाद ही अबॉर्शन की मंजूरी देते हैं।


अगर कोई महिला रेप या यौन उत्पीड़न से प्रेग्नेंट हुई है तो 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन करवा सकती है। अगर जन्म के बाद बच्चे के जिंदा रहने की उम्मीद कम है तो भी 24 हफ्ते के बाद अबॉर्शन कराने की मंजूरी मिल जाती है। अगर प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का मैरिटल स्टेटस बदल जाए यानी उसका तलाक हो जाए या विधवा हो जाए, तो भी वह 24 हफ्ते बाद अबॉर्शन करवा सकती है। अगर महिला की जान को खतरा है तो डॉक्टर की सलाह पर अबॉर्शन करवाया जा सकता है।


कानून के मुताबिक, 24 हफ्ते के बाद अबॉर्शन को मंजूरी मेडिकल बोर्ड देता है। हर राज्य में मेडिकल बोर्ड होता है। इसमें डॉक्टरों की टीम होती है। यह बोर्ड गर्भवती महिला की जांच करती है और तभी अबॉर्शन की मंजूरी देता है।

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