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भगवान का एक पैर आम लोगों के लिए, एक पैर VIP के लिए? पूरा बखेड़ा समझिए

मंदिरों में दर्शन के लिए वीआईपी कल्चर को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। मामला न सिर्फ हाई कोर्ट और राज्य मानवाधिकार आयोग तक पहुंच चुका है बल्कि सोशल मीडिया पर भी छाया हुआ है।

anupam kher at lalbaugcha raja । Photo Credit: X/@AnupamPKher

अनुपम खेर लालबागचा राज में दर्शन करते हुए । Photo Credit: X/@AnupamPKher

सोशल मीडिया पर बीते दिनों एक्टर अनुपम खेर का वीडियो खूब वायरल हुआ। वीडियो में वे मुंबई के मशहूर लालबागचा राजा के दर्शन के लिए साधारण लाइन में खड़े दिखाई दिए। उन्होंने खुद लिखा कि बिना किसी वीआईपी पास या विशेष व्यवस्था के दर्शन करना उन्हें बेहद सुखद अनुभव लगा। अनुपम खेर ने आम श्रद्धालुओं की तरह अपनी बारी का इंतजार किया, सिर झुकाया और गणपति बप्पा से आशीर्वाद लिया। सोशल मीडिया पर इस वीडियो को हजारों लोगों ने सराहा और इसे एक मिसाल बताया, लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने वीआईपी कल्चर में दर्शन किया। उनका कहना था कि 'गणपति का दायां पैर आम आदमी के लिए है और बायां पैर वीआईपी के लिए', क्योंकि अनुपम खेर गणपति के बाएं पैर की तरफ फूल माला चढ़ा रहे थे। हालांकि, हाल की कुछ अन्य घटनाओं ने और इस वीडियो ने एक बड़े सवाल को भी जन्म दे दिया – क्या हमारे धार्मिक स्थलों और आस्था के केंद्रों पर अब भी वीआईपी और आम भक्तों के बीच दीवार खड़ी है?

 

अनुपम खेर का यह वीडियो सोशल मीडिया पर इसलिए भी वायरल हुआ क्योंकि मुंबई का लालबागचा राजा अक्सर वीआईपी संस्कृति को लेकर विवादों में रहता है। हर साल करोड़ों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन आम भक्तों को अक्सर 24 से 48 घंटे तक लाइन में खड़ा रहना पड़ता है। वहीं जिनके पास वीआईपी पास होता है वे कुछ ही मिनटों में अंदर पहुंच जाते हैं। यही नहीं, कई शिकायतें इस बात की भी हुई हैं कि बच्चों, बुजुर्गों और दिव्यांगों तक को बिना किसी सुविधा के लाइन में खड़े रहना पड़ता है।

 

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लालबागचा राजा को लेकर हुई शिकायत

हाल ही में वकील आशीष राय और पंकज मिश्रा ने महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (MSHRC) में औपचारिक शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि लालबागचा राजा में सामान्य भक्तों के साथ अमानवीय व्यवहार होता है। शिकायत में कहा गया कि जहां पुलिस और आयोजक वीआईपी लोगों को फोटो-वीडियो लेने की खुली छूट देते हैं, वहीं आम लोगों को जल्द से जल्द लाइन से हटाने का दबाव बनाया जाता है। भक्तों से धक्का-मुक्की और दुर्व्यवहार की शिकायतें भी दर्ज हैं। आयोग से मांग की गई है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और VIP/Non-VIP प्रणाली को खत्म किया जाए।

 

महाकाल मंदिर पर कोर्ट का फैसला

इसी बहस के बीच, मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने हाल ही में एक अहम टिप्पणी की। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में वीआईपी प्रवेश को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर अदालत ने साफ कहा कि ‘वीआईपी’ की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। अदालत ने कहा कि किसे वीआईपी माना जाए, यह पूरी तरह स्थानीय प्रशासन और मंदिर समिति के विवेक पर निर्भर है।

 

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जनहित याचिका में आरोप था कि मंदिर प्रशासन मनमाने ढंग से तथाकथित वीआईपी को गर्भगृह में जल अर्पण की अनुमति देता है, जबकि आम श्रद्धालु बाहर से ही दर्शन करने को मजबूर हैं। अदालत ने हालांकि याचिका खारिज करते हुए कहा कि सक्षम अधिकारी किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष परिस्थिति में वीआईपी मान सकते हैं और यह फैसला अदालत नहीं ले सकती।

 

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आस्था में भेदभाव का सवाल

यहां सवाल केवल कानूनी या प्रशासनिक नहीं है, बल्कि आस्था और समानता से जुड़ा है। लोगों का तर्क है कि जब भगवान के दरबार में सभी भक्त समान हैं, तो फिर वीआईपी और आम लोगों के बीच भेदभाव क्यों? भक्तों का तर्क है कि धर्मस्थलों पर यह व्यवस्था असमानता की भावना पैदा करती है। लाखों लोग लंबी लाइनों में खड़े होकर दर्शन करते हैं, वहीं कुछ गिने-चुने लोग सीधे गर्भगृह या वेदी तक पहुंच जाते हैं।

 

लालबागचा राजा और महाकालेश्वर मंदिर जैसे मामलों ने यह बहस तेज कर दी है कि आखिर धार्मिक स्थलों पर वीआईपी कल्चर कब तक जारी रहेगा। भक्तों का कहना है कि अगर प्रशासन और प्रबंधन सच में समानता और सेवा भाव का पालन करना चाहते हैं, तो वीआईपी और नॉन-वीआईपी की अलग-अलग लाइनें खत्म करनी होंगी।

 

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सोशल मीडिया पर बहस जारी

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने एक बहस छेड़ दी है। अनुपम खेर का वीडियो भी इसीलिए वायरल हुआ क्योंकि आम लोग इसे अपने दर्द से जोड़ पाए। यूजर्स ने लिखा कि अगर मशहूर हस्तियां आम लाइन में खड़े हों तो उन्हें भी वही तकलीफ झेलनी पड़ेगी जो साधारण भक्त रोज झेलते हैं। वहीं, कुछ ने खेर की पहल की तारीफ करते हुए कहा कि यही असली भक्ति और अनुशासन है।

 

 

किसी ने लिखा कि भगवान के दरबार में कोई व्यक्ति वीआईपी नहीं होता न कोई राजा होता है न कोई रंक। क्या वीआईपी लोग आम लोगों की तुलना में किसी विशेष तरह से बनाए गए हैं जो उन्हें ही सिर्फ दर्शन करने का अधिकार दिया गया है।

 

वहीं किसी ने लिखा कि लालबागचा राजा दरबार में भी वीआईपी कल्चर घुसपैठ कर चुका है। भगवान के सामने सब बराबर हैं, यह कहावत अब सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह गई है। आम भक्तों को घंटों पसीना बहाना पड़ता है और वीआईपी लोग एसी में आराम से जाकर सीधे दर्शन कर आते हैं।

 

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