34 साल पहले आयोध्या के हनुमान गढ़ी जा रहे कारसेवकों पर अंधाधुध गोलियां चलाई गई थी। उस दौरान उत्तर प्रदेश में दिवंगत मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। हिंदू और संतो का झुंड आयोध्या की ओर बढ़ रहा था। इस बीच राज्य में कर्फ्यू होने के कारण श्रद्धालुओं के प्रवेश में रोक लगा दी गई थी। बाबरी मस्जिद के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग की हुई थी। 30 अक्टूबर, 1990 को कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई, जिसमें 5 की मौत हो गई। इस हमले के बाद पूरे देश में माहौल गर्म हो गया। इस गोलीकांड के दो दिन बाद यानी 2 नंवबर को हजारों कारसेवक हनुमानगढ़ी पहुंच गए जो बाबरी मस्जिद के बिल्कुल करीब था।
हजारों की संख्या में कारसेवकों की उमड़ी थी भीड़
बड़े हिंदूवादी नेता 5-5 हजार कारसेवकों के साथ हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। 30 अक्टूबर में कारसेवकों की मौत से गुस्साए लोगों की भीड़ बस आगे की ओर बढ़ रहा था। प्रशासन रोकने की पूरी कोशिश में लगा हुआ था। छतों पर पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई थी। किसी को भी बाबरी मस्जिद जाने की इजाजत नहीं थी। 2 नवंबर की सुबह जब कारसेवक हनुमान गढ़ी की सामने लाल कोठी की संकरी गली की ओर बढ़ रहे थे तभी पुलिस ने ताबड़तोड़ गोलीबारी करना शुरू कर दिया।
कोठारी बंधुओं को उतारा मौत के घाट
इस गोलीबारी में लगभग 2 दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इस दौरान कोलकाता के कोठारी बंधुओं को भी मौत के घाट उतार दिया था। इन दोनों भाइयों की चर्चा इसलिए होती है क्योंकि दोनों भाइयों ने 30 अक्टूबर 1990 को विवादित परिसर में बने बाबरी मस्जिद के गुंबद पर खड़े होकर भगवा झंडा फहराया था। दोनों की मौत पुलिस फायरिंग में हुई थी। आयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने का आदेश मुलायम सिंह यादव ने दिया था। इसका असर उन्हें 1990 के विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला। वह इस चुनाव में बुरी तरह से हार गए थे और कल्याण सिंह सूबे के नए मुख्यमंत्री घोषित किए गए। कारसेवकों पर गोली चलवाने के आदेश के कारण मुलायम सिंह यादव को मुल्ला-मुलायम भी कहा जाने लगा था।