24, अक्टूबर 1989 में रामजन्मभूमि अभियान को देखते हुए विश्व हिंदू परिषद ने भागलपुर में रामशिला जुलूस निकालने की योजना बनाई थी। जिले के विभिन्न इलाकों से रामशिला जुलूस गौशाला क्षेत्र से होकर निकलना था। परबत्ती से आने वाला जुलूस मुस्लिम बहुल इलाके तातारपुर से शांतिपूर्वक होकर गुजरा। कुछ देर बाद जुलूस के कुछ सदस्यों ने विवादित नारे लगाए। ये नारे थे- ‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान, मुल्ला भागो पाकिस्तान’। ‘बाबर की औलाद, भागो पाकिस्तान।‘
जब विवादित नारा बना दंगा का कारण
विवादित नारे लगाए जाने के कारण उस समय के डीएम अरुण झा ने परबत्ती-तातारपुर जंक्शन पर मुसलमानों से तातरपुर से जुलूस को निकालने की गुजारिश की, लेकिन मुसलमानों ने इनकार कर दिया। उन्होंने जुलूस को गौशाला के लिए एक अन्य रूट देने का सुझाव दिया। इतने में ही मुस्लिम हाई स्कूल के परिसर से जुलूस पर देसी बम फेंके गए। बम विस्फोट में किसी की मौत तो नही हुई लेकिन यही से दंगों की चिंगारी फैलना शुरू हो गई।
10 मिनट के अंदर 18 मुसलमानों की हुई थी हत्या
राज्य सरकार ने भले ही तुरंत कर्फ्यू लगा दिया, लेकिन तातरपुर में हिंदु जुलूस भीड़ में तब्दील हो गई और मुसलमानों की भीड़ पर जमकर तोड-फोड़ की। हिंदू दंगाइयों ने असानंदपुर के मुस्लिम बहुल इलाके में धावा बोला और कम से कम 40 मुसलमानों की हत्या कर दी गई। अगले दिन यानी 25 अक्टूबर को 8 हजार लोगों की भीड़ ने मुस्लिम बस्ती को निशाना बनाया जिसमें कई मुस्लिम मारे गए। 26 अक्टूबर को जब हालात बेकाबू हो गए तो कुछ हिंदुओं ने 19 बच्चों समेत 44 मुसलमानों को जमुना कोठी की इमारत में शरण दी। उसी बीच 70 लोगों की भीड़ धार-दार हथियारों के साथ जमुना कोठी में घुस आई और 10 मिनट के अंदर 18 मुसलमानों की हत्या कर दी।
क्या कहते है सरकारी आकंड़े?
सरकारी आंकड़े बताते है कि इस दंगे में लगभग 1,070 लोग मारे गए थे और 524 घायल हुए थे। भागलपुर के 21 में से 15 क्षेत्र दंगों से सबसे अधिक प्रभावित हुए थे। 195 गांवों में 11,500 घरों को नष्ट कर दिया गया था।