13 अगस्त, 1980 मुरादाबाद में ईद का जश्न मनाया जा रहा था। ईदगाह में ईद की नमाज अदा करने के लिए हजारों की संख्या में मुसलमान जुटे थे। इसी बीच किसी ने अफवाह फैलाई कि मस्जिद के नमाज क्षेत्र में सुअर घुस आया है। महज इस छोटे से अफवाह ने बड़े दंगे का रूप ले लिया। जमकर पत्थरबाजी हुई। चारों तरफ आग लगने के बाद काले धुएं का गुबार छा गया।
सुरक्षा में तैनात किए गए पीएसी पर अंधाधूंध गोलीबारी करने के आरोप लगाए गए। कुछ मुसलमानों ने इस दंगे को दूसरा जलियांवाला बाग करार दिया। उस दौरान देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के वीपी सिंह मुख्यमंत्री थे। 8 अगस्त, 2023 को मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक किया गया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि राजनैतिक लाभ के लिए एक स्थानीय मुस्लिम लीग के नेता शमीम अहमद खान ने दंगा भड़काया था।
क्या और कैसे फैला दंगा?
साल 1980 में स्वतंत्रता दिवस के ठीक दो दिन पहले देश में ईद का जश्न मनाया जा रहा था। यूपी के मुरादाबाद में ईदगाह में तकरीबन 50 हजार मुसलमान ईद की नमाज पढ़ने के लए ईदगाह में एकत्र हुए। सड़क से लेकर ईदगाह तक मुसलमानों की भीड़ नमाज अदा करने के लिए एकत्र हुए थे। इसी दौरान किसी ने अफवाह फैला दी कि इस्लाम में नपाक माने जाने वाला जानवर सुअर ईदगाह में घुस आया है। जैसे ही अफवाह फैली नमाज पढ़ रहे मुसलमानों को गुस्सा आ गया जिससे भगदड़ मच गई। ऐसे त्योहार का रंग दंगे में बदल गया। सफेद कुर्ता पहने कई मुसलमानों का रंग अब लाल हो चुका था। हर जगह बस बिखरे हुए थे चप्पलें और जुते। चीख-पुकार और गोलियों की बुछार से हर जगह बस रोने की आवाज निकल रही थी।
मुरादाबाद में गोलीबारी और दंगे भड़क गए
कुछ ही सेकंड में मुरादाबाद में गोलीबारी और दंगे भड़क गए। आक्रोशित लोगों ने जेल में आग लगा थी। वहीं, भीड़ को काबू करने के लिए जब एडीएम सिटी डीपी सिंह वहां पहुंचे तो लोगों ने उन्हें भी पीट-पीटकर मार डाला। दंगे को शांत करने के लिए तत्कालीन वीपी सींग की सरकार ने पीएसी और पैरा मिलिट्री फोर्स को तैनात किया। पीएसी की गोलीबारी में कई लोगों की भी जान गईं।
इंदिरा गांधी की सरकार ने बताया कि इस भीषण दंगे में 83 लोग मारे गए और 112 लोग घायल हुए। हालांकि, स्थानीय लोगों का दावा सरकार के दावे से बिल्कुल अलग था। स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस दंगे में लगभग 200 की जान गई थी। भले ही कांग्रेस सरकार ने 20 नवंबर, 1983 को दंगे की जांच की रिपोर्ट पेश की, लेकिन उसे न तो किसी सरकार ने संसद में पेश किया और न ही सार्वजनिक करने का सोचा। इस दंगे के लिए जिला प्रशासन, पुलिस और पीएसी पर भी आरोप लगे, लेकिन आयोग की रिपोर्ट में सभी को दोषमुक्त कर दिया गया।