पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा की बात नई नहीं है। चुनाव कैंपिनिंग के दौरान क्रूड बम का फेंका जाना भी बेहद आम है। मंगलवार को बीबीसी ने अपनी एक डॉक्यूटमेंट्री चिल्ड्रन ऑफ द बम्स में हिंसा पीड़ित बच्चों के बारे में बात की है। उन बच्चों की कहानियों को सामने लाया गया है, जिन्होंने हिंसा की वजह से अपने शरीर का कोई एक हिस्सा गंवा दिया।
पश्चिम बंगाल में देसी बमों से अब तक करीब 565 बच्चे मारे गए हैं, या अपंग हुए हैं। इनमें से कुछ संख्या घायलों की भी है। डॉक्यूमेंट्री में बम पीड़ितों ने अपनी व्यथा बताई है, कैसे बम कांड ने उनकी जिंदगी बदल दी थी। कुछ ने हाथ गंवाए, कुछ के पांव हमेशा के लिए चले गए।
गेंद समझकर बम उठाया, तबाही मच गई
डॉक्यूमेंट्री में एक परिवार यह कहता नजर आ रहा है कि कैसे उसने गेंद समझकर बम उठा लिया, जिसके बाद वह फट गया। इस हादसे में एक 9 साल का बच्चा घायल हो गया। वह मंजर याद करके सिहर जाता है। 4 दोस्तों की कहानी भी है, जो गेंद खेल रहे थे। एक ने बम को गेंद समझकर फेंका,दूसरे ने शॉट जड़ा और विस्फोट हो गया।
बच्चों के मां-बाप बताते नजर आ रहे हैं कि इस हादसे के बाद बच्चे खून से लथपथ हो गए थे। दो बच्चे वहीं मर गए। हादसे में मारे गए बच्चे के पिता ने कहा कि वह उसकी पैंट देखकर पहचान पाए कि यह बेटा उनका है।
'चुनाव का मतलब डर और दंगा'
अविजित मंडल नाम के एक शख्स ने बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री में बताया कि यहां चुनाव का मतलब डर और दंगा है। इसका असर झुग्गी झोपड़ियों के लोगों पर ही पड़ता है। कुछ वोटों के लिए लोगों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है।
'पुलिसकर्मियों को भी है इस दर्द का एहसास'
डॉक्यूमेंट्री में पश्चिम बंगाल के पूर्व आईजीपी पंकज दत्ता के उस बयान का भी जिक्र है जिसमें उन्होंने कहा था कि बच्चों और किशोरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर मैं राज्य का मुख्यमंत्री होता, तो मैं इसे खत्म कर देता। हमेशा के लिए। उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल में बमों के इस्तेमाल का इतिहास 100 साल से ज्यादा पुराना है।
'गेंद उठाई, हाथ गंवा दिया'
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की डॉक्यूमेंट्री में पौलमी नाम की एक लड़की की भी आपबीती दिखाई गई है। साल 2018 में उसने महज सात साल की उम्र में हाथ गंवा दिया था। उसने गेंद जैसी दिखने वाली एक चीज उठाई और हाथ ही गंवा बैठी।
'क्रांतिकारियों ने बनाया था बम, अब उग्रवादी बना रहे'
इस डॉक्यूमेंट्री में पंकज दत्ता बताते नजर आ रहे हैं कि 1946 के कलकत्ता दंगों के बाद बम का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल की राजनीति का हिस्सा बन गया। साल 1908 में कोलकाता के मुरारीपुकुर गार्डन हाउस में बम बनाने की शुरुआत हुई थी। तब क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने ब्रिटिश मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड को खत्म करने के लिए यह कोशिश की थी। अब राजनीति के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है।
नोट: यह दावे बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री चिल्ड्रन ऑफ द बम्स में किए गए हैं। खबरगांव, स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं करता है।