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कितने तरह की होती हैं बारूदी सुरंगे, कैसे करती हैं काम?

बारूदी सुरंगों की कहानियां आपने बहुत पढ़ी होंगी। क्या आप जानते हैं कि इनके बनने की कहानी कहां से शुरू हुई थी? कैसे इन्होंने युद्ध का भविष्य बदल दिया था? समझिए विस्तार से।

Landmines

अमेरिकी सिविल वार में लैंड माइंस का इस्तेमाल खूब हुआ था। (इमेज क्रेडिट- www.news.un.org)

अमेरिका में सिविल वार छिड़ चुका था। 1861 से 1865 के बीच लड़ी गई इस जंग में अमेरिका के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच जंग छिड़ी थी। लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। हिंसक लड़ाइयां चल रही थीं। ये आजादी की जंग थी। एक धड़ा था, जिसे गुलामी नहीं पसंद थी। दूसरा धड़ा था, जिसे रंग के आधार पर गुलाम बनाने थे। इस जंग में पहली बार बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल हुआ था। यह शुरुआत थी।

बारूदी सुरंगों पर कदम रखने का मतलब मौत है। एक कदम और पूरी की पूरी पलटन साफ। इससे जितना डर सैनिकों को लगता है, उतना ही डर पैरा मिलिट्री फोर्सेज के जवानों को। ये LoC पर भी है, ये छत्तीसगढ़ के जंगली इलाकों में भी है। आखिर जमीन में दहशतगर्द ऐसा क्या बिछाते हैं कि जमीनें जानलेवा बन जाती हैं। अगर ये समझना है तो पहले इसका इतिहास जानना होगा।

 

साल 1914 से 1918 के बीच पहली बार विश्वयुद्ध छिड़ा। तोपों और टैंकों से बचने के लिए देशों ने बारूदी सुरंगों इस्तेमाल किया। अब जमीनें आग उगलने लगी थीं। जैसे ही दुश्मनों की टुकड़ी, जमीन पर पांव पर रखती, लाशें बिछ जाती थीं। कहानी यहां से शुरू हुई थी, असर रूस और यूक्रेन की जंग पर भी पड़ा, इजरायल और हमास की जंग पर भी। शताब्दियों तक इसका इस्तेमाल होता भी रहेगा। ऐसे में जानते हैं कि आखिर ये बारूदी सुरंगें होती क्या हैं।

क्या होती हैं बारूदी सुरंगें?
बारूदी सुरंग या लैंड माइन,जमीन पर तैयार की जाती हैं। जमीन के अंदर विस्फोटक छिपाए जाते हैं। ये एक सीध में लगाए गए विस्फोटक होते हैं, जिन पर पांव पड़ते ही विस्फोट हो जाता है और टार्गेट के परखच्चे उड़ जाते हैं। इसका इस्तेमाल हर तरह की जंग में होता है। सीमाओं पर सैनिक इसे घुसपैठ रोकने के लिए प्लांट करते हैं, नक्सली सुरक्षाबलों को मारने के लिए ये सड़कों पर बिछाते हैं। ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जब देश के जवानों ने बारूदी सुरंगों की चपेट में आकर जानें गंवाई हैं। इनकी कई किस्में होती हैं।

कितने तरह की होती हैं बारूदी सुरंगे? 

ब्लास्ट माइन या विस्फोटक सुरंगे
विस्फोटक सुरंगों का इस्तेमाल सैनिकों की टुकड़ियों को तबाह करने के लिए किया जाता है। इन्हें जमीन से कुछ इंच नीचे ही प्रेशर प्लेट के जरिए सेट किया जाता है, जिसेस 11 से 35.3 पाउंड के बल से भी तबाह किया जा सकता है। बारूदी सुरंगों पर रोक लगाने के लिए 1997 में एक माइन बैन कन्वेंशन भी हुआ था। 


बाउंडिग माइन
इस तरह की बारूदी सुरंगों को अगर सक्रिय न किया जाए तो ये निष्क्रिय ही पड़ी रहती हैं। इन्हें जलाकर या इनमें इलेक्ट्रिसिटी दौड़ाकर सक्रिय जाता है। जमीन पर होने वाले ऐसे विस्फोटों से 3 फीट उपर तक मौजूद चीजें तबाह हो जाती हैं। यह सबसे घातक तरीकों में से एक है। 

फ्रेगमेंटेशन माइन
ऐसी सुरंगें बाउंडिंग माइन और ग्राउंड माइन दोनों हो सकती हैं। इनकी विस्फोटक क्षमताएं ज्यादा होती हैं। ये बड़ी-बड़ी पहाड़ियों को भी तोड़ने में सक्षम होती हैं। ये बहुत घातक होती हैं। 

एंटी टैंक माइन
ऐसी बारूदी सुरंगों को आमतौर पर टैंकरों और तोपों को तबाह करने के लिए बिछाया जाता है। इनका इस्तेमाल उन रास्तों पर होता है, जहां सैन्य तोपों के आने की आशंका हो। यूक्रेन में व्यापक तौर पर इनका इस्तेमाल किया गया है। इनके ब्लास्ट होने के लिए 348.33 पाउंड से लेकर 745 पाउंड तक के ताकत की जरूरत पड़ती है। 

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