अब फेल मतलब फेल... क्यों जरूरी था 'नो डिटेंशन पॉलिसी' खत्म करना?
केंद्र सरकार ने आखिरकार 'नो डिटेंशन पॉलिसी' खत्म कर ही दी। इस पॉलिसी को 2009 में लागू किया गया था। इस पॉलिसी के तहत, अब तक 5वीं और 8वीं में फेल होने वाले छात्र को भी आगे की क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था।

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अब 5वीं और 8वीं क्लास की परीक्षा में फेल होने वाले छात्र को आगे की क्लास में नहीं भेजा जाएगा। केंद्र सरकार ने 'नो डिटेंशन पॉलिसी' खत्म कर दी है। अब तक 5वीं और 8वीं क्लास में फेल होने वाले छात्र को भी प्रमोट कर आगे की क्लास में भेज दिया जाता था। मगर अब से ऐसा नहीं होगा।
केंद्र सरकार 2009 में 'नो डिटेंशन पॉलिसी' लेकर आई थी। शुरुआत से ही इस पॉलिसी का विरोध हो रहा था। कुछ राज्य तो इस पॉलिसी को पहले ही खत्म कर चुके हैं. अब केंद्र सरकार ने भी इसे खत्म कर दिया है। इसका मतलब ये हुआ कि अब 5वीं और 8वीं में फेल होने पर प्रमोट नहीं किया जाएगा।
...तो क्या होगा अब?
अब तक होता ये था कि 5वीं और 8वीं का छात्र अगर फेल हो भी जाए, तब भी उसे प्रमोट कर अगली क्लास में भेज दिया जाता था। मगर अब अगर कोई छात्र फेल होता है तो उसे 2 महीने के भीतर फिर से परीक्षा देनी होगी। इस परीक्षा में पास होने के बाद ही उसे प्रमोट किया जाएगा। अगर छात्र इस परीक्षा में भी फेल हो जाता है तो उसे दोबारा से उसी क्लास में पढ़ना होगा। हालांकि, फेल होने के बाद छात्र को स्कूल से नहीं निकाला जा सकता। यानी, अगर कोई छात्र फेल हो भी रहा है तो उसे 8वीं तक स्कूल से नहीं निकाला जाएगा।
इसका असर क्या होगा?
15 राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से पहले ही नो डिटेंशन पॉलिसी को हटाया जा चुका है। इनमें- असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, दादरा और नगर हवेली और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं।
अब केंद्र सरकार ने भी नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है। इसका असर देशभर के 3,000 से ज्यादा नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय और सैनिक स्कूलों पर होगा। अब यहां भी 5वीं और 8वीं में फेल होने वाले छात्रों को आगे प्रमोट नहीं किया जाएगा।
हालांकि, स्कूली शिक्षा राज्य सरकार का विषय है। ऐसे में जिन राज्यों में अभी भी नो डिटेंशन पॉलिसी लागू थी, वह इसे हटाने या न हटाने को लेकर फैसला कर सकते हैं।
इसे हटाना क्यों जरूरी था? क्योंकि...
- पढ़ाई छोड़ रहे थे बच्चेः शिक्षा मंत्रालय की UDISE+ रिपोर्ट के मुताबिक, 2021-22 में ड्रॉप आउट रेट 12.6% था। यानी, 100 में लगभग 13 छात्र ऐसे थे जो 9वीं या 10वीं में ही स्कूल छोड़ देते हैं। इतना ही नहीं, ग्रॉस एनरोलमेंट रेशो 57.56% है। इसका मतलब हुआ कि अगर पहली क्लास में 100 छात्र हैं तो उनमें से 57 ही 12वीं तक पढ़ाई पूरी कर रहे हैं।
- फेल हो रहे हैं बच्चेः 5वीं और 8वीं में फेल होने के बावजूद प्रमोट करने का असर छात्रों के 10वीं-12वीं के बोर्ड एग्जाम में देखने को मिल रहा है। शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि 2023 में देशभर में 65 लाख छात्र 10वीं और 12वीं में फेल हो गए थे। 12वीं में 32.4 लाख तो 10वीं में 33.5 लाख छात्र बोर्ड एग्जाम पास नहीं कर पाए थे।
- 4 में से 1 सामान्य सा पाठ नहीं पढ़ पातेः एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि 14 से 18 साल की उम्र का हर 4 में से 1 छात्र अपनी भाषा में क्लास 2 के सामान्य से पाठ को भी नहीं पढ़ पाता। इसी उम्र के 57 फीसदी छात्र सामान्य सा गणित हल नहीं कर पाते। इस उम्र के 43 फीसदी छात्रों को अंग्रेजी की एक लाइन पढ़ने में भी दिक्कत होती है।
- हम चीन-श्रीलंका से भी पिछड़ेः संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 'लर्निंग पॉवर्टी' का स्तर 56% है। यानी, 10 साल से कम उम्र के आधे से ज्यादा भारतीय बच्चे एक साधारण सा वाक्य भी नहीं पढ़ सकते। जबकि, हमारे पड़ोसियों में से में चीन में यह 18.2% और श्रीलंका में 14.8% है।
पर ये पॉलिसी लाई क्यों गई?
भारत का संविधान हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार देता है। यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वह हर बच्चे को अच्छी और मुफ्त शिक्षा दे। साल 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून में नो डिटेंशन पॉलिसी जोड़ी गई थी। इसे लाने का मकसद शिक्षा का स्तर सुधारना था।
नो डिटेंशन पॉलिसी को इसलिए लाया गया ताकि बच्चे स्कूल आते रहें। ऐसा माना गया कि फेल होने से बच्चे के आत्मसम्मान को ठेंस पहुंचती है और वह स्कूल आना छोड़ सकता है। बच्चे पढ़ाई में न पिछड़ें, इसलिए 8वीं तक के छात्र को फेल नहीं किया जाता था।
लेकिन इस पॉलिसी की आलोचना भी होती थी। ऐसा माना जाने लगा कि यह बच्चों को आलसी बना रही है। साथ ही छात्र पढ़े या न पढ़े, वह आगे की क्लास में प्रमोट हो ही जाता था। इससे अच्छा पढ़ने वाले छात्रों के साथ भेदभाव होता था।
पहले इस पॉलिसी को खत्म करने का अधिकार राज्यों के पास नहीं था। 2019 में कानून में संशोधन किया गया और पॉलिसी को लागू रखने या न रखने का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया। इस संशोधन के बाद 15 राज्यों ने इस पॉलिसी को खत्म कर दिया।
कड़वा सचः 24% बच्चे मर्जी से स्कूल नहीं जाते
एक ओर जहां शिक्षा पर इतना जोर दिया जा रहा है, तो दूसरी ओर भारत में हर चौथा बच्चा खुद अपनी मर्जी से ही स्कूल नहीं जाना चाहता।
हाल ही में नेशनल सैंपल सर्वे (NSSO) की रिपोर्ट आई थी। इसमें सामने आया था कि जो बच्चे कभी स्कूल नहीं गए, उनमें से 17% बच्चों के स्कूल न जाने का कारण आर्थिक तंगी था। जबकि, 24% बच्चे इसलिए स्कूल नहीं गए, क्योंकि वह खुद ही पढ़ना नहीं चाहते। 21% बच्चे इसलिए स्कूल से दूर हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाना नहीं चाहते।
शिक्षा और भारत
1964-66 में भारत में शिक्षा आयोग बना था। इस आयोग ने सिफारिश की थी कि भारत को शिक्षा पर अपनी GDP का कम से कम 6% खर्च करना चाहिए। हालांकि, आजतक कभी भी ऐसा नहीं हो सका। 2022-23 में केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर शिक्षा पर 7.9 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे। यह देश की GDP का 2.9% है।
इतना ही नहीं, इसी साल फरवरी में केंद्र सरकार ने बताया था कि 1.17 लाख से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक ही टीचर है। मध्य प्रदेश में ऐसे स्कूल सबसे ज्यादा 16,630 हैं।
इसके अलावा, भारत में पीपुल्स-टीचर रेशो भी काफी कम है। प्राइमरी (पहली से 5वीं तक) लेवल पर हर 20 छात्र पर 1 टीचर होना चाहिए। सिर्फ 18 राज्य ही ऐसे हैं जहां हर 20 या उससे कम छात्रों पर एक टीचर है। बिहार में हर 53 छात्र पर 1 टीचर है। दिल्ली में 33 छात्रों पर 1 टीचर है। अपर-प्राइमरी (6वीं-8वीं) लेवल पर 30 छात्र पर 1 टीचर होना चाहिए। 35 राज्य इस मानक पर खरे उतरते हैं। वहीं, सेकंडरी (9वीं-10वीं) लेवल पर भी 30 छात्र पर 1 टीचर की सिफारिश की गई है। 34 राज्य इस पैमाने पर फिट बैठते हैं।
शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, 2021-22 तक देशभर में 14.89 लाख स्कूल हैं। इन स्कूलों में 26.52 करोड़ छात्र पढ़ते हैं, जबकि 95 लाख से ज्यादा टीचर्स हैं। हालांकि, 2023 में आई टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सर्विसेस (TISS) की रिपोर्ट बताती है कि 4% सरकारी और 16% प्राइवेट टीचर्स के पास कोई प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन नहीं है।
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