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क्या है नियम 267 जिसे लेकर राज्यसभा में बरपा हंगामा?

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रूल 267 की खूब चर्चा हो रही है। यह नियम है क्या, क्यों विपक्ष इसके तहत चर्चा चाहता है, आइए समझते हैं।

Rajya Sabha

राज्यसभा में रूल 267 के तहत विपक्ष चर्चा चाहता है। (तस्वीर- संसद टीवी)

संसद के शीतकालीन सत्र में जिस संवैधानिक नियम पर रार मचा हुआ है, वह है रूल 267। आए दिन विपक्ष संसद में इस नियम को लेकर हंगामा कर रहा है जिसकी वजह से दोनों सदन बार-बार स्थगित हो रहे हैं। संसद चलाने के लिए 1 मिनट में करीब ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं। एक घंटे में डेढ़ करोड़ रुपये लेकिन हंगामा हर दिन होता है।

हंगामे की वजह से सदन में किसी भी मुद्दे पर चर्चा नहीं हो पा रही है। गौतम अडाणी, मणिपुर और संभल हिंसा जैसे कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहता था। सरकार इन मुद्दों पर बात करने से बच रही है, ऐसे आरोप लग रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि न तो लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला विपक्ष को बोलने दे रहे हैं, न ही जगदीप धनखड़। इस विवाद के केंद्र में है नियम 267, आइए जानते हैं यह है क्या?

क्या है रूल 267?
नियम 267 राज्यसभा के लिए है। राज्यसभा में किस दिन किन मुद्दों पर चर्चा होनी है इसके लिए लिस्ट पहले से तैयार होती है। अब चर्चा के लिए मुद्दे तो बहुत हो सकते हैं लेकिन विपक्ष की दिलचस्पी कुछ अहम मुद्दों पर होती है जिनके जरिए वो सरकार को घेर सके। यहीं पर काम आता है नियम 267। इस नियम के मुताबिक विपक्ष तय की गई लिस्ट में कुछ मुद्दों को चुनकर पूरा दिन उन्हीं पर चर्चा करने की मांग कर सकता है। 

विपक्ष सुबह 10 बजे से पहले ही सभापति को नियम 267 के तहत नोटिस देता है और अगर सभापति इसे स्वीकार कर लेते हैं तो लिस्ट में से बाकी मुद्दों को हटाकर उन्हीं मुद्दों पर चर्चा होती है जिनपर विपक्ष बात करना चाहता है। यह नियम तभी लागू हो सकता है जब सभापति इसकी मंज़ूरी दें यानी रिमोट कंट्रोल सभापति के ही हाथ में होता है। बस यहीं से विपक्ष का सारा खेल खराब हो जाता है।

किन मुद्दों पर चर्चा चाहता है विपक्ष?
शीतकालीन सत्र में विपक्ष अडानी, संभल हिंसा और मणिपुर पर चर्चा करने लिए नियम 267 लागू करने की मांग कर रहा था। मगर इसके लिए सभापति तैयार नहीं हुए। 29 नवंबर को हंगामा इतना ज़्यादा बढ़ गया कि राज्यसभा की कार्यवाही 2 दिसंबर सुबह 11 बजे तक स्थगित करनी पड़ी। राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करते वक्त सभापति जगदीप धनखड़ ने बताया था कि उनके पास 17 नोटिस आए थे। लेकिन सभापति द्वारा इन सबको खारिज कर दिया गया। यानी नियम 267 लागू होगा या नहीं इसका फैसला राज्यसभा अध्यक्ष ही करते हैं। 


क्यों नियम 267 पर बार-बार होता है टकराव?
2023 के मॉनसून सत्र में भी नियम 267 को लेकर राज्यसभा अध्यक्ष और विपक्ष के बीच टकराव हुआ था। विपक्ष ने मणिपुर की स्थिति पर नियम 267 के तहत चर्चा की मांग की थी। जबकि सरकार ने इस मामले पर छोटी चर्चा की अनुमति दी थी। विपक्ष इस ज़िद पर अड़ा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद सदन में आकर मणिपुर हिंसा पर जवाब दें। इस दौरान सदन में टीएमसी के सांसद डेरेक ओ'ब्रायन और चेयरमैन जगदीप धनखड़ के बीच बहस भी हुई थी। जिसके बाद धनखड़ ने उन्हें निलंबित कर दिया था। 

2023 के शीतकालीन सत्र में जगदीप धनखड़ ने नियम 267 के तहत चर्चा वाले आठ नोटिसों को खारिज किया था। इसमें चीन के साथ सीमा विवाद और जरूरी चीजों की बढ़ती कीमतों जैसे मुद्दे शामिल थे। अब लगे हाथ ये भी जान लेते हैं कि नियम 267 के तहत विपक्ष को सदन में उनके द्वारा तय किए गए मुद्दो पर चर्चा करने के लिए कब कब मंजरी मिली।

इतिहास क्या कहता है?

दिसंबर 2022 में डेरेक ओ'ब्रायनने कहा था कि 2016 के बाद नियम 267 को एक बार भी स्वीकार नहीं किया गया। इस नियम के तहत आखिरी बार नोटबंदी पर चर्चा की गई थी, जबकि पहले राज्यसभा के अध्यक्ष ऐसे नोटिसों को स्वीकार करते थे। अब ये तो हुई डेरेक ओ ब्रायन की बात लेकिन क्या वाकई पहले की सरकारो में नियम 267 के तहत विपक्ष को अपने तय किए गए मुद्दों पर बात करने की इजाज़त मिलती थी? 

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट कहती है कि नियम 267 के तहत, साल 1990 से अब तक महज़ 11 बार ही चर्चा की अनुमति दी गई है। जिसमें खाड़ी युद्ध और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर चर्चा की जा चुकी है। यानी सरकार किसी की भी रही हो नियम 267 के तहत विपक्ष को मिलने वाली पावर को अक्सर दबा दिया जाता है। 

1990-92 के बीच जब शंकर दयाल शर्मा राज्यसभा के अध्यक्ष थे, तब उन्होंने नियम 267 के तहत चार मुद्दों पर चर्चा की अनुमति दी थी। 2004 में राज्यसभा अध्यक्ष रहे भैरों सिंह शेखावत ने भी तीन बार नियम 267 लागू किया। 2013 से 2016 के बीच राज्यसभा के अध्यक्ष रहे हामिद अंसारी ने नियम 267 के तहत चार मुद्दों पर चर्चा की अनुमति दी थी।

इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इन नियम 267 के तहत विपक्ष ने जिन मुद्दो पर चर्चा की थी उनमें जम्मू-कश्मीर की स्थिति, खाड़ी युद्ध, भ्रष्टाचार, देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमले, कृषि संकट और किसानों की आत्महत्याओं के मामले शामिल थे।

क्यों चर्चा नहीं चाह रही है सरकार?
नियम 267 को खारिज करने के पीछे राज्यसभा स्पीकर की अपनी दलीलें भी हैं। जैसे जगदीप धनखड़ और सरकार के मंत्री कई बार ये कह चुके हैं कि विपक्ष सदन की कार्यवाही नहीं चलने देना चाहता। इसलिए वो नियम 267 का इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहे हैं।

अब लगे हाथ ये भी जान लीजिए कि नियम 267 में कब कब बदलाव हुए हैं। नियम 267 बनने के बाद इसमें सिर्फ एक बार संशोधन किया गया था। ये संशोधन हुआ था साल 2000 में जब अटल बिहारी वाजपेई की NDA सरकार सत्ता में थी। उससे पहले विपक्ष किसी भी मुद्दे पर चर्चा के लिए सभापति को इस नियम के तहत नोटिस दे सकता था। 

फिर चाहे वो मुद्दा लिस्ट में हो या नहीं। लेकिन साल 2000 में संशोधन के बाद इस नियम के तहत विपक्ष सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर चर्चा का नोटिस दे सकता था जो मुद्दे लिस्ट में शामिल हों यानी जो सदन द्वारा डिसाइड किए गए हों उन्हीं मुद्दों पर चर्चा हो। 

यही नहीं अगर कोई मुद्दा न्यायालय में लंबित है तो उस पर चर्चा नहीं हो सकती। लेकिन अगर रूल 267 के तहत चर्चा का नोटिस दिया जाए और चेयरमैन 267 के तहत चर्चा करने की इजाजत दे देते हैं। कुल जमा बात ये है कि नियम 267 पर चर्चा होगी या नहीं इसका फैसला लेने का एकाधिकार राज्यसभा के सभापति को होता है। 

जब विपक्ष नियम 267 पर चर्चा करने की बात करता है, तब आपने एक चीज़ और नोटिस की होगी। सरकार की ओर से कहा जाता है, नियम 267 के तहत चर्चा से पूरे दिन सिर्फ एक मुद्दे पर चर्चा हो पाएगी, जबकि नियम 176 के तहत चर्चा हो तो बाकी मुद्दों को भी उठाया जा सकता है। यही 2023 के शीतकालीन सत्र में हुआ था। जब विपक्ष सिर्फ मणिपुर हिंसा पर चर्चा की मांग कर रहा था।  

नियम 176 क्या है?
इस नियम के तहत किसी भी विषय पर तुरंत,  कुछ घंटों के अंदर या अगले दिन चर्चा की जा सकती है। यानी नियम 176 किसी विशेष मुद्दे पर छोटी चर्चा की अनुमति देता है, जो ढाई घंटे से ज़्यादा नहीं हो सकती। इसमें कहा गया है कि नियम 176 के तहय कापी ज़रूरी मुद्दे पर चर्चा शुरू करने के लिए कोई भी सदस्य लिखित रूप में नोटिस दे सकता है, बशर्ते नोटिस के साथ एक नोट भी होना चाहिए जिसमें उस मामले से जुड़ी पूरी जानकारी हो। साथ ही चर्चा शुरु करने के कारण होने चाहिए और कम से कम दो और सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।

विपक्ष किसी भी मुद्दे पर चर्चा के लिए पूरे दिन का वक्त चाहता है। जो नियम 267 के तहत संभव है, जबकि सत्ता पक्ष 176 पर अड़ा रहता है, जिसके तहत ढाई घंटे तक चर्चा हो सके। ये है नियम 267 को लेकर पूरी जानकारी। हमें आशा है कि अब तो आप समझ गए होंगे कि संसद के स्थिगित होने में नियम 267 किस तरह क्रूशियल रोल निभाता है। बाकी ये डिजिटल हिंदूस्तान है जहां विपक्ष संसद से बाहर सोशल मीडिया पर भी उन मुद्दों को जनता तक पहुंचा देता है जिसे संसद में रखने से उसे रोका जाता है।

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