उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज ने कुछ ऐसा कहा है, जिसे लेकर संसद में हंगामा बरप गया है। विपक्षी गठबंधन इंडिया के नेताओं का कहना है कि जस्टिस शेखर कुमार यादव को महाभियोग लाकर उन्हें हटा देना चाहिए। सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को कम से कम इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे लोग जज न बनने पाएं।
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में कुछ आपत्तिजनक बयान दिया था, जिसकी पूरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने तलब कर ली है। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा था कि हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा। हाई कोर्ट के जज के तौर पर यह बात नहीं बोल रहा, आप अपने परिवार को देखिए, जो बात ज्यादा लोगों को मंजूर है, उसे ही स्वीकार किया जाता है। लेकिन यह जो कठमुल्ला हैं, यह सही शब्द नहीं है लेकिन कहने में परहेज नहीं है क्योंकि वह देश के लिए बुरा है, देश के खिलाफ हैं।
जस्टिस यादव ने अपने भाषण के दौरान कई ऐसी आपत्तिजनक बातें कहीं जिनके आधार पर विपक्ष ने नाराजगी जताई है। उन्होंने देश में समान नागरिक संहिता (UCC) की वकालत भी की। अब सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस प्रकरण के बारे में रिपोर्ट तलब की है।
संसद में घिरे जज?
विपक्षी दलों के 38 से ज्यादा विपक्षी दलों के अलग-अलग सांसदों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किया। इंडिया ब्लॉक के 85 सांसद राज्यसभा में हैं। अगर उनमें से 50 सासंद हस्ताक्षर कर देते हैं तो याचिका गुरुवार को दायर की जा सकती है।
कैसे हटाए जा सकते हैं जज?
संविधान के अनुच्छेद 124(4) में जजों के खिलाफ महाभियोग दायर करना प्रावधान है। संविधान का यह अनुच्छेद कहता है, 'हाई कोर्ट के किसी जज को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा, जब तक साबित कदाचार (मिस कंडक्ट) या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद के दोनों सदनों में अपनी कुल संख्या से बहुमद द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा, मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा समर्थिन समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दिया है।'
सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रुपाली पंवार इसे आसान भाषा में बताती हैं कि किसी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम संसद में मौजूद दो तिहासी सांसद लोकसभा और राज्यसभा में होने चाहिए, जो जज के हटाने पर वोट करें। संसद के दोनों सदनों में कम से कम 50 फीसदी सदस्यों का साथ अनिवार्य है। अगर संसद से यह प्रस्ताव पारित होता है तो राष्ट्रपति के आदेश के बाद जज अपने पद से हटाए जा सकते हैं।
आधार क्या होने चाहिए?
जज का हटाया जाना न्यायपालिका के साथ-साथ संसदीय प्रक्रिया भी है। लोकसभा के स्पीकर, राज्यसभा के सभापति और सांसदों का संयुक्त फैसला इमें अहम रहता है। अब आइए समझते हैं कि कैसे जज हटाए जाते हैं-
किसी जज के खिलाफ महाभियोग लाने की प्रक्रिया जज इंक्वायरी एक्ट 1968 में बताई गई है। धारा 3 के मुताबिक कम से कम 100 लोकसभा सांसद और 50 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर महाभियोग लाने के लिए जरूरी हैं। हस्ताक्षर जुटाना पहला कदम है। जस्टिस शेखर यादव के मामले में लोकसभा सांसद सैयद रहूल्लाह मेहदी ने इसका प्रस्ताव पेश किया है, राज्यसभा में कपिल सिब्बल यह लेकर आए हैं।
समिति की क्या भूमिका है?
जब प्रस्ताव स्पीकर और चेयरमैन के सामने पेश किया जाता है, तब 3 सदस्यीय समिति का गठन जांच के लिए होता है। इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश करते हैं। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, स्पीकर या चेयरमैन के प्रतिनिधि और एक कानून के विद्वान समिति के सदस्य होते हैं।
कमेटी आरोप तय करती है, जज का मेडिकल टेस्ट करती है, जिससे जज की मानसिक स्थिति समझी जा सके। कमेटी के पास इसके नियम-कानून तय करने के अधिकार हैं, जांच पड़ताल करने और गवाहों से पूछताछ करने के आधार हैं।
समिति का काम क्या है?
जब समिति अपनी रिपोर्ट दायर कर देती है यह रिपोर्ट राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष के पास पेश किया जाता है। रिपोर्ट लोकसभा और राज्य सभा को सौंपी जाती है। अगर दोषी सच साबित होता है तो समिति इसे राष्ट्रपति के पास और संसद के दोनों सदनों में जज को बर्खास्त करने के लिए भेजती है। राष्ट्रपति के आदेश पर जज को पदमुक्त कर दिया जाता है।