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वायनाड में नाइट बैन क्यों लगता है, प्रियंका गांधी की चिंता क्या है?

वायनाड की नई सांसद प्रियंका गांधी ने लोगों को संबोधित करते हुए नाइट बैन का जिक्र किया है। नाइट बैन क्या है और कैसे यह वायनाड के लोगों के लिए समस्या है, आइए समझते हैं।

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वायनाड में प्रियंका गांधी, Image Source: Congress

केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद चुने जाने के बाद प्रियंका गांधी आज वायनाड पहुंचीं। राहुल गांधी के साथ वायनाड गईं प्रियंका ने स्थानीय मुद्दों की चर्चा करते हुए कहा कि वह यहां के लोगों के लिए लड़ेंगी। प्रियंका ने वायनाड में जारी इंसानों और जानवरों के टकराव, शिक्षा, स्वास्थ्य और नाइट बैन जैसे मुद्दों का जिक्र किया और यह जताने की पूरी कोशिश की कि वह लोगों की समस्या के बारे में जानती हैं। प्रियंका ने वायनाड के लोगों से कहा है कि उनके दफ्तर के दरवाजे सब के लिए खुले हैं और वह किसी को भी निराश नहीं करेंगी। उन्होंने लोगों से कहा कि वह मिलकर वायनाड के लिए काम करना चाहती हैं और उनसे उनकी समस्याओं को विस्तार से समझना चाहती हैं।

 

चुनाव में जीत के लिए वायनाड की जनता को धन्यवाद देते हुए प्रियंका गांधी ने कहा, 'मैं आप सभी को तहेदिल से धन्यवाद देती हूं कि आपने आज मुझे यहां पहुंचाया और और अपना सांसद बनाया। मैं आप सभी के प्रति आभार व्यक्त करती हूं कि आपने मुझे इतना कुछ दिया। संसद में आपकी प्रतिनिधि के रूप में मैं आपकी आवाज़ बुलंद करूंगी, आपकी समस्याओं का समाधान निकालने के लिए निरंतर काम करूंगी और आपके भरोसे और आपकी उम्मीदों पर आज, हर दिन और हमेशा खरी उतरूंगी।'

 

प्रियंका ने अपने भाषण में इंसानों और पशुओं के टकराव की चर्चा की। साथ ही वायनाड में लगने वाले नाइट बैन की भी बात की। आइए समझतें है कि आखिर यह नाइट बैन क्या है और क्यों वायनाड के लोगों के लिए यह एक समस्या बना हुआ है।

 

क्या है इंसानों और पशुओं का टकराव?

 

इंसानों और पशुओं के टकराव की समस्या उन राज्यों में जरूर देखी जा रही है जहां कोई अभयारण्य है। जब इंसान और पशु अपनी-अपनी रक्षा के लिए आमने-सामने टकराने लगते हैं तो यह मामला और गंभीर हो जाता है। बीते कई दशकों में जंगलों के कटाव, संरक्षित क्षेत्रों में अतिक्रमण और निर्माण और बढ़ती इंसानी गतिविधियों के चलते इस तरह के मामले बढ़ते जा रहे हैं। कहीं जंगल से भटके हुए भेड़िए, शेर, बाघ और चीते लोगों के घरों में घुस जाते हैं तो कहीं हाथी खेतों में आते हैं और किसानों से उनका टकराव होता है। भारत के अभयारण्यों के आसपास के इलाकों में यह समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। इस टकराव में मासूम जानवर, किसान और आम लोग परेशान होते हैं और इंसानों के अलावा जानवरों की भी जान जाती है।

 

यही समस्या केरल के भी कई इलाकों में गंभीर रूप ले चुकी है। केरल में बांदीपुर टाइगर रिजर्व है जहां कई अन्य तरह के जानवर भी होते हैं। इसी के बीच में से कुछ सड़कें गुजरती हैं। इसी के बीच से गुजरने वाला नेशनल हाइवे 766 लंबे समय से इंसानों और जानवरों के टकराव की बड़ी वजह रहा है। यह रास्ता कई अहम इलाकों को जोड़ता है और दूर-दराज के इलाकों में काम करने वाले लोग इसी रास्ते से होकर गुजरते हैं। जो वैकल्पिक रास्ता है वह नागरहोल टाइगर रिजर्व और थोलपेट्टी वाइल्डलाइफ सैंक्चरी से होकर जाता है यानी हर रास्ते पर जानवर ही जानवर मिलते हैं।

नाइट बैन क्या है और क्यों होता है?

 

नेशनल हाइवे 766 का 19 किलोमीटर लंबा हिस्सा इसी बांदीपुर टाइगर रिजर्व के अंदर है। कई मामले ऐसे आए जब यहां से गुजरने वाली गाड़ियों की वजह से जंगल में रहने वाले जानवर हादसे का शिकार हुए और कई बार उनकी जान भी गई। तब से यह मुद्दा चर्चा में रहा है। इसी को लेकर हुई स्टडी के बाद साल 2009 में इस टाइगर रिजर्व से गुजरने वाले ट्रैफिक पर आंशिक रूप से बैन लगा दिया गया। मौजूदा समय में रात के 9 बजे से सुबह 6 बजे तक इस रास्ते पर बैन रहता है। यानी इस समय के बीच इस रास्ते से गाड़ियां नहीं गुजर सकती हैं।

 

इसको लेकर केरल में हर तरह का प्रदर्शन हो चुका है। साल 2020 में जब इस तरह का प्रदर्शन हुआ तो स्थानीय सांसद रहे राहुल गांधी भी प्रदर्शनकारियों के बीच पहुंचे थे और उनकी मांगों का समर्थन किया था। पिछले ही महीने कर्नाटक के सीएम डी के शिवकुमार ने वायनाड में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा भी था कि सरकार हर संभव प्रयास करेगी कि नाइट बैन को खत्म किया जा सके। बता दें कि साल 2010 में कर्नाटक हाई कोर्ट को सही बताया था और साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसको जारी रखने पर अपनी सहमति दी थी। 

आंकड़ों से समझिए इंसानों और जानवरों का टकराव

 

हाल ही में संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, एक साल में हाथी के हमलों में 628 लोगों की मौत हुई है। साल 2023-24 में कर्नाटक में 48 तो केरल में 22 लोगों ने अपनी जान हाथी के हमलों में गंवाई है। साल 2023 में टाइगर के हमलों में कुल 82 लोगों की जान गई। इस साल 30 जून तक कुल 44 लोग टाइगर के हमलों में जान गंवा चुके हैं।

 

इस तरह के टकराव में इंसानों के साथ-साथ जानवरों की भी जान जा रही है। सड़क हादसों की वजह से साल 2022-23 में कुल 15 हाथियों की मौत हुई थी। 2023-24 में कुल 17 हाथियों की जान गई।

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