देश के दुश्मनों से जंग लड़ते-लड़ते, भारतीय सेना का एक मजबूत 'लड़ाका' शहीद हो गया। उसे आतंकियों ने गोली मार दी लेकिन वह अपना काम करके गया। फैंटम नाम का यह कुत्ता, सेना के डॉग स्क्वाड का हिस्सा था। इसका नाम फैंटम था। यह सेना की के-9 यूनिट का हिस्सा था। जम्मू और कश्मीर के आखनूर सेक्टर में इसकी मदद से 3 आतंकियों को सेना ने मंगलवार को ढेर कर दिया। सेना ने अपने इस जांबाज फैंटम की शहादत पर वही सम्मान दिया, जिसका वह हकदार था।
फैंटम की अंतिम विदाई ऐसी हुई, जैसी कई इंसानों को नसीब नहीं होती है। आमतौर पर गोलियां खाकर सामान्य कुत्ते भाग खड़े होते हैं लेकिन फैंटम अलग था। वह भीषण गोलीबारी के बीच अडिग खड़ा रहा। सुरक्षाबलों ने आतंकियों के खिलाफ आखनूर सेक्टर में एक सैन्य अभियान चलाया था। उन्हें जानकारी मिली कि इसी सेक्टर में आतंकी छिपे हुए हैं।
आतंकियों के खिलाफ अभियान में हुआ घायल
सेना और स्पेशल फोर्स के जवानों ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया तो फैंटम को आगे कर दिया गया। वह K9 यूनिट का हिस्सा था। इस यूनिट में एनएसजी के कमांडो भी होते हैं, उन्होंने इलाके को खाली करा लिया था। ऑपरेशन के दौरान ही सेना के इस 4 साल पुराने कुत्ते को निशाना बनाकर आतंकियों ने धावा बोल दिया। उसे कई गोलियां लगीं, जिसके बाद वह गंभीर रूप से जख्मी हो गया।
कौन था फैंटम?
फैंटम 25 मई 2020 को पैदा हुआ था। वह बेल्जियन मॉलिनोइस नल्स का कुत्ता था। ये सेना के शिकारी कुत्ते होते हैं। 12 अगस्त 2022 को फैंटम के-9 यूनिट में शामिल हुआ था। उसकी ट्रेनिंग मेरठ वेटनरी कॉर्प्स में हुई थी। फैंटम की गोली लगने की वजह से मौत हो गई। आखनूर सेक्टर के सुंदरबानी में ही फैंटम शहीद हो गया। उसकी मदद से सेना ने तीन आतंकियों को ढेर कर लिया और हथियारों का जखीरा भी बरामद हो गया।
सेना ने ऐसे किया याद
नाइट कॉर्प्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, 'साहस, वफादारी और लगन, कभी हम भूल नहीं सकते। हम अपने नायक के सर्वोच्च बलिदान को नमन करते हैं। हमारे सिपाही जब आतंकियों को तलाश रहे थे, फैंटम को दुश्मनों की गोली लग गई, उसकी वफादारी, लगन और साहस की गाथा भूली नहीं जा सकती है।'
कब सेना में भर्ती होते हैं कुत्ते?
सेना जिन कुत्तों का इस्तेमाल करती है, उनमें आधुनिक गैजेट लगाए जाते हैं, जिससे वे खुफिया जानकारियां हासिल कर सकें। आतंकियों के बेहद करीब जाकर भी वे सेना के मकसद की चीज ढूंढ लाते हैं। 13 से 15 महीने की उम्र में उनकी ट्रेनिंग होती है और 8 से 10 साल की उम्र में उन्हें रिटायर कर दिया जाता है।
8 से 10 साल में रिटायर हो जाते हैं कुत्ते
उनकी बहादुरी के लिए उन्हें वीरता पुरस्कार भी दिया जाता है। जर्मन शेफर्ड, लेब्राडोर, बेल्जियन डॉग, डॉबरमैन का इस्तेमाल आमतौर पर सेना करती है। 8 से 10 साल की उम्र में उन्हें रिटायर कर दिया जाता है। जब कुत्ते रिटायर हो जाते हैं, तब उन्हें एडॉप्शन के लिए दे दिया जाता है। जो लोग इन कुत्तों को पालते हैं उन्हें भत्ता दिया जाता है।
क्या कुत्तों की भी होती है रैंकिंग?
आर्मी यूनिट में शामिल कुत्तों की कोई रैंकिंग नहीं होती है। उन्हें आमतौर पर सेना अपने एसेट के तौर पर इस्तेमाल करती है। उन्हें सम्मान दिया जाता है लेकिन कुछ भी लिखित तौर पर नहीं होता है। साल 2016 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की दखल के बाद कुत्तों को मार डालने की प्रक्रिया रोक दी गई थी।
कुत्तों को हथियार की तरह इस्तेमाल करती है सेना
कुत्ते सेना के अहम 'हथियार'हैं, कई बार जब दुर्गम इलाकों में आतंकी छिपे होते हैं, ये कुत्ते उन्हें ढूंढ निकालते हैं और सेना को लीड मिलती है। कुत्तों पर हाई क्लास इक्विपमेंट का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे उनकी लोकेशन भी आर्मी यूनिट को मिलती रहती है।