बाघ संरक्षण के लिए दशकों तक काम करने वाले वन्य जीव संरक्षण वाल्मीक थापर नहीं रहे। 73 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया है। दिल्ली में उन्होंने अंतिम सांस ली है। ऐसे वक्त में जब लोग पेड़ों को काट रहे हैं, जंगल उजाड़ रहे हैं, तब वे पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने जुनून की वजह से चर्चा में रहते थे।
वाल्मीक थापर ने अपनी जिंदगी बाघों के संरक्षण के लिए समर्पित कर दी थी। राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क के बाघों के लिए उन्होंने 50 साल से ज्यादा काम किया। वाल्मीक थापर को बाघ संरक्षण की दिशा में मोड़ने वाले शख्स का नाम फतेह सिंह राठौर था। वाल्मीक थापर अपनी पूरी जिंदगी में बाघों पर कई डॉक्यूमेंट्री बनाई, जिनकी खूब सराहना हुई।
बाघ संरक्षण के लिए उन्होंने क्या किया था?
अपनी संवेदनशीलता और वन्य जीव संरक्षण के प्रति लगन की वजह से वे भारत के बाघ संरक्षण आंदोलन का एक चेहरा बन गए थे। साल 1988 में उन्होंने रणथंभौर फाउंडेशन की स्थापना की और 150 से ज्यादा सरकारी समितियों में काम किया। वह नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ और टाइगर टास्क फोर्स का हिस्सा रहे हैं।
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कौन थे वाल्मीक थापर?
वाल्मीक थापर पेशे से एक लेखक और फिल्ममेकर भी थे। उन्होंने 30 से ज्यादा किताबें लिखीं और संपादित कीं। उनकी चर्चित कृतियों में से एक लैंड ऑफ द टाइगर और टाइगर फायर शामिल हैं। वाल्मीक थापर ने बीबीसी, डिस्कवरी और नेशनल जियोग्राफिक के लिए कई डॉक्युमेंट्री तैयार की। उनका नैरेशन भी कमाल का था। उनकी एक डॉक्यूमेंट्री 'माई टाइगर फैमिली' बनाई थी, जिसमें उन्होंने रणथंभौर के बाघों के साथ अपने 50 साल के सफर को दिखाया था।
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ऐसे वक्त में जब लोग जंगलों को दोहन पर लगे हैं, उन्होंने अपनी आवाज, लेखनी और कैमरे के जरिए बाघों को बचाने का जुनून दिखाया। देश के लोग उन्हें उनके काम के लिए हमेशा याद रखेंगे।