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मुंबई में दक्षिण भारतीयों पर टूट क्यों पड़ी थी बाल ठाकरे की शिवसेना?

बाल ठाकरे की अगुवाई में मुंबई में सिर उठा रही शिवसेना एक समय पर दक्षिण भारतीयों के पीछे पड़ गई थी। बाल ठाकरे ने मराठी बनाम बाहरी की लड़ाई को ऐसी हवा दी थी कि इसी हवा में हिंसा का गंध फैल गई थी।

Bal Thackeray

शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे, Image Credit: Shivsena

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साल 1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी। पार्टी की स्थापना के साथ ही बाल ठाकरे ने मराठी बनाम बाहरी की लड़ाई को एक बार फिर हवा दी। ऐसी ही बातों के चलते महाराष्ट्र अलग राज्य बना था। पहले जो लड़ाई गुजराती बनाम मराठी की हुआ करती थी, बाल ठाकरे ने उसे मद्रासी बनाम मराठी कर दिया। बाल ठाकरे की शिवसेना सिर्फ मद्रासियों तक नहीं रुकी। उत्तर प्रदेश, बिहार समेत उत्तर भारत के सभी राज्यों के लोगों को 'भैया' की पहचान दे दी गई जो एक तरह से गाली का पर्याय बन गया था। इसी के दम पर बाल ठाकरे ने अपनी पार्टी की नींव रखी और खुद को भी आगे बढ़ाया।

 

राजनीति में आने से पहले वह मार्मिक नाम की एक मराठी पत्रिका के संपादक और कार्टूनिस्ट हुआ करते थे। इसी पत्रिका में बाल ठाकरे ने उन कंपनियों के मालिकों के नाम छापने शुरू किए जो महाराष्ट्र से बाहर के थे। इसी के जरिए बाल ठाकरे ने यह भी कहना शुरू किया कि इन 'बाहरी' लोगों की वजह से मराठियों को नौकरी के मौके कम मिल रहे हैं। 30 अक्तूबर 1966 को शिवसेना की पहली दशहरा रैली हुई। इस रैली में बाल ठाकरे ने दक्षिण भारतीयों को मद्रासी कहकर संबोधित किया और बेहद आक्रामक भाषण दिया।

 

गुंडई और हुल्लड़बाजी ही बन गई शिवसेना की पहचान

इसी रैली और भाषण को सुनने के बाद लौट रहे शिवसेना कार्यकर्ताओं ने उडुपी रेस्टोरेंट पर पत्थरबाजी कर दी। समय के साथ यही हरकतें शिवसेना की पहचान बन गई। शिवसेना के कार्यकर्ता कहीं भी घुस जाते, दफ्तरों में बैठे अधिकारियों से बदतमीजी करते, दक्षिण भारतीयों को 'लुंगीवाला' और उत्तर भारतीयों को 'भैया' कहकर उनका मजाक बनाते और उन पर यह कहते हुए हमले करते कि उन्होंने मराठियों की नौकरी और रोजगार पर कब्जा कर लिया है।

 

ठीक इसी तरह साल 2000 में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने बिहार के लोगों को निशाना बनाया। इतना ही नहीं, शिवसेना से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी यही किया। दरअसल, शिवसेना के बनने के समय पर मुंबई में मराठी 43 पर्सेंट के आसपास थे लेकिन कारोबार हो या सरकारी नौकरियां, सब में दूसरे राज्य के लोगों को दबदबा था। इसमें दक्षिण भारतीय प्रमुख थे। यही वजह थी कि 'पुंगी बजाओ, लुंगी हटाओ' जैसे नारे दिए गए और दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाया गया।

 

शिवसेना कार्यकर्ताओं ने धीरे-धीरे ट्रेड यूनियन पर कब्जा करना शुरू किया। यहां तक कि शिवसेना के कार्यकर्ता किसी भी कंपनी के दफ्तर में घुसकर यह तक कहते कि मराठियों को नौकरी दो। विरोध करने वालों के साथ मारपीट भी की जाती। इस तरह से बाल ठाकरे की सेना ने खुद को मराठा पार्टी के रूप में स्थापित किया। आगे चलकर वह हिंदुत्ववादी पार्टी बनने की ओर मुड़ गई और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने लगी। हालांकि, एक समय ऐसा भी था जब इसी शिवसेना ने मुस्लिम लीग से भी गठबंधन किया।

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