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भारत में क्यों हो रहीं बोरवेल की इतनी दुर्घटनाएं, क्या है सरकारी नियम?

भारत में हो रही बोरवेल की दुर्घटनाएं सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर क्यों इस तरह की घटनाएं होती हैं और इसके संबंध में क्या हैं नियम?

representational image। Photo: PTI

प्रतीकात्मक तस्वीर । फोटोः पीटीआई

राजस्थान के कोटपुतली जिले में 700 फीट गहरे बोरवेल में एक तीन साल की बच्ची गिर गई। इसके बाद बच्ची को बचाने के लिए जेसीब लगाई गई, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात की गईं।

 

जब बात इससे नहीं बनी तो रैट होल माइनर्स को बुलाया गया। वही रैट होल माइनर्स जो कि पारंपरिक तौर पर कोयला खदानों में कोयला निकालने का काम करते हैं। इसके जरिए जमीन में संकरी खुदाई की जाती है जिसमें सिर्फ एक खनिक अंदर जा सकता है।

 

भारत में यह पहली बार नहीं है कि इस तरह की खबर आ रही है बल्कि पहले भी ऐसी खबरें आती रही हैं। लगभग हर दो-तीन महीने के अंतराल पर ऐसी खबरें सु्नाई पड़ ही जाती है। ऐसे में खबरगांव आपको बता रहा है कि आखिर इसको लेकर नियम क्या हैं, आंकड़े क्या कहते हैं और सुप्रीम कोर्ट की क्या गाइडलाइन्स हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े

NDRF की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में ग्राउंड वॉटर का सबसे ज्यादा प्रयोग करने वाला देश है। इस वजह से करीब 2 करोड़ 70 लाख बोरवेल हैं।

 

रिपोर्ट के मुताबिक 2009 से लेकर अब तक 40 से ज्यादा बच्चे बोरवेल में गिर चुके हैं और इनको बचाने के लिए अपनाए गए परंपरागत तरीकों में से 70 फीसदी फेल हो चुके हैं। 

 

अगर राज्य के अनुसार देखें तो हरियाणा, तमिलनाडु और गुजरात में इस तरह की घटनाएं सबसे ज्यादा हो रही हैं जो कि कुल मामलों का 17।6 फीसदी है। इसके बाद स्थान है राजस्थान का और फिर इसके बाद स्थान आता है कर्नाटक का। फिर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश का स्थान है।

बोरवेल दुर्घटना के क्या हैं कारण

इन बोरवेल दुर्घटनाओं का मुख्य कारण यह है कि तमाम बोरवेल ढके हुए नहीं होते या ढके भी होते हैं तो उन पर अस्थायी रूप से कवर लगाए गए होते हैं, या दिखते नहीं हैं या उन पर साइनबोर्ड नहीं होते हैं।

क्या हैं सरकारी नियम

सरकारी नियम के मुताबिक बोरवेल की खुदाई के लिए अथॉरिटीज़ को 15 दिन पहले एडवॉन्स में लिखित में देना पड़ेगा। जहां बोरवेल खुदवाया जा रहा है कि वहां पर साइनबोर्ड लगाना होगा और आसपास कंटीले तारों की घेराबंदी करनी होगी। कुएं को स्टील प्लेट से ढकना होगा। यहां तक कि पंप को रिपेयर करते वक्त भी ट्यूब वेल को बिना कवर किए हुए नहीं छोड़ना है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के। जी। बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने गाइडलाइन जारी करते हुए कहा था कि देशभर में ऐसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी को देखते हुए निर्माण के दौरान कुओं के चारों ओर कंटीले तारों की बाड़ लगाना, कुएं के ऊपर बोल्ट से फिक्स किए गए स्टील प्लेट कवर का उपयोग करना और बोरवेल को नीचे से लेकर ऊपर तक भरना शामिल है।

 

साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि इन दिशानिर्देशों का व्यापक तौर पर प्रचार प्रसार किया जाए। इसके अलावा, भूमि या परिसर के मालिक को बोरवेल या ट्यूबवेल बनाने के लिए कोई भी कदम उठाने से पहले संबंधित अधिकारियों- जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट अथवा सरपंच- या भूजल या सार्वजनिक स्वास्थ्य अथवा नगर निगमों के विभाग के अधिकारियों को कम से कम 15 दिन पहले लिखित रूप से सूचित करने का निर्देश दिया गया था।

 

साथ ही न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि सभी सरकारी, अर्ध-सरकारी या निजी ड्रिलिंग एजेंसियों का पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए। अदालत ने कहा था कि निर्माण के समय कुएं के पास संकेतक लगाना भी जरूरी है ताकि लोगों को पता चल सके कि यह बोरवेल है।

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