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डिपोर्ट बनाम पुश बैक, असम से पश्चिम बंगाल तक बवाल क्यों? इनसाइड स्टोरी

पश्चिम बंगाल से असम तक भारत में घुसपैठ एक बड़ी समस्या अब भी है। अवैध प्रवासियों को कानूनी तौर पर देश से निकालने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि सुरक्षाबलों पर अब पुशबैक के आरोप लग रहे हैं। डिपोर्ट और पुशबैक का अंतर क्या है, आइए समझते हैं।

India Bangladesh Border

भारत-बांग्लादेश बॉर्डर। (Photo Credit: PTI)

पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी समझे जाने वाले लोगों पर सियासत हो रही है। उन्हें पहले बांग्लादेशी कहा गया, सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने उन्हें बांग्लादेश में धकेल दिया। पश्चिम बंगाल सरकार ने हस्तक्षेप किया तो इन्हें वापस भारत लाया गया। कहा गया कि ये भारतीय नागरिक थे, जिनकी नागरिकता से जुड़ा मुकदमा कोर्ट में लंबित है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते बुधवार को कहा कि कुछ बीजेपी शासित राज्यों में बंगाली बोलने वालों को गलत तरीके से बांग्लादेशी बताया जा रहा है। असम से भी कई लोग बांग्लादेश में धकेले गए, लेकिन बाद में उन्हें वापस लाया गया।

 

असम से लेकर पश्चिम बंगाल तक अवैध घुसपैठिए सरकार के लिए चुनौती बने हुए हैं। गुजरात, दिल्ली, झारखंड से लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों तक अवैध घुसपैठियों को आए दिन पुलिस पकड़ती है, उन्हें अपने देश वापस लौटने का दबाव बनाती है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा साफ तौर पर कहते हैं कि असम में उन्हें एक भी घुसपैठिया नहीं चाहिए। वहां डिटेंशन सेंटर भी बनाए गए हैं। असम में NRC लागू है तो यहां ऐसी समस्याएं ज्यादा देखने को मिलती हैं। खुद सीएम हिमंता कह चुके हैं कि डिपोर्टेशन की प्रक्रिया लंबी है इसलिए घुसपैठियों को पुश बैक करने की जरूरत है।

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पुशबैक की जरूरत क्यों पड़ी?

 

साल 2024 में तीसरी बार सत्ता में आने के बाद गृह मंत्रालय ने देशभर की पुलिस को अवैध रूप से रह रहे अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ने के आदेश दिए। कहा गया कि जिनके पास जाली दस्तावेज हैं, उन्हें पकड़ा जाए। पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई और तेज हो गई। गृह मंत्रालय ने राज्यों को अवैध प्रवासियों को निकालने करने का निर्देश दिया है। जमीन पर डिपोर्ट कम, पुशबैक की प्रक्रिया ज्यादा अपनाई जा रही है।


 

 

आंकड़े क्या कह रहे हैं?

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक करीब 2,500 संदिग्ध बांग्लादेशियों को धकेला गया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 10 मई 2025 को कहा कि सरकार अब कानूनी प्रक्रिया के बजाय 'पुशबैक' का रास्ता अपनाएगी, क्योंकि कानूनी प्रक्रिया लंबी है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी खुफिया अधिकारियों को 'घुसपैठियों' को पकड़कर, हिरासत में लेकर और निकालने का निर्देश दिया है।

डिपोर्ट करने और पुशबैक में क्या अंतर है?

  • डिपोर्ट
    डिपोर्टेशन या निष्काषन यह एक कानूनी प्रक्रिया है। जिस विदेशी नागरिक के पास वैध दस्तावेज नहीं है, अवैध रूप से देश में आया हो, कोर्ट ने दोषी ठहरा दिया हो, कानूनी विकल्प खत्म हो गए हों, उसे डिपोर्ट किया जाता है। डिपोर्ट के लिए वह किस देश का नागरिक है, इसका भी सत्यापन किया जाता है।
  • पुशबैक
    पुशबैक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं है। कोई नियम नहीं तय होगा है। जब सीमा पर बीएसएफ के जवान किसी विदेशी नागरिक को पकड़ते हैं तो कानूनी प्रक्रिया से अलग उन्हें सीमा से ही वापस कर देते हैं। नागरिकता और विदेशी मामलों का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। यह अधिकार ही राज्यों को निष्कासन की ताकत देता है।


भारत में बांग्लादेश से आए घुसपैठियों के खिलाफ अब अभियान तेज हो गया है। (Photo Credit: PTI)


असम में क्या हो रहा है
?

असम में घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए नए नियम को लाने की तैयारी हो रही है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में कहा था कि राज्य सरकार 1950 के एक कानून को लागू करेगी, जो अवैध विदेशियों को पहचानकर निकालने की इजाजत देता है। इस कानून के तहत डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर किसी को अवैध प्रवासी घोषित करके निष्कासित कर सकते हैं। यह कानून 1947 में भारत के विभाजन और पूर्वी पाकिस्तान के बनने के बाद सांप्रदायिक हिंसा के बीच पारित हुआ था। यह पूरे भारत में लागू है, लेकिन इसमें असम के लिए विशेष प्रावधान हैं। पूर्वी पाकिस्तान, अब बांग्लादेश है।

अप्रवासी अधिनियम, 1950 की धारा 2 कहती है, 'अगर केंद्र सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति या समूह, जो भारत के बाहर से आया है, भारत के हितों या असम की अनुसूचित जनजातियों के लिए हानिकारक है, तो उसे निश्चित समय और रास्ते से भारत या असम से हटने का आदेश दिया जा सकता है।'

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भारत में विदेशियों से जुड़े कितने कानून थे?

  • फॉरेनर्स एक्ट, 1946
  • पासपोर्ट (एंट्री इन टू इंडिया) एक्ट, 1920
  • रजिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन्स एक्ट, 1939
  • इमिग्रेशन (कैरियर्स लायबिलिटी) एक्ट, 2000
भारत-बांग्लादेश बॉर्डर। (Photo Credit: PTI)

केंद्र सरकार ने इन कानूनों की जगह इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट, 2025 के जरिए रद्द कर दिया। यह नया कानून विदेशियों के आने और जाने से जुड़ा है। नए कानून के पीछे सरकार ने तर्क दिया कि इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए लाया गया है। यह कानून अवैध प्रवासियों को हिरासत में लेने, निष्कासित करने और ब्लैकलिस्ट करने का अधिकार देता है। 

 

इन कानूनों को अप्रैल 2025 में केंद्र सरकार ने Immigration and Foreigners Act, 2025 ने रद्द कर दिया। यह नया कानून विदेशियों के प्रवेश, रहने और प्रस्थान को नियंत्रित करता है और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। इसमें अवैध प्रवासियों को हिरासत में लेने, निष्कासित करने और ब्लैकलिस्ट करने की शक्ति दी गई है।

 

देश में कहां-कहां चुनौतियां हैं?


भारत और नेपाल के बीच मुक्त सीमा समझौता है। ऐसा ही समझौता पूर्वोत्तर और म्यांमार के साथ
'प्री मूवमेंट रिजीम' का है। साल 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हुआ। मई 2023 में मणिपुर में दंगे भड़के। म्यांमार से करीब 40 हजार से ज्यादा चिन समुदाय के शरणार्थी भागकर मिजोरम में आ गए। FMR की वजह से घुसपैठ होता रहा। पूर्वोत्तर के कई मुख्यमंत्रियों ने FMR पर चिंता जताई। गृह मंत्रालय ने 2021 में मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों को कहा कि वे शरणार्थियों को पहचानकर निष्कासित करें, क्योंकि भारत 1951 के यूएन शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।


 


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क्यों पुशबैक हो रहा है?

 

पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में अवैध प्रवासियों के खिलाफ अभियान तेज हो गया। इन्हें ट्रेन के जरिए सीमावर्ती जिलों में ले जाया गया। कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि अवैध प्रवासियों को बीएसएफ ने बांग्लादेश में धकेल दिया। राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से पकड़े गए प्रवासियों को हवाई जहाज से त्रिपुरा के अगरतला ले जाया गया और फिर बांग्लादेश सीमा पर भेजा गया। पुलिस और बीएसएफ के जवान अवैध प्रवासियों के दस्तावेजों को जांचते हैं। अलग बात है कि पुशबैक को कभी BSF ने आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है।

गृह मंत्रालय ने राज्यों को निर्देश दिया कि जो प्रवासी भारतीय नागरिकता का दावा करते हैं, 30 दिनों के भीतर वे अपनी नागरिकता साबित करें। अगर सत्यापन में असफल रहे तो फॉरेनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (
FRRO) उन्हें निष्कासित कर सकता है। साल 2022 में, UIDAI को अवैध प्रवासियों को आधार कार्ड देने से रोकने के लिए 'नेगेटिव लिस्ट' बनाने को कहा गया था।

 

 

भारत-बांग्लादेश सीमा। (Photo Credit: PTI)

 

असम और पश्चिम बंगाल में बवाल क्यों हो रहा है?

  • असम की चिंता क्या है?

    असम में बांग्लादेश की ओर से होना वाला अवैध घुसपैठ दशकों से समस्या बनी हुई है। सीएम हिमंता बार-बार कहते हैं कि राज्य की डेमोग्राफी बदल रही है। साल 1979-1985 के असम आंदोलन ने अवैध प्रवासियों को हटाने की मांग की थी, जिसके बाद 1985 में असम समझौता हुआ। इसके तहत 25 मार्च 1971 के बाद आए लोगों को अवैध माना गया। 2019 में असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (
    NRC) का अंतिम मसौदा प्रकाशित हुआ, जिसमें 19 लाख लोगों का नाम नहीं आया। कई लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने अवैध नागरिक घोषित किया। यह अपील अभी लंबित है। अब BSF की पुशबैक नीति पर हंगामा हो रहा है। दावा किया जा रहा है कि कई भारतीय नागरिकों को इस नीति की वजह से बांग्लादेश भेज दिया गया है। खैरूर इस्लाम एक रिटायर्ड टीचर हैं, जिन्हें मई 2025 में बांग्लादेश भेज दिया गया। जब उनकी भारतीय नागरिकता साबित हुई तो उन्हें वापस लाया गया।

  • बांग्लादेश में क्या चिंता है?

    पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठिए बड़ी समस्या बने हुए हैं। गृहमंत्री अमित शाह तक कह चुके हैं कि राज्य सरकार अवैध प्रवासियों को आधार कार्ड दे रही है। ममता बनर्जी ने इसका खंडन किया और कहा कि बंगाली बोलने वालों को गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। पुशबैक कार्रवाइयों में कई स्थानीय बंगाली मुसलमानों पर भी आंच आई। उन्हें बांग्लादेशी कहा गय है। सीमा पर बाड़बंदी का काम पूरा नहीं हो पाया है। राज्य सरकार, केंद्र सरकार को जमीन नहीं दे रही है। अब यह धीरे-धीरे सियासी मुद्दा बनता नजर आ रहा है।

 

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