ग्रीन एनर्जी और EV के चक्कर में पानी के लिए तरसेगी दुनिया? समझिए कैसे
ग्रीन एनर्जी और ईवी को लेकर जो लहर पूरी दुनिया में चल रही है उसको लेकर दुनिया को पानी का संकट देखना पड़ सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI
न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया पर्यावरण को बचाने और ग्रीन एनर्जी की तरफ बढ़ रही है। ग्रीन एनर्जी के लिए जितने भी विकल्प हैं जैसे कि सोलर पैनल, विंड टरबाइन, इलेक्ट्रिक वाहन, इन सभी में लीथियम आयन बैटरी का प्रयोग किया जाता है।
लेकिन लीथियम आयन बैटरी को बनाने के लिए जो लीथियम धरती से निकाला जाता है उसकी अपनी कीमत है। कीमत यानी पैसों की नहीं बल्कि पर्यावरणीय कीमत।
हाल ही में एक खबर आई कि अमेरिका के टेक्सास में दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क नया लीथियम प्लांट लगा रहे हैं जिसके लिए प्रतिदिन 3 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होगी। खास बात यह है कि टेक्सास अमेरिका का सूखाग्रस्त क्षेत्र है। अब भारत में भी सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग बढ़ रही है। साथ ही कश्मीर में उसका भंडार मिलने के कारण चर्चा यहां भी शुरू हुई कि लीथियम आयन को धरती से निकाला जाए और उसे लीथियम आयन बैटरियां बनाने व सोलर पैन इत्यादि बनाने में प्रयोग किया जाए।
तो खबरगांव इस बात की पड़ताल कर रहा है कि जिस लीथियम को पर्यावरण बचाने के लिए रामबाण माना जा रहा है वह असल में पर्यावरण पर किस तरह का प्रभाव डालेगा?
पानी को लेकर बढ़ेगी परेशानी
लीथियम आयन बैटरी को बनाने के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। एक अनुमान के मुताबिक एक टन लीथियम के प्रोडक्शन के लिए 22 लाख लीटर पानी की जरूरत होगी। ऐसे में जहां पहले से ही पानी की भारी कमी है वहां पानी को इतनी ढेर मात्रा में खर्च किया जाना कितना बड़ा प्रभाव डालेगा।
इसकी वजह से स्थानीय रूप से कृषि इत्यादि के लिए प्रयोग किए जाने वाले पानी को भी लीथियम के लिए प्रयोग किया जाता है जो कि स्थानीय लोगों के जीवन पर बड़ा प्रभाव डालता है।
अगर भारत की बात करें तो यहां जम्मू कश्मीर के सलाल हैमाना में लीथियम के भंडार मिले हैं। अगर यहां पर लीथियम का उत्पादन किया जाता है तो हिमालय के पर्यावरण पर काफी प्रभाव पडे़गा।
इसके अलावा भारत में जिस तरह से भूमिगत जल का दोहन किया जा रहा है उसे देखते हुए इसका उत्पादन काफी नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
देश में पहले से ही भूमिगत जल काफी नीचे जा रहा है। इस वक्त भूमिगत जल के दोहन का आंकड़ा 60 फीसदी है।
हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दादर और नगर हवेली, दमन और दीव जैसे राज्यों में तो भूमिगत जल को निकालने की दर 100 प्रतिशत से भी ज्यादा है।
ऐसे में अगर भारत में लीथियम को निकाला जाता है तो वाटर टेबल और ज्यादा नीचे चला जाएगा जिससे देश के उन क्षेत्रों में भारी जल संकट का सामना करना पड़ सकता है जहां पर बड़ी जनसंख्या अभी भी भूमिगत जल पर निर्भर है।
इसके अलावा नेचुरल स्रोतों से मिलने वाला जल भी दूषित हो जाता है, इससे तमाम तरह की बीमारियां फैल सकती हैं।
इसके अलावा अन्य तरह के प्रदूषण का भी खतरा बढ़ता है।
ग्रीन हाउस गैस
लीथियम आयन को निकालने से कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बाहर निकलती है जो कि एक तरह की ग्रीन हाउस गैस है. यह ग्लोबल वॉर्मिंग में बड़ी भूमिका निभाती है। अनुमान के मुताबिक एक टन लीथियम के निष्कर्षण में 15 टन कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है।
केमिकल रिलीज
लीथियम को जमीन को निकालने से मिट्टी में अन्य कई केमिकल भी रिसकर नीचे पहुंच जाते हैं जो कि न सिर्फ मिट्टी प्रदूषित होती है बल्कि कृषि को भी नुकसान पहुंचता है। साथ ही तमाम केमिकल्स एजेंट्स को ट्रांसपोर्ट करते वक्त भी अप्रत्यक्ष रूप से वायु की क्वालिटी को नुकसान पहुंचता है।
विस्थापन की समस्या
जिस स्थान से लीथियम को निकाला जाता है वहां से तमाम लोगों का विस्थापन होता है। साथ ही जहां पर खनन किया जाता है वहां पर तमाम तरह के टॉक्सिक या जहरीले केमिकल निकलते हैं जो कि आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है।
बढ़ रही लीथियम की मांग
वर्ल्ड बैंक की एक स्टडी के मुताबिक लीथियम और कोबाल्ट की मांग बढ़ती जा रही है और यह 2050 तक 5 गुना बढ़ने वाली है. जैसे जैसे पूरी दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग में वृद्धि होगी वैसे वैसे ही लीथियम की मांग भी बढ़ने वाली है। अगर भारत की बात करें तो अभी प्रतिवर्ष
18.2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और साल 2028 तक इसके 23.76 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ने की संभावना है। भारत में अभी लीथियम का आयात ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंनटीना से लीथियम आयन सेल का आयात चीन व हॉन्गकॉन्ग से होता है।
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