पॉलिथीन, बोरियां और मूर्तियां, यमुना में क्या डाल रहे हैं दिल्लीवासी?
दिल्ली में यमुना नदी में सफाई की जा रही है और ओखला बैराज के आगे नदी में पानी ही नहीं है। पानी न होने की स्थिति में नदी में जमा कूड़ा-कचरा अब नदी की स्थिति बता रहा है।

यमुना में प्रदूषण की स्थिति, Photo Credit: Khabargaon
चुनाव के बाद दिल्ली में सरकार बदल चुकी है। अब बारी है यमुना नदी की तस्वीर बदलने की। सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी (BJP) का कहना है कि वह अगले दो-तीन साल में यमुना को साफ करके दिखाएगी। इसके लिए उपराज्यपाल ऑफिस की ओर से भी चार सूत्रीय एक्शन प्लान बनाया गया है। कोशिश है कि दिल्ली में दूषित हो रही यमुना को इतना साफ किया जाए कि जब वह दिल्ली के बाहर निकले तो उसका पानी उतना ही साफ रहे जितना दिल्ली में प्रवेश के समय होता है। इसी क्रम में दिल्ली में यमुना नदी में कई मशीनें उतारी गई हैं जो नदी के ठोस कचरे और वनस्पतियों को निकालकर उसे बाहरी रूप से साफ करने का काम कर रही हैं।
दिल्ली में वजीराबाद घाट से लेकर वासुदेव और आईटीओ घाटों काफी हलचल है, इस सबसे दूर ओखला बैराज के उस पार यमुना एकदम शांत है। ओखला बैराज पर कुल 27 गेट हैं। 24 फरवरी की दोपहर में लगभग सभी गेट बंद मिले। यहां से पीछे यमुना में लबालब पानी भरा है लेकिन आगे यमुना का तल एकदम सूखा हुआ है। यमुना का पानी सूखने से वह सच बाहर आ रहा है जो शायद यमुना का पानी अपनी गहराई में छिपा लेता है। मौजूदा समय में नदी के तल यानी रिवर बेड में कूड़ा-करकट पड़ा हुआ है। आमतौर पर लोग यहां नदी पर बने पुल से पूजा सामग्री जैसी चीजें फेंक देते हैं लेकिन यमुना के रिवर बेड में कई जगहों पर पड़ा कूड़ा इस बात की गवाही दे रहा है कि नदी में सिर्फ पूजा सामग्री ही नहीं डाली जा रही है।
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नदी के बेड में क्या है?
स्वेटर, बैग, सोफा कवर, गाड़ियों के ब्रेक, कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट (C&D वेस्ट) और प्लास्टिक की बोरियां इस समय यमुना की रेत में उतराई हुई दिख रही हैं। रोचक बात यह है कि कुछ ही इलाके में नदी में रेत दिखती है। नदी में रेत दिखना सामान्य है लेकिन नदी का कुछ हिस्सा प्लास्टिक और C&D वेस्ट से ढके होने के कारण ऐसा हो चुका है कि उन चीजों को हटाने पर भी नदी का तल नहीं दिखता। ऐसी स्थिति में जलीय जीवों का जीवित रहना असंभव है। नदी का एक बड़ा हिस्सा ऐसी चीजों से पटा हुआ है जो नदी के नीचे पानी जाने से रोकता है और यहां से वाटर रीचार्ज होना भी असंभव है।
खबरगांव की टीम ने पाया कि ओखला बैराज के पार यमुना नदी के तल पर सीमेंट की बोरियां, प्लास्टिक में भरा कूड़ा, दूध की थैलियां, प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) से बनी मूर्तियां, चमड़े की चीजें भी पड़ी हुई हैं। कई जगहों पर इन चीजों के जमा हो जाने के चलते नदी की सतह सख्त हो गई है और उस सतह पर आप आराम से गाड़ी भी चला सकते हैं। नदी की सतह के लगभग 200 मीटर क्षेत्र में कहीं पर भी कोई पौधा या कोई जीव नहीं मिला। यह दिखाता है कि इस नदी के तल में ऐसी चीजें ही पड़ी हैं जो यहां नहीं होनी चाहिए।
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नदी के किनारे हमें कुछ ऐसे लोग दिखे जो किसी की लाश दफनाने आए थे। वे नदी के किनारे पर उस लाश को दफनाकर चले गए। इन लोगों ने लाश दफनाने के लिए फावड़े जैसी चीज से एक कम गहरा गड्ढा खोदा। यह दर्शाता है कि जब पानी भरेगा तो यह लाश फिर से पानी में उतरा जाएगा। वैसे आम तौर पर यहां तक यमुना में पानी नहीं ही रहता है। नदी में चलते-चलते हमें मुश्किल से 100 मीटर तक ही रेत मिली। इसके आगे नदी का तल पूरी तरह से प्लास्टिक और C&D वेस्ट से भरा हुआ था।
जिस जगह पर थोड़ा सा पानी है भी वहां का पानी एकदम सड़ा हुआ और बदबूदार है। नदी का पानी इतना कम है कि आप पैदल ही नदी को पार करके उस तरफ भी जा सकते हैं। इस थोड़े से पानी में ही लोगों ने मूर्तियां, प्लास्टिक की पन्नियों में भरा कचरा और मेडिकल वेस्ट जैसी चीजें तक फेंकी गई हैं। आसपास चील भी मंडरा रहे हैं जो यह दर्शाते हैं कि यहां सड़ी हुई चीजें मौजूद हैं, जो कि नदी के तल में बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए।
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पुल पर नहीं है कोई जाली
इसकी एक बड़ी वजह यहां बना पुल है। जहां दिल्ली में यमुना पर बने ज्यादातर पुलों पर जालियां लगाई हैं, इस पुल पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। नदी के तल से बाहर आने के बाद जब हम पुल पर पहुंचे तो 20 मिनट के अंदर ही कई लोग पुल से बेहद आराम से पूजन सामग्री और पॉलिथीन में भरा अन्य कचरा डालते दिखे। इतना ही नहीं, नदी पर मक्के की छल्ली बेचने वाली कई रेहड़ियां भी लगती हैं।
वैसे तो नेशनल ग्रीन टाइब्यूनल (NGT) के आदेशानुसार, नदी में कूड़ा फेंकने पर कम से कम 5 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है लेकिन इस पुल पर ऐसा कोई शख्स ही नहीं दिखा जो इन लोगों को रोक सके या फिर उन्हें इसके बारे में जागरूक करे। इसका नतीजा यह है कि पुल के पास वाले हिस्से में नदी में पूजा सामग्री और अन्य कचरे का अंबार लगा हुआ है। रोचक बात यह है कि यहां पूजा सामग्री के अलावा भी बहुत सारी चीजें फेंकी गई हैं जिनका पूजा-पाठ या धार्मिक आस्था से कोई लेना-देना ही नहीं है।
यहां नदी के तल में इस समय पानी नहीं है लेकिन दिल्ली में हो रही यमुना की सफाई के चलते नदी का पानी रोका गया है। वहां लबालब पानी भरा होने के चलते इस तरह की गंदगी दिखाई नहीं दे रही है।
यमुना के पानी के बहाव के बारे में हमने ओखला बैराज पर काम करने वाले एई धीरज कुमार से बात की। उन्होंने बताया, 'हर दिन हमें यहां से कम से कम 354 क्यूसेक पानी छोड़ना होता है। इससे कम तो कभी नहीं छोड़ा जा रहा है। यहां से आगरा कैनाल में अधिकतम 4000 क्यूसेक पानी छोड़ना होता है लेकिन इतना पानी उपलब्ध नहीं होता।' क्या दिल्ली में यमुना की सफाई से जुड़ी वजहों से गेट बंद किए गए हैं? इस सवाल के जवाब में धीरज कुमार ने कहा, 'ऐसा कुछ नहीं है, जब पानी ज्यादा होता है तो हम बैराज के गेट खोलते ही हैं। फिलहाल, पानी कम है तो न्यूनतम मात्रा में ही पानी छोड़ा जा रहा है।'
नुकसान क्या है?
नदी में प्लास्टिक प्रदूषण की एक बड़ी वजह है। ओखला बराज से पहले दर्जनों नाले यमुना में गिरते हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर ठोस कचरा भी देखा जा सकता है। OECD ग्लोबल आउटलुक डेटाबेस के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक कचरे का उत्पादन 353 मिलियन टन तक पहुंच चुका है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग हर साल 92 मिलियन टन कचरे का निपटारा सही से नहीं हो पाता है औऱ इसमें से 13 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा हर साल नदियों में पहुंच जाता है। नदियों से होता हुआ यही कचरा समुद्र में पहुंचता है।
यमुना के तल पर दिख रही रस्सियां, जाली, प्लास्टिक नेट, बोरियां और अन्य पॉलिथीन मछलियों और अन्य जलीय जंतुओं के लिए नुकसानदायक हैं। कई बार मछलियां इन चीजों में फंसकर दम तोड़ देती हैं।
पानी का बंटवारा
हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच साल 1994 में हुए समझौते के मुताबिक, दिल्ली मार्च से जून के बीच यमुना से 0.076 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी ले सकता है। साल भर में दिल्ली को कुल 0.724 बिलियन क्यूबिक मीटर यानी लगभग 435 MGD पानी ही यमुना से लिया जा सकता है। यही सुनिश्चित करने के लिए ये बैराज बनाए गए हैं। साथ ही, ये बैराज बाढ़ नियंत्रण के काम भी आते हैं।
दिल्ली में यमुना
दिल्ली में यमुना नदी पल्ला गांव से प्रवेश करती है और ओखला में उत्तर प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। पल्ला गांव से थोड़ा आगे वजीराबाद बैराज है। दिल्ली के अंदर आईटीओ बैराज है और आखिर में यह ओखला बैराज है। एक रोचक बात यह भी है ये तीनों ही बैराज तीन अलग सरकारों के अधीन आती है। वजीराबाद बैराज का प्रबंधन दिल्ली सरकार के पास है। आईटीओ बैराज का प्रबंधन हरियाणा सरकार और ओखला बैराज का प्रबंधन उत्तर प्रदेश सरकार के पास है।
दिल्ली में हिंडन कट कैनाल यमुना नदी में गिरती है जो हिंडन नदी पर गाजियाबाद में बने बैराज से पानी लेकर आती है। इसी तरह यमुना पर बने ओखला बैराज से आगरा कैनाल निकलती है जिसका पानी कई जिलों से होते हुए फिर यमुना नदी में ही मिल जाता है।
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