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Gen Z और नेपाल का लोकतांत्रिक भविष्य, कितनी बदलेगी तस्वीर?

नेपाल की नई पीढ़ी ने भ्रष्टाचार और अस्थिरता के ख़िलाफ़ उठाई आवाज़। अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की और उनकी टीम के सामने लोकतंत्र को फिर से मज़बूत करने की चुनौती।

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नेपाल में प्रदर्शन, File Photo Credit: PTI

हिमालय और माउंट एवरेस्ट वाला देश नेपाल आज बदलाव के तूफ़ान से गुजर रहा है। यह बारिश या हवा का तूफ़ान नहीं, बल्कि उसके युवाओं के नेतृत्व में आया बदलाव का तूफ़ान है। जेन ज़ेड यानी जेन ज़ी– यह नई पीढ़ी – लोकतंत्र को फिर से मजबूत बनाने के लिए संकल्पित है। पिछले कुछ हफ़्तों में नेपाल के युवाओं ने साफ़ कर दिया कि वे अब भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और राजनीतिक अस्थिरता के सामने चुप नहीं बैठेंगे। वे सड़कों पर उतरे हैं और ऑनलाइन भी आवाज़ उठा रहे हैं, एक ऐसी सरकार की मांग कर रहे हैं जो सुने और एक ऐसी व्यवस्था की जो परिणाम दे।


चिंगारी


सितंबर 2025 की शुरुआत में सरकार ने 26 सोशल मीडिया ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और डिस्कॉर्ड शामिल थे। नेपाल के युवाओं के लिए ये सिर्फ़ मनोरंजन के साधन नहीं थे; ये उनकी क्लासेज, सार्वजनिक मंच और विचार-विमर्श के स्थान थे। यह प्रतिबंध ऐसा लगा मानो किसी ने उनकी आवाज़ छीन ली हो। इसी समय “नेपो किड्स” नामक एक बहस सोशल मीडिया पर चल रही थी। इसमें नेताओं के बच्चों की आलीशान ज़िंदगी– महंगी कारें, विदेश यात्राएं, बड़े-बड़े घर– दिखाए जा रहे थे जबकि हज़ारों युवा रोज़गार के लिए संघर्ष कर रहे थे या विदेश जाने को मजबूर थे। यह प्रतिबंध आख़िरी क़दम साबित हुआ जिसने युवाओं का धैर्य तोड़ दिया।


विरोध और नुकसान


कुछ ही दिनों में हज़ारों युवा काठमांडू और अन्य शहरों की सड़कों पर उतर आए। वे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे थे और न्याय की मांग कर रहे थे। शुरू में प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे लेकिन जब पुलिस ने बल का इस्तेमाल किया तो ग़ुस्सा भड़क उठा। कुछ प्रदर्शनकारियों ने सरकारी दफ़्तरों में घुसकर तोड़फोड़ की। संघीय संसद परिसर के हिस्से और कई अन्य दफ़्तरों में आग लगा दी गई। झड़पों में सत्तर से अधिक लोग मारे गए, जिनमें प्रदर्शनकारी और पुलिस दोनों शामिल थे और दो हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए। 16 सितंबर को परिवारजन काठमांडू में अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए इकट्ठा हुए, जिन्होंने बदलाव की उम्मीद में घर छोड़ा था लेकिन वापस नहीं लौटे।


एक अहम नया दौर


राजनीतिक संकट तब गहराया जब प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने इस्तीफ़ा दे दिया। देश को कोई भरोसेमंद नेता चाहिए था जो अशांति के बीच उसे दिशा दे सके। एक ऐतिहासिक क्षण में, युवा कार्यकर्ताओं और नागरिक समूहों ने फिर तकनीक का सहारा लिया – इस बार ऑनलाइन पोल और यहां तक कि गेमिंग ऐप डिस्कॉर्ड का उपयोग करके अंतरिम नेता का नाम सुझाया। उन्होंने न्यायमूर्ति सुशीला कार्की, नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश, को चुना, जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष के लिए जानी जाती हैं। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया जबकि संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री को संसद का सदस्य होना चाहिए।


कार्की का काम साफ़ और तात्कालिक है: सड़कों पर शांति बहाल करना, देश को इस कठिन समय से निकालना, और 5 मार्च 2026 को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना। उन्होंने एक छोटा, तकनीकी दृष्टिकोण वाला मंत्रिमंडल बनाया है। कुलमान घिसिंग, जिन्होंने नेपाल की लंबी बिजली कटौती समाप्त की थी, ऊर्जा मंत्री बने। भ्रष्टाचार-विरोधी वकील ओम प्रकाश आर्यल गृह मंत्री हैं। वित्त विशेषज्ञ रमेश्वर खनाल को अर्थव्यवस्था की ज़िम्मेदारी दी गई है।


यह चरण बेहद महत्वपूर्ण होगा। अंतरिम टीम एक नाराज़ लेकिन उम्मीद से भरी पीढ़ी की उम्मीदों को अपने कंधों पर लिए चल रही है। उन्हें क़ानून-व्यवस्था और संवाद के बीच संतुलन रखना होगा, सरकारी संस्थाओं में भरोसा वापस लाना होगा और यह साबित करना होगा कि सार्वजनिक पद सेवा के लिए होते हैं, विशेषाधिकार के लिए नहीं। सभी दलों के राजनीतिक नेताओं को अब यह साफ़ संदेश मिल चुका है: वे अब युवाओं को हल्के में नहीं ले सकते।


शोक और उपचार


17 सितंबर को नेपाल ने राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया। झंडे आधे झुके और देश ने उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवाई। प्रधानमंत्री कार्की ने पीड़ित परिवारों की मदद का वादा किया और उनकी स्मृति में एक पार्क बनाने की घोषणा की। उन्होंने हिंसा की न्यायिक जांच का आदेश भी दिया, यह वादा करते हुए कि उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी और जवाबदेही हर स्तर तक पहुंचेगी।


आगे का रास्ता


नेपाल की लोकतांत्रिक यात्रा कभी आसान नहीं रही। 2008 में राजतंत्र समाप्त होने के बाद, देश ने दो दशकों से कम समय में पंद्रह से अधिक सरकारें देखी हैं। भ्रष्टाचार, राजनीतिक झगड़े और अल्पकालिक गठबंधन ने जनता के विश्वास को कमज़ोर किया है। जेन ज़ेड का आंदोलन दिखाता है कि नागरिक, ख़ासकर युवा, अब खोखले सुधारों का इंतज़ार नहीं करेंगे। वे पारदर्शिता, सम्मान और ऐसी सरकार चाहते हैं जो सभी के लिए काम करे– न कि सिर्फ़ कुछ शक्तिशाली परिवारों के लिए।


आने वाले महीने तय करेंगे कि नेपाल का लोकतंत्र फिर से मज़बूत हो पाएगा या नहीं। अगर अंतरिम सरकार समय पर निष्पक्ष चुनाव करा पाती है, पीड़ितों को न्याय दे पाती है और युवाओं को उम्मीद से जोड़े रख पाती है, तो एक मज़बूत नेपाल उभर सकता है। वरना ग़ुस्सा फिर भड़क सकता है और देश फिर संकट में जा सकता है।


भारत और दुनिया


भारत, नेपाल के सबसे नज़दीकी पड़ोसी और साझेदार देश ने कार्की की नियुक्ति का स्वागत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी और शांति बहाल करने में सफलता की शुभकामनाएं दीं। भारत, जिसके नेपाल से गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैं, अपने पड़ोसी को स्थिर और लोकतांत्रिक देखना चाहता है। नई दिल्ली के पर्यवेक्षकों का कहना है कि सहयोग ऐसा होना चाहिए जो नेपाल की स्वतंत्रता का सम्मान करे और उसके नागरिकों को अपना रास्ता चुनने का अवसर दे।


एक नई सुबह


काठमांडू की घाटियों से लेकर पोखरा की पहाड़ियों तक, एक नया माहौल बन रहा है। प्रदर्शन दर्द की आवाज़ थे लेकिन उम्मीद का संकेत भी। नेपाल के युवाओं ने दिखा दिया है कि लोकतंत्र केवल बड़ों या अभिजात्य वर्ग की संपत्ति नहीं हैं– यह हर नागरिक का अधिकार है। उन्होंने डिजिटल साधनों का उपयोग किया, यहां तक कि गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म डिस्कॉर्ड पर भी, नेताओं और विचारों पर चर्चा के लिए। उनका साहस याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक नवीकरण अक्सर आम लोगों से शुरू होता है, जो बेहतर भविष्य का सपना देखने का साहस रखते हैं।


आगे की राह आसान नहीं होगी। चुनाव कराना, पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाना और सितंबर के घाव भरना ज़रूरी है। लेकिन विद्रोह की राख से एक ज़िम्मेदार नेपाल उभर सकता है। हिमालयी देश में जो कहानी आकार ले रही है, वह सिर्फ़ विरोध की कहानी नहीं है; यह जागृति की कहानी है। यह उस पीढ़ी की कहानी है जो लोकतंत्र के वादे से पीछे हटने को तैयार नहीं।
 

 

 

नोट: यह लेख कमलकांत दाश ने लिखा है। लेखक विदेश नीति विश्लेषक और स्कॉलर हैं।

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