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राहुल गांधी की आंबेडकर भक्ति, कांग्रेस के व्यवहार पर उठते गंभीर प्रश्न

कांग्रेस पार्टी का प्रेम अचानक डॉ. आंबेडकर के प्रति जागा है जबकि यही कांग्रेस लंबे समय तक लगभग हर कदम पर डॉ. आंबेडकर का विरोध करती रही।

rahul gandhi protesting in parliament

संसद में प्रदर्शन करते राहुल गांधी, Photo: PTI

लेखक-विजयदेव झा 
 
भारत के कुछ गांवों में एक कहावत है: “हँसुए का धार हँसुए की तरफ ही मुड़ता है।” इसलिए जब राहुल गांधी खुद को बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का सबसे बड़ा चैंपियन साबित करने के लिए तथाकथित धक्का-मुक्की पर उतर आए हैं तो उन पर शंका और सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। आखिर जिस व्यक्ति को जवाहरलाल नेहरू पसंद नहीं करते थे और जिसे पूरी कांग्रेस नापसंद करती रही, उस बाबा साहब को राहुल गांधी अचानक माथे पर क्यों उठाए फिर रहे हैं?
 
राहुल गांधी को सद्बुद्धि आ गई होगी, ऐसा संभव नहीं है। आप बाबा साहब का सम्पूर्ण वांग्मय पलटकर देख लीजिए, आपको पता चल जाएगा कि नेहरू और उनकी पार्टी ने उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया। देश के पहले आम चुनावों में आंबेडकर को हराने के लिए नेहरू ने खुद मोर्चा संभाला था। ऐसा नहीं था कि उस चुनाव में कांग्रेस को कहीं से कोई चुनौती थी। यह एक विपक्ष-विहीन चुनाव था, जिसमें कांग्रेस ने 364 सीटें जीती थीं। अब अगर बाबा साहब एक सीट जीत भी लेते तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता?
 
ऐसा तो नहीं है कि आंबेडकर योग्य व्यक्ति नहीं थे। जिस व्यक्ति ने संविधान निर्माण में योगदान दिया, उसे सम्मान देते हुए सहजता से जीतने देना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत, नारायण सदोबा काजरोलकर को आंबेडकर के खिलाफ खड़ा करने वाले नेहरूजी ही थे और उन्होंने काजरोलकर को पद्म पुरस्कार तक दिलाया। बाबा साहब ने स्पष्ट कहा था कि उन्हें धांधली कर हराया गया। चुनाव में हराने के बाद नेहरूजी ने लेडी एडविना को पत्र लिखकर इस पर खुशी जताई थी।
 
चुनाव हारने और राजनीति से यूं दरकिनार किए जाने के बाद आंबेडकर अवसादग्रस्त हो गए और 1956 में उनका निधन हो गया। निधन से पहले उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। जब बाबा साहब ने सवर्ण हिंदुओं द्वारा भेदभाव और दलित समुदाय के प्रति उपेक्षा पर अपनी वेदना प्रकट की तो वह नेहरू-युग ही था।
 

आंबेडकर को अंग्रेज समर्थक बताते थे नेहरू

 
26 जनवरी 1946 को नेहरूजी ने राजकुमारी अमृत कौर को पत्र लिखकर कहा था कि बाबा साहब अंग्रेज समर्थक हैं। उन्होंने कांग्रेस और पार्टी नेताओं का अपमान किया है और जब तक वह इस अपमान के लिए माफी नहीं मांगते, उनसे कोई बात नहीं होगी।
 
अब जब गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं, तो क्या राहुल गांधी देश की जनता को बताएंगे कि नेहरूजी का आंबेडकर के प्रति व्यवहार सही था या गलत? क्या वह नेहरूजी के इस आचरण के लिए देश की जनता से माफी मांगेंगे?
 
आंबेडकर को नेहरूजी के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा और नेहरूजी ने उनका इस्तीफा स्वीकार करने में एक दिन की भी देरी नहीं की। आंबेडकर इस देश की संसद को अपने इस्तीफे का कारण बताना चाहते थे, मगर उन्हें अभिव्यक्ति की वह स्वतंत्रता भी नहीं दी गई। राहुल गांधी ने अगर इतिहास पढ़ा हो तो वह इसका कारण बता सकते हैं।
 
जब सम्मान देने की बारी आई तो नेहरूजी ने खुद को भारत रत्न दे दिया। इंदिरा गांधी ने भी अपने पिता के मार्ग पर चलते हुए खुद को भारत रत्न दे दिया। राजीव गांधी ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि उनका असामयिक निधन हो गया लेकिन उनके निधन के एक साल के भीतर कांग्रेस सरकार ने उन्हें भारत रत्न दे दिया। आंबेडकर को भारत रत्न 1990 में दिया गया और वह भी गैर-कांग्रेसी सरकार द्वारा। राहुल गांधी, जो आज आंबेडकर भक्ति का ढोंग कर रहे हैं, उन्हें इसका जवाब देना चाहिए।
 
भारत रत्न की बात छोड़िए, कांग्रेस ने संसद के सेंट्रल हॉल में आंबेडकर की तस्वीर तक नहीं लगने दी। मतलब, आपके बाप-दादा आंबेडकर को अपमानित करते रहे और आज आप चले हैं आंबेडकर के सम्मान की रक्षा करने। 2004 में सोनिया गांधी के संरक्षण वाली मनमोहन सिंह सरकार सत्ता में आई। 2006 में उनकी सरकार ने स्कूली पाठ्य-पुस्तकों में एक अति-घृणित कार्टून जोड़ दिया, जिसमें भारत के संविधान को घोंघे के रूप में दिखाया गया है। उस घोंघे पर आंबेडकर सवारी कर रहे हैं और नेहरूजी उन्हें कोड़े मार रहे हैं।
 
क्या यह कार्टून कांग्रेस सरकार की जानकारी के बिना पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया था? आंबेडकर और नेहरू-कांग्रेस प्रसंग की अगर गहनता से समीक्षा करें तो एक भाव यह भी पैदा होता है कि क्या नेहरूजी भारतीय राजनीति और बौद्धिक विमर्श के क्षेत्र में आंबेडकर को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते थे? क्या नेहरूजी नहीं चाहते थे कि आंबेडकर उनसे श्रेष्ठ साबित हों? कम से कम उपलब्ध साक्ष्यों के आलोक में इस मान्यता को सिरे से नकारा नहीं जा सकता।
 
यह तो सर्वविदित है कि कांग्रेस और उसके इको-सिस्टम ने नेहरूजी को एक ऐसे 'न भूतो न भविष्यति' महामानव और महान राजनेता के रूप में स्थापित किया है, जिनके आसपास कोई अन्य ठहर नहीं सकता। सड़क, भवन, इमारत से लेकर डाक टिकट और पुरस्कारों के सबसे अधिक नाम नेहरूजी के ही खाते में हैं। नेहरूजी कुलीन थे और आंबेडकर दलित। नेहरूजी के पास प्रचार तंत्र था, जबकि आंबेडकर के पास प्रतिभा। नेहरूजी को स्थापित करने की यह कोशिश आज भी जारी है।
 

राहुल गांधी और आंबेडकर

 
राहुल गांधी चाहते हैं कि इतिहास की विवेचना उनकी सुविधानुसार हो, क्योंकि आज तक ऐसा ही होता आया है। राहुल गांधी स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण में अपने पुरखों के योगदान का फल खाना तो चाहते हैं, मगर उनके कुकृत्यों और गलतियों के लिए खेद व्यक्त करना नहीं चाहते। फिलहाल, ऐसा ही प्रतीत होता है कि वह नहीं मानते कि जवाब देना उनकी जिम्मेदारी है।
 
स्वयं राहुल गांधी भी आंबेडकर को अपमानित करने के दोष से मुक्त नहीं हैं। 2017 में नेशनल हेराल्ड में सुधींद्र कुलकर्णी का एक लेख प्रकाशित हुआ था-'Nehru Stands Above Ambedkar in the Writing of India’s Constitution' बताने की आवश्यकता नहीं है कि सुधींद्र कुलकर्णी कौन हैं, और कांग्रेस पार्टी का मुखपत्र नेशनल हेराल्ड नेहरू-गांधी परिवार की मिल्कियत है।
 
2024 में इसी विषय पर सुधींद्र कुलकर्णी का दूसरा लेख एक वामपंथी न्यूज़ वेबसाइट पर छपा- 'Who Contributed More to the Constitution and Its Preamble? Nehru, Not Ambedkar' गौर करने वाली बात यह है कि इस लेख को राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु सैम पित्रोदा ने ट्विटर पर जारी किया और लिखा, “बाबा साहब का दिया संविधान और बाबा साहब को भारतीय संविधान का निर्माता कहना भारत का सबसे बड़ा झूठ है।”
 
क्या आंबेडकर आज भी नेहरूजी के कद के बराबर होने के अपराध की कीमत चुका रहे हैं? राहुल गांधी को आंबेडकर 2019 में तब याद आए जब उनकी पार्टी दूसरी बार बुरी तरह चुनाव हार चुकी थी। ऐसे में उन्होंने जाति को मास्टरस्ट्रोक के रूप में इस्तेमाल करने का निश्चय किया। मगर दिक्कत यह है कि उनके पुरखों और पार्टी ने आंबेडकर के साथ कुछ ऐसा व्यवहार किया, जिसे भुलाना मुश्किल है।
 
अगर आंबेडकर के प्रति राहुल गांधी की निष्ठा है, तो उन्हें अपनी पार्टी और पुरखों के कृत्य के लिए माफी मांगनी चाहिए। नीला वस्त्र धारण कर लेने से कोई आंबेडकर के विचारों को आत्मसात नहीं कर सकता। यह ठीक पंचतंत्र की उस सियार की कहानी की तरह है, जो गलती से धोबी के नील रंग के हौज में गिरकर नीला बन गया था।
 
डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त बातें लेखक का निजी विचार हैं। लेख में व्यक्त बातों को खबरगांव का विचार न समझा जाए।
 
 

 

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