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नुकसान के बाद भी 'सोशल इंजीनियरिंग' क्यों कर रही कांग्रेस?

कांग्रेस हर चुनाव में जाति आधारित जनगणना की मांग कर रही है। चुनावी कैंपेन इसी के इर्दगिर्द घूम रहा है। क्यों कांग्रेस को इस रणनीति पर इतना भरोसा है, विस्तार से समझते हैं।

Rahul Gandhi

कांग्रेस नेता राहुल गांधी। (Photo Credit: PTI)

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हों या राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का, कांग्रेस की राजनीति 'जातिगत जनगणना' के आसपास घूमती है। राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में खुलकर कहते हैं कि जिस वर्ग की जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। वह चाहते हैं कि आबादी के हिसाब से आरक्षण में वर्गों को प्रतिनिधित्व मिले। कांग्रेस की इस मांग का हमेशा भारतीय जनता पार्टी विरोध करती आई है।

बीजेपी का संदेश साफ होता है, 'बंटोगे तो कटोगे' या 'एक रहेंगे-सेफ रहेंगे।' महाराष्ट्र, झारखंड के चुनाव और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में कुछ महीनों का अंतर है। कांग्रेस को 2 जगह झटका लगा, एक जगह गठबंधन ने लाज बचा ली।

दिल्ली में कांग्रेस के चुनाव प्रचार के केंद्र में 'संविधान और जातिगत जनगणना' रही। दोनों मुद्दों को जनता ने खारिज किया। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 6.34 प्रतिशत ही रहा। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस अब भी सोशल इंजीनियरिंग पर ज्यादा ध्यान दे रही है। जिन राज्यों में कांग्रेस ने अपने प्रभारी बदले हैं, वहां भी सोशल इंजीनियरिंग करने की भरपूर कोशिश हुई है।
 
नुकसान है फिर भी जाति की राजनीति!

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनावों तक नुकसान झेला लेकिन अपनी सोशल इंजीनियरिंग नहीं छोड़ रही है। कांग्रेस के ऐसा करने की मजबूरी क्या है, समझिए विस्तार से। कांग्रेस अपने संगठन की कार्यकारिणी में कुछ अहम बदलाव कर रही है। शुरुआत राज्यों से हुई है। कांग्रेस ने राज्य स्तर पर कई अहम बदलाव किए हैं। कांग्रेस अधअयक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी राहुल गांधी के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूलो को विस्तार दे रहे हैं। 

राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग का सीधा अर्थ अलग-अलग जातीय समीकरणों के हिसाब से राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना है। कांग्रेस ने इस बार प्रांतीय स्तर पर जो संगठनात्मक बदलाव किए हैं, उनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) नेताओं को तरजीह दी गई है। 

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27 दिसंबर 2024 को कांग्रेस की कर्नाटक के बेलगावी में बैठक हुई थी। कांग्रेस ने नव सत्याग्रह पर आगे बढ़ने की कसमें खाई थीं। कांग्रेस ने कहा था कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए। कांग्रेस ने अपनी पार्टी में भी इसी फॉर्मूले पर काम करने का मन बना लिया। कांग्रेस के इस संकल्प का असर राज्यों के महासचिव और प्रभारियों के बदलने में भी नजर आया। कांग्रेस ने राज्यों के महासचिवों में बदलाव किया है, वहीं 9 राज्यों के प्रभारी बदले है। 6 प्रभारियों को पदमुक्त किया गया है या दूसरी जिम्मेदारी बदल दी गई है। 

कांग्रेस ने जिन 11 राज्यों में प्रभारियों को बदला है, उनमें से 6 नेता ऐसे हैं, जो OBC वर्ग से आते हैं। 1 दलित, 1 मुस्लिम, 1 आदिवासी और 3 सामान्य वर्ग के हैं। कांग्रेस ने कैसे सोशल इंजीनियरिंग साधी है, आइए जानते हैं।

कांग्रेस कैसे साध रही जातिगत समीकरण?
कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पंजाब का महासचिव निुयक्त किया है। वह ओबीसी नेता हैं। पंजाब में ओबीसी निर्णायक स्थिति में हैं। राज्यसभा सासंद नासीर हुसैन को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का महासचिव नियुक्त किया है। कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्क हैं। जम्मू और लद्दाख में भी मुस्लिम वर्ग मजबूत स्थिति में हैं। 

सप्तगिरी शंकर उल्का को मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम और नागालैंड का प्रभारी बनाया है। वह आदिवासी नेता हैं। इन राज्यों में आदिवासियों की संख्या निर्णायक स्थिति में है। अजय कुमार लल्लू ओबीसी वर्ग से आते हैं। उन्हें ओडिशा की जिम्मेदारी दी गई है। 

कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद को हरियाणा की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वह राजस्थान से आते हैं। गिरीश चोडंकर को तमिलनाडु और पुड्डुचेरी की जिम्मेदारी मिली है। वह गोवा से आते हैं। गिरीश जिस भंडारी समुदाय से आते हैं, गोवा में उनकी स्थिति प्रभावी है। दोनों नेता ओबीसी वर्ग से ही आते हैं। 

कैसे कांग्रेस ने राज्य प्रभारी बना कैसे साधी राजनीति?

नाम जाति राज्य
मीनाक्षी नटराजन ब्राह्मण तेलंगाना
के राजू  अनुसूचित जाति झारखंड
कृष्णा अलवारू जनरल बिहार
रजनी अशोकराव पाटिल मराठा (जनरल) हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़
अजय कुमार लल्लू OBC ओडिशा
सप्तगिरि शंकर उलाका ST मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम और नागालैंड
हरीश चौधरी OBC मध्य प्रदेश
बीके हरि प्रसाद OBC हरियाणा 
     


कांग्रेस क्यों कर रही ऐसे बदलाव?
महाराष्ट्र और दिल्ली में कांग्रेस चूक गई। महाराष्ट्र की सियासत पर नजर रखने वाले सियासी जानकार बताते हैं कि वहां 'जाति' फैक्टर पर कांग्रेस चूक गई लेकिन झारखंड में जाति फैक्टर ने काम किया। झारखंड मुक्ति मोर्चा की लहर तो थी। 81 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस ने 15.56 प्रतिशत वोट बैंक के साथ 16 सीटें हासिल की। संविधान और जातिगत जनगणना दोनों मुद्दों पर कांग्रेस और हेमंत सोरेन की पार्टी JMM दोनों की लाज बच गई।

झारखंड का पड़ोसी राज्य बिहार है। बिहार में जाति फैक्टर सबसे मजबूत फैक्टर माना जाता है। बिहार में हिंदुत्व फैक्टर भी कमजोर पड़ जाता है। बिना जातीय गठजोड़ के किसी भी पार्टी के लिए अकेले दम पर सरकार बना पाना मुश्किल है। बिहार की जातीय राजनीति पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के पक्ष में यादव और मुस्लिम फैक्टर रहे हैं। 

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आरजेडी और कांग्रेस के साथ 'M-Y' फैक्टर पहले के चुनावों में भी असरदार रहा है। कांग्रेस नए बदलावों में अनुसूचित जाति के नेताओं को भी प्रतिनिधित्व दे रही है। ऐसे में वहां कांग्रेस की उम्मीदें ज्यादा हैं। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास 19 सीटे हैं। कांग्रेस की सहयोगी RJD के पास 75 सीटें हैं। 

बहुमत का आंकड़ा 122 है। बिहार में बीजेपी और JDU के पास 12-12 सीटें हैं। बिहार में कांग्रेस के पास 3 और राष्ट्रीय जनता दल के पास 4 लोकसभा सीटें हैं। चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी का भी प्रदर्शन कांग्रेस और आरजेडी से ठीक रहा है। ऐसे में अब कांग्रेस जातिगत समीकरणों को संभालकर चलना चाह रही है, जिससे हर वर्ग भरोसा करे और कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हो। 

कांग्रेस उम्मीद में क्यों है?
कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कांग्रेस के वादों और मुद्दों के साथ लोग जुड़ नहीं पा रहे हैं। अन्य राज्यों में ऐसी स्थिति है लेकिन बिहार में नहीं। बिहार में एक बड़ा तबका चाहता है कि जाति आधारित जनगणना हो। जातिगत जनगणना के पक्ष में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के कर्ता-धर्ता तेजस्वी यादव हैं। कांग्रेस की राजनीति पर नजर रखने वाले यूपी मानवाधिकार प्रकोष्ठ के पूर्व महासचिव प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि कमोबेश हर राजनीतिक पार्टियां चाहती हैं कि बिहार में जातिगत जनगणना हो।

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बिहार में लोजपा (RV) से लेकर जनता दल यूनाइटेड तक, एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं। अब ये माना जा रहा है कि इनका और बीजेपी का तालमेल अच्छा है, इनके वादों पर मोहर बीजेपी की स्वीकृति के बाद ही लगती है। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का सयुंक्त एजेंडा एक जैसा है। ऐसे में हो सकता है कि कांग्रेस को इन बदलावों से लाभ मिल जाए। 

क्यों राहुल चाहते हैं बदलाव?
राहुल गांधी का मानना है कि कांग्रेस 10 से 15 साल में अनुसूचित जाति और ओबीसी के लिए काम नहीं कर पाई। उन्होंने खुद कहा था कि समाज के जिस वंचित वर्ग ने इंदिरा गांधी पर भरोसा जताया था, उसे कांग्रेस संभाल नहीं पाई। उन्होंने आंतरिक बदलाव लाने का इशारा किया था। कांग्रेस ने अगस्त 2024 में लोकसभा चुनावों के ठीक बाद ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के पहले फेरबदल में अलग-अलग वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया था। कांग्रेस ने SC, ST, OBC और अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं को 60 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया। राहुल गांधी के निर्देश पर 75 नए सचिव और संयुक्त सचिव नियुक्त हुए थे। राहुल गांधी पार्टी में एक अरसे से बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। 

 

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