मोदी सरकार ने अपने एक देश एक चुनाव मुहिम को अमली जामा पहनाने के लिए इससे जुड़े बिल को पेश करने की सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं। खबरों के मुताबिक लोकसभा में मंगलवार को ''एक देश एक चुनाव' बिल पेश किया जा सकता है। इसके लिए बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को 17 दिसंबर 2024 को सदन में उपस्थित रहने का व्हिप भी जारी कर दिया है।
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और राष्ट्रीय राजधानी कानून (संशोधन) विधेयक मंगलवार को पेश करेंगे।
कैबिनेट ने पहले ही किया है पास
बता दें कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने पहले ही इसे स्वीकृति दे दी है। केंद्र ने सोमवार को इन दोनों विधेयकों को पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक अर्जुन राम मेघवाल विधेयक को पेश करने के बाद इसे संयुक्त समिति को भेजने के लिए निवेदन करेंगे।
विपक्ष ने किया है विरोध
इस विधेयक का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र-विरोधी बताते हुए इसका विरोध किया है। उनका आरोप है कि यह इस प्रकार से बनाया गया है कि भारत के लोकतंत्र को कमतर किया जा सके।
रामनाथ कोविंद की समिति ने की थी सिफारिश
एक देश एक चुनाव पर की योजना के लिए सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसकी सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया है। उसी के आधार पर विपक्ष के साथ मिलकर अब इसे पारित कराने की सरकार की योजना है।
हालांकि, कोविंद कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक देश एक चुनाव को लागू करने से पहले पूरे देश में इस पर चर्चा का माहौल तैयार किया जाना चाहिए। इसके अलावा इसे 2029 के बाद ही लागू किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें काफी जटिलताएं हैं जिन पर काम करना होगा
क्या है एक देश एक चुनाव
एक देश एक चुनाव का अर्थ है कि पूरे देश में संसदीय चुनावों के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी करा लिए जाएं। इसके लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि सभी चुनाव एक ही दिन कराए जाएं बल्कि एक टाइम फ्रेम और कई चरणों में भी चुनाव कराए जा सकते हैं। उद्देश्य सिर्फ इतना है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव हो जाने के बाद लगातार चुनावी मौसम देश में नहीं बना रहेगा।
क्या हैं परेशानियां
एक देश एक चुनाव लागू करने के लिए सरकार को कम से कम 4 ऐसे विधेयक लाने पड़ेंगे जिनको पारित कराने के लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी।
चूंकि बीजेपी के पास इस वक्त सदन में साधारण बहुमत ही है, इसलिए इस विधेयक का पारित करा पाना काफी मुश्किल होगा और इसके लिए पार्टियों के बीच सहमति बनानी पड़ेगी।
संख्या बल की बात करें तो एनडीए के पास इस वक्त राज्यसभा में 112 सीटें हैं जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी। ऐसे ही लोकसभा में एनडीए के पास 292 सीटें हैं जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए उसे 364 सदस्यों का समर्थन चाहिए होगा। ऐसे में बीजेपी के लिए इस टारगेट को साध पाना बड़ी चुनौती है।
क्या कहती है सरकार
सरकार का पक्ष है कि एक देश एक चुनाव के आ जाने से विकास कार्यों में आसानी होगी। सरकार के मुताबिक अभी की व्यवस्था की वजह से देश में कहीं न कहीं चुनाव होता रहता है जिससे आचार संहिता लगी रहती है। दूसरी बात राजनीतिक पार्टियां भी इसकी वजह से लगातार इलेक्शन मोड में ही रहती हैं इसलिए वे काम पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे पाती हैं।