संगठन 'सरकार' से बड़ा है, BJP ने मान लिया, कांग्रेस कब मानेगी?
एक तरफ दूसरी राजनीतिक पार्टियां, जहां अपने काडर को मजबूत करने में जुटी हैं, कांग्रेस अपने कैडर को नए सिरे से गढ़ने की तैयारी में है। पढ़ें रिपोर्ट।

गुजरात अधिवेशन में सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे। (Photo Credit: INC/X)
भारतीय जनता पार्टी हो, समाजवादी पार्टी हो या आम आदमी पार्टी। कैडर स्तर पर हर राजनीतिक पार्टी ने ब्लॉक स्तर पर फील्डिंग बिठाई है। भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ता और सत्ता, दोनों के हिसाब से देश की सबसे बड़ी सियासी पार्टी है। 21 राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। 1 दशक पहले 2004 से 2009 और 2009 से 2014 तक केंद्र में काबिज रहने वाली कांग्रेस, दशकों के मजबूत शासन के बाद भी अपना कैडर खोती नजर आ रही है।
26 दिसंबर 2024 को कांग्रेस ने बेलगावी अधिवेशन में 200 से ज्यादा सीनियर नेताओं की एक बैठक बुलाई थी। बैठक में बीजेपी को संसद में घेरने से लेकर 'संविधान बचाओ राष्ट्रीय पद यात्रा' तक पर खूब चर्चा हुई। बीजेपी के खिालफ रणनीति बनाई गई, गांधीवादी विरासत पर चर्चा हुई, दुर्भाग्य से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया और कार्यक्रम बाधित हो गया।
कांग्रेस ने नए सिरे से मंथन के लिए गुजरात अधिवेशन का प्रस्ताव रखा। 8 से 9 अप्रैल के बीच गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस ने अधिवेशन बुलाया। दो दिवसीय बैठक में कांग्रेस ने संगठन के सशक्तीकरण और संगठनात्मक पुनर्गठन पर जोर दिया। बैठक में जिला कांग्रेस समितियों (DCC) की समितियों को बढ़ाने और संगठन को मजबूत करने पर जोर दिया गया। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने कहा कि अब जवाबदेही तय की जानी चाहिए। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने गुजरात में इस तरह का अधिवेशन दशकों बाद बुलाया था।
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क्या बदलने के लिए तैयार है कांग्रेस?
उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 विधानसभा सीटों में कांग्रेस के पास सिर्फ 2 सीटें हैं। साल 2022 में हुए चुनाव में सिर्फ रामपुर खास और फरेंदार विधानसभा सीट से जीत मिली। 2024 में कांग्रेस 6 सीटें यूपी में जीतने में कामयाब हुई। जब पार्टी की रणनीति को लेकर खबरगांव ने कांग्रेस के पूर्व यूपी प्रभारी अजय कुमार लल्लू से बात की। उन्होंने जवाब में कहा, 'हम मंथन कर रहे हैं लेकिन बहुत व्यस्त हैं। आपको 1 घंटे बाद फोन करता हूं।'
1 घंटे बाद जब उनसे संपर्क की कोशिश की गई तो कहा कि अभी समय नहीं है बात करने का। तीसरी बार जब बातचीत करने की कोशिश हुई तो उन्होंने कहा, 'हम खुद कॉल कर लेंगे।' जाहिर सी बात है कि मीडिया से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
कुछ और नेताओं के साथ बातचीत करने की कोशिश की गई, प्रवक्ताओं को फोन मिलाया गया लेकिन किसी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। इसके उलट, बीजेपी, सपा और आम आदमी पार्टी के प्रवक्ताओं को फोन किया तो उन्होंने बात की। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस की टॉप लीडरशिप में यही दिक्कत है। वे मीडिया तक को एंटरटेन नहीं करते हैं, अपने कार्यकर्ताओं को क्या करेंगे।
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संगठन सरकार से बड़ा है, सपा, BJP, ने समझा, कांग्रेस कब समझेगी?
बीजेपी, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के पास बूथ स्तर का मैनेजमेंट दुरुस्त है। कांग्रेस यहीं चूक रही है। भारतीय जनता पार्टी के सिद्धार्थनगर जिला उपाध्यक्ष, युवा मोर्चा विकास पाण्डेय बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय कार्यकारिणी जैसे शीर्ष पद हैं। राज्य स्तर पर प्रदेश अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव,सचिव जैसे पद हैं। जिला स्तर पर जिला अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष, उपाध्याय, कोषाध्यक्ष जैसे पद हैं। ग्राम और बूथ स्तर पर भी बीजेपी के संगठन का स्पष्ट विभाजन है। ग्राम स्तर पर बूथ अध्यक्ष, बूथ सचिव, बूथ कार्यकर्ता, पन्ना प्रमुख, ग्राम समिति अध्यक्ष, ग्राम समिति अध्यक्ष, ग्राम समिति सदस्य जैसे पद हैं।
ऐसे ही महिला मोर्चा अध्यक्ष, युवा मोर्चा अध्यक्ष, किसान मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, अनुसूचित जाति, जनजाति मोर्चा जैसे संगठनात्मक तौर पर अहम पद हैं। समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के पास भी ऐसे ही समकक्ष पद हैं, जो जमीन पर नजर आते हैं। कांग्रेस काडर स्तर पर बेहद कमजोर है।
साल 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने सपा गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था। यूपी की डुमरियागंज संसदीय सीट भी सपा के खाते में गई। जब सपा को टिकट मिला तो कई चेहरे स्थानीय स्तर पर नाराज हुए। कई नाम, टिकट की रेस में शामिल थे।

सांसद की टिकट रेस में शामिल रहे एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा-
'यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में जब मनमुटाव की खबरें सामने आई थीं, तब केशव मौर्य ने कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा है। बीजेपी ने कई बार साबित भी किया कि संगठन सरकार से बड़ा है। संघ के अनकहे संदेशों को भी बीजेपी नेता समझते हैं, काम करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि संगठन के बदलौत ही सरकार है। कांग्रेस में इसी समझ-बूझ की कमी है। हमारे पार्टी के दिग्गज नेता ही पार्टी के 'सरकार' हो गए हैं, संगठन और स्थानीय नेतृत्व को कोई पूछता नहीं है। टिकट बंटवारे में न तो जिला अध्यक्ष की कोई भूमिका है न प्रांत अध्यक्ष की। दिल्ली में बैठे आदमी को क्या पता है कि डुमरियागंज में क्या चल रहा है। बस विचारधारा मजबूरी है जो इस पार्टी के साथ जुड़े हैं, पार्टी ने हमारे साथ ठीक नहीं किया है।'
कांग्रेस की नई चिंता क्या है?
समाजवादी पार्टी एक चर्चित प्रवक्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा है कि स्थानीय कांग्रेस नेता शीर्ष नेतृत्व की मंजूरी पर निर्भर हो गए हैं। न कोई दिशा निर्देश इन्हें मिलता है। हमारी बैठकें होती हैं, प्रदर्शन होते हैं, कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को आला कमान के संदेश का इंतजार होता है। एक तरफ हर पार्टी अपने संगठन को संभालने में जुटी है, कांग्रेस का ध्यान अब भी जिला स्तरीय राजनीति पर नहीं है।
DCC अध्यक्षों की नियुक्ति का अंतिम अधिकार AICC नेतृत्व के पास होगा लेकिन इनकी नियुक्तियां कब होंगी, इस पर अभी स्पष्टीकरण नहीं है। साल 2020 में ही G-23 नेताओं ने डीसीसी नियुक्तियों को राज्य इकाइयों को सौंपने की मांग की थी लेकिन यह मांग पूरी ही नहीं हुई। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से जिला और संगठन स्तर पर बातें कौन सुनेगा, इसे लेकर अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं है।
अब क्या करने वाली है कांग्रेस?
कांग्रेस, अपने संगठनात्मक ढांचे में बदवाल करने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस के यूपी मानवाधिकार प्रकोष्ठ के महासचिव रहे विनोद कुमार बताते हैं, 'कांग्रेस समितियों में बदलाव की अरसे से जरूरत महसूस हो रही है। जो समितियां हैं, वे निष्क्रिय हैं। स्थानीय स्तर पर बैठकें नहीं होती हैं। पुराने कार्यकर्ताओं के एकजुट होने का कोई मंच नहीं है। जिला स्तर पर नेतृत्व संकट है, कोई प्रतिनिधि नहीं है जो पुराने कांग्रेसियों को जोड़ सके। कवायदें हर बार होती हैं लेकिन कांग्रेस के उस कैडर को हर बार चोट पहुंचती है, जिसने दशकों पार्टी के लिए काम किया है और अब नेतृत्वहीनता को देखकर आशंकित है कि पार्टी जमीन ही न खो दे।'
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क्या नए बदलाव करने जा रही है कांग्रेस?
गुजरात अधिवेशन में यह चर्चा छिड़ी है कि कांग्रेस पार्टी अपनी संगठनात्मक संरचना में बदलाव ला रही है, जिसमें जिला कांग्रेस कमेटी (DCC) को अधिक शक्ति और जिम्मेदारी दी जाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने डीसीसी अध्यक्षों को पार्टी का आधार बनाने की योजना बनाई है। इस योजना पर जब पदाधिकारियों से सवाल किया गया तो उन्होंने चुप्पी साधी।

DCC का काम क्या होगा?
डीसीसी अध्यक्षों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवार चयन में शामिल किया जाएगा, जिसमें वे स्क्रीनिंग कमेटी और केंद्रीय चुनाव समिति की बैठकों में हिस्सा लेंगे। अगले एक साल में सभी डीसीसी, बूथ, मंडल और ब्लॉक इकाइयों के अध्यक्ष नियुक्त करने का लक्ष्य है। मल्लिकार्जुन खड़गे कहा कि नियुक्तियां निष्पक्ष और कांग्रेस के दिशानिर्देशों के अनुसार होंगी।
अधिवेशन की सबसे जरूरी बात क्या निकली?
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पहली बार साफ कहा है कि जो लोग पार्टी की मदद नहीं कर सकते हैं, उन्हें अब आराम करना चाहिए। यह संयुक्त रूप से राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का संदेश है।
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