भाषा से संस्कृति तक, स्टालिन के केंद्र से खफा होने की पूरी कहानी
राजनीति
अभिषेक शुक्ल• CHENNAI 08 Mar 2025, (अपडेटेड 08 Mar 2025, 1:53 PM IST)
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी की तीन भाषा नीति पर तमिलनाडु में हंगामा मचा है। अब भाषा विवाद के केंद्र में तमिल संस्कृति आ गई है। पढ़ें रिपोर्ट।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन। (Photo Credit: Social Media)
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, केंद्र सरकार की नेशनल एजुकेशन पॉलिसी से खफा हैं। उनका कहना है तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी और संस्कृत थोपने की कोशिश की जा रही है। उनका कहना है कि द्रविड़म दिल्ली के निर्देशों से नहीं चलता है। एमके स्टालिन ने कहा कि जो लोग हिंदी थोपने की कोशिश करते हैं, वे या तो हार जाते हैं या अपना नजरिया बदल लेते हैं।
एमके स्टालिन ने X पर लिखा,'केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने हमें पत्र लिखने के लिए उकसाया है। हम अपना काम कर रहे थे। उन्होंने पूरे राज्य पर हिंदू थोपने के लिए धमकाने की कोशिश की। अब उन्हें एक ऐसी लड़ाई छेड़ने के लिए भुगतना पड़ रहा है, जिसे वे कभी जीत नहीं सकते हैं। तमिलनाडु को आत्मसमर्पण करने के लिए ब्लैकमेल नहीं किया जाएगा।'
केंद्र से खफा क्यों हैं स्टालिन?
एमके स्टालिन ने कहा, 'सबसे बड़ी विडंबना यह है कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को खारिज करने वाला तमिलनाडु पहले ही अपने कई मकसदों को पूरा कर चुका है। यह नीति सिर्फ 2030 की बात करता है। यह ऐसा ही है, जैसे LKG के छात्र की ओर से पीएचडी धारक को लेक्चर देने जैसा है। द्रविड़म दिल्ली से निर्देश नहीं लेता है। इसके बजाय, यह राष्ट्र के अनुसरण के लिए राय तय करता है।'
यह भी पढ़ें: 'संस्कृत मरी भाषा, हिंदी बोर्ड हटाओ,' CM स्टालिन की केंद्र से मांग
एमके स्टालिन ने कहा, 'अब तीन-भाषा फॉर्मूले के लिए बीजेपी का सर्कस जैसा सिग्नेचर कैंपेन तमिलनाडु में हंसी का पात्र बन गया है। मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि वे 2026 के विधानसभा चुनावों में इसे अपना मुख्य एजेंडा बनाएं और इसे हिंदी थोपने पर जनमत संग्रह होने दें।'
'तमिल से हार के ही गए हैं हिंदी थोपने वाले'
एमके स्टालिन ने कहा, 'इतिहास में लिखा है, जिसने भी तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की कोशिश की, वह या तो हार गए या अपना रुख बदलकर डीएमके के साथ जुड़ गए। तमिलनाडु ब्रिटिश उपनिवेशवाद की जगह हिंदी उपनिवेशवाद बर्दाश्त नहीं करेगा।'

'गैर हिंदीभाषी घुटन महसूस कर रहे हैं'
एमके स्टालिन का कहना है, 'योजनाओं के नाम से लेकर पुरस्कारों और केंद्र सरकार की संस्थाओं तक, हिंदी को घिनौने तरीके से थोपा गया है। गैर-हिंदी भाषी, जो भारत में बहुसंख्यक हैं, वे घुटन महसूस कर रहे हैं। लोग आएंगे, जाएंगे लेकिन भारत में हिंदी का प्रभुत्व खत्म होने के बाद भी लोग याद रखेंगे कि डीएमके ही थी, जो इस अभियान के खिलाफ अगुवा के तौर पर खड़ी थी।'
यह भी पढ़ें: कहानी कश्मीर की... कुछ पाकिस्तान के पास तो कुछ चीन के पास
दक्षिण को केंद्र के खिलाफ लामबंद कर रहे स्टालिन
डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने शुक्रवार सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने 22 मार्च को चेन्नई में एक बैठक बुलाई है, जिसका मकसद परिसीमन पर केंद्र को घेरना है। उनकी अध्यक्षता में तमिलनाडु में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी, जिसके बाद इस मुद्दे पर एकजुट संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए दक्षिणी राज्यों के सांसदों को शामिल करते हुए एक संयुक्त कार्रवाई समिति (JAC) गठित करने का संकल्प लिया गया है।
किन राज्यों को CM ने लिखी चिट्ठी?
सर्वदलीय बैठक के प्रस्ताव में सिर्फ दक्षिण भारतीय राज्यों का जिक्र था लेकिन स्टालिन ने केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल को चिट्ठी भेजी गई है। गैर हिंदी भाषी राज्यों को चिट्ठी भेजी गई है। स्टालिन चाहते हैं कि हिंदी के थोपे जाने के खिलाफ राज्य लामबंद हों।
हिंदी के खिलाफ इतने मुखर क्यों हैं स्टालिन?
DMK का 3 भाषा विरोध नया नहीं है। डीएमके मानती है कि हिंदी तमिल भाषा और संस्कृति की पहचान के लिए खतरा है। द्रविड़ आंदोलन के मूल में भी यह भावना रही है। 20वीं सदी में उत्तर भारत के सांस्कृतिक और भाषाई प्रभुत्व के खिलाफ वहां चिंगारी भड़की थी।
स्टालिन मानते हैं कि हिंदी को बढ़ावा देना, तमिल भाषा और संस्कृति को कमजोर कर रहा है। तमिल दुनिया की प्राचीन भाषा है, इसके संरक्षण की जरूरत है। केंद्र की भाषा नीति, तमिल लोगों के आत्मसम्मान और भाषा पर हमला है। उन्होंने कहा है कि वह हिंदी या संस्कृत के खिलाफ नहीं हैं, वे तमिलनाडु में जबरदस्ती लागू करने के खिलाफ हैं।
क्यों अचानक हो रहा है हंगामा?
केंद्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन भाषा सिद्धांत दिया गया है। हिंदी, अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में शिक्षा देने की वकालत की गई है। स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि समग्र शिक्षा अभियान के तहत राज्य को मिलने वाले 2,000 करोड़ रुपये का फंड केंद्र सरकार रोक रही है। वजह यह है कि 3 भाषा नीति को तमिलनाडु लागू नहीं करेगा।

स्टालिन का कहना है कि यह नीति, हिंदी थोपने की कोशिश है। उन्होंने तमिलनाडु पारंपरिक रूप से तमिल और अंग्रेजी भाषा रहा है। हिंदी भाषा, तमिल की भाषाई विविधता खत्म कर देगी। साल 1930, 1960 और 1965 में भी तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन हुए हैं। DMK की शुरुआत भी द्रविड़ राजनीति से शुरू हुई थी, जिसके मूल उद्देश्यों में एक उद्देश्य भाषा सरंक्षण भी रहा।
यह भी पढ़ें: हिंदी-संस्कृत पर केंद्र को घेर रहे CM स्टालिन, BJP ने दिया नया टास्क!
क्या मजबूरी है हिंदी विरोध?
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के विधि विभाग में असिस्टें प्रोफेसर डॉ. विकास कुमार बताते हैं कि स्टालिन अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। यह द्रविड़ पहचान की बात है, जो उत्तर भारत के सापेक्ष एक राजनीतिक हथियार की तरह है। वह राज्य में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए भी मुखर हो सकते हैं। वह हिंदी और नई शिक्षा नीति को केंद्र के अधिकार-क्षेत्र में दखल मान रहे हैं।
दीवान ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर निखिल गुप्ता ने कहा, 'स्टालिन मुखर होकर तमिल राष्ट्रवाद की ओर आगे बढ़ रहे हैं। उन पर उसी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है। उनके लिए हिंदी का विरोध न केवल भाषाई मुद्दा है, बल्कि द्रविड़ पहचान और उत्तरी भारत के प्रभुत्व के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार भी है।'
डॉ. विकास कुमार ने कहा, 'तमिलनाडु में BJP, उभरती हुई पार्टी बन रही है। AIDMK जैसी स्थापित विरोधी पार्टी है, MKM, TVK और DMDK जैसी पार्टियां अस्तित्व में हैं, जो हिंदी का वैसी मुखरता से विरोध नहीं करतीं, जैसी DMK करती रही है। ऐसे में वहां के तमिल सेंटिमेंट्स को एकजुट करने में स्टालिन के राजनीतिक हित छिपे हों, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है।'
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap