महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी महायुति को चुनावी जीत मिली तो विश्लेषक उन योजनाओं को गिनवाने लगे जो चुनाव से कुछ पहले ही शुरू की गई थीं। महिलाओं को सीधे उनके खाते में पैसे देने की योजना 'लाडकी बहिन योजना' का क्रेडिट लेने को तो सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार के बीच ही होड़ दिखी। कमोबेश ऐसा ही कुछ झारखंड में भी हुआ और हेमंत सोरेन 'मइया सम्मान योजना' के सहारे फिर से सत्ता में आ गए। झारखंड और महाराष्ट्र से पहले ऐसी योजनाएं कई और राज्यों में राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचा चुकी हैं। शायद यही कारण है कि हर चुनावी राज्य में और हर चुनाव में ऐसे वादों की भरमार होती जा रही है। दिल्ली में होने वाले चुनाव से पहले तो सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अपनी मुफ्त की योजनाओं के लिए बाकायदा 'रेवड़ी पर चर्चा' अभियान चलाने जा रहे हैं जिसमें वह लोगों से पूछेंगे कि उन्हें इस तरह की योजनाएं चाहिए या नहीं।
इस तरह के वादों को लेकर चुनिंदा विरोध हर पार्टी करती रही है लेकिन विपक्ष में होने पर सत्ता में आने के लिए हर पार्टी इसका इस्तेमाल भी करती दिख रही है। सत्ता पक्ष भी अब चुनाव से ठीक पहले ऐसी योजनाएं लाकर प्रत्यक्ष तौर पर चुनावी लाभ लेते दिख रहे हैं। ऐसी ही योजनाओं को चुनौती देते हुए कर्नाटक के शशांक जे शेखर ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और मांग की थी कि चुनाव से ठीक पहले मुफ्त वाली इन योजनाओं को रिश्वत घोषित किया जाना चाहिए। इस मामले पर सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भी जारी किया। यह घटना ठीक उसी समय की है जब महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावों का ऐलान होना था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बावजूद ऐसे वादे होते रहे और दोनों ही राज्यों में सत्ताधारी गठबंधन फिर से सत्ता में लौट आए हैं।
महाराष्ट्र में क्या ऐलान हुए?
महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव हुए तो सत्ताधारी महायुति को करारी शिकस्त मिली थी। महा विकास अघाड़ी आगे दिख रहा था। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार एक्शन में आई और लाड़की बहिन योजना लॉन्च कर दी। इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जाने लगे। इतना ही नहीं, वादा किया गया कि अगर सरकार फिर से बन गई तो इसे बढ़ाकर 2500 रुपये कर दिया जाएगा। फ्री वाले वादे करने में विपक्षी महा विकास अघाड़ी भी पीछे नहीं रहा, उसने ऐलान किया कि अगर उसकी सरकार बनी तो हर महीने 3000 रुपये दिए जाएंगे।
लाड़की बहिन योजना के अलावा, महाराष्ट्र सरकार ने चुनाव से ठीक पहले मुंबई में एंट्री पर लगने वाले सारे टोल टैक्स हल्के वाहनों के लिए माफ कर दिए। इसके अलावा, दोनों ही गठबंधनों ने फ्री एलपीजी सिलिंडर जैसे वादे भी किए। हालांकि, ये वादे सत्ता पक्ष के लिए फायदेमंद साबित हुए और सरकार और मजबूती से वापस आ गई।
झारखंड में क्या वादे हुए?
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में जो हाल महायुति का हुआ ठीक वैसा ही हाल झारखंड में सत्ताधारी गठबंधन का हुआ था। झारखंड सरकार ने मइया सम्मान योजना लॉन्च की जिसके तहत हर महीने 1000 रुपये महिलाओं को मिलने लगे। चुनाव नजदीक आए तो सत्ताधारी गठबंधन ने ऐलान किया कि सरकार फिर बनी तो इसे बढ़ाकर 2500 रुपये किया जाएगा। वहीं, बीजेपी ने भी वादा किया कि अगर उसकी सरकार बनती है तो गोगो दीदी योजना के तहत 2100 रुपये हर महीने दिए जाएंगे। योजना कारगर निकली सत्ता पक्ष के लिए और जेएमएम-कांग्रेस की अगुवाई वाला इंडिया गठबंधन सत्ता में बना रहा।
झारखंड और महाराष्ट्र से पहले हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, दिल्ली और हरियाणा जैसे राज्यों में भी इस तरह की योजनाएं जारी हैं।
योजनाओं का असर क्या हो रहा है?
इस तरह की मुफ्त वाली योजनाओं का असर दिल्ली, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, असम और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की इकोनॉमी पर भी दिख रहा है। महाराष्ट्र में लाड़की बहिन योजना पर लगभग 47 हजार करोड़ रुपये सालाना का अनुमानित खर्च है जो वादे के मुताबिक बढ़ सकता है। यह भी देखा गया है कि कई राज्यों में ऐसी योजनाओं के चलते सरकार को कर्ज भी लेना पड़ रहा है लेकिन वोटबैंक के लिए सरकारें इन योजनाओं से पीछे नहीं हट रही हैं। इनसे राजनीतिक दलों को तो फायदा हो रहा है लेकिन उन राज्यों की माली हालत लगातार बिगड़ती जा रही है जहां इस तरह की योजनाएं संचालित की जा रही हैं और राजस्व जुटाने के लिए कोई नया रास्ता नहीं दिख रहा है।