कोई हिट, कोई फ्लॉप, तमिलनाडु की सियासत में कितने सफल सितारे?
तमिलनाडु की सियासी पिच हर सितारे के लिए हिट रही हो ऐसा नहीं है। रजनीकांत से लेकर कमल हसन तक, कई सितारे ऐसे हैं, जिन्होंने शुरुआत तो धमाकेदार की लेकिन हाशिए पर रहे।

अन्नादुरई, एमजीआर, जयललिता, विजयकांत,कमल और विजय। (AI Image। Photo Credit: Sora)
तमिल फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार और अब नेता थलापति विजय सुर्खियों में हैं। सुर्खियों में रहने की वजह एक बुरी खबर से जुड़ी है। उनकी पार्टी तमिलगा वेट्री कड़गम पार्टी की रैली में इतनी भीड़ हो गई वहां मौजूद प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी भगदड़ रोकने में नाकाम रहे। 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, 100 से ज्यादा लोग घायल हैं। शनिवार रात हुए इस हादसे पर विजय ने कहा है कि उन्हें इस हादसे से गहरा धक्का लगा है।
विजय की पार्टी तमिलगा वेट्री कड़गम पार्टी आंबेडकर, पेरियार और कामराज के सिद्धातों पर चलती है। दलित, वंचित और शोषितों की राजनीति करती है। वह अपनी रैलियों में रोजगार, समाजिक न्याय और बराबरी और मार्क्सवाद की बात कर रहे हैं। मिली जुली विचारधारा वाली उनकी पार्टी राज्य में लोकप्रिय हो रही है।
तमिलगा वेट्री कड़गम की रैलियों में भीड़ का आलम यह है कि प्रशासन ने 10 हजार लोगों के जुटने की इजाजत दी थी, 27 हजार से ज्यादा लोगों ने दस्तक दे दी। विजय जहां जाते हैं, हजारों लोग देखते ही देखते जुटने लगते हैं। रजनीकांत और कमल हसन के बाद वह दक्षिण के सबसे बड़े सितारों में से एक हो गए हैं। उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ उमड़ती है। तमिलनाडु में 5 सितारे ऐसे रहे हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाला है।
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तमिलनाडु की सियासत में हिट या फ्लॉप, कैसा रहा है सफर?
अन्नादुरई: पहले अभिनेता, जो नेता बने
तमिलनाडु के राजनीति के पहले सितारे सीएन अन्नादुरई थे। उन्होंन डीएमकी की स्थापना की, पहले महासचिव बने। उन्होंने सिनेमा के जरिए समाज को सुधारने की कोशिश की। यह छवि उनकी जनता में गहरे बैठ गई। कुछ इसी तरह की राह पर विजय भी चल रहे हैं। उन्होंने समाजिक सुधार आंदलनों की शुरुआत की। वह तमिलनाडु के पहले द्रविड़ मुख्यमंत्री भी बने। साल 1948 में आई फिल्म नल्लाथंबी और 1949 में आई फिल्म वेल्लाइकारी जैसी फिल्मों ने उनकी छवि और सुधारी। इन फिल्मों को उन्हें खुद लिखा था। ये फिल्में जातिवाद और रूढ़िवाद पर गहरा कटाक्ष करती थीं।
अन्नादुरई ने जनता के बीच उन नाटकों का मंचन किया, जिसमें जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई गई हो। उन्होंने तमिल से संस्कृत के प्रभाव को कम किया। उन्होंने तमिल गौरव पर जोर दिया। उनके नाटकों में सवर्ण जातियों को हास्यास्पद तरीके से पेश किया जाता था। वह ब्राह्मणों को सामाजिक खलनायक के तौर पर पेश करते थे। वह साल 1967 से लेकर 1969 तक मद्रास के चौथे और अंतिम मुख्यमंत्री रहे। उनके नाम तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री का भी तमगा है।
करुणानिधि: हीरो, जिसने जमीन पर उतारी फिल्मी कहानी
करुणानिधी का भी तमिलनाडु में उभार जादुई था। अन्नादुरई के निधन के बाद डीएमके की कमान उन्हें मिली। वह डीएमके में आए और मुख्यमंत्री तक का सफर पूरा किया। वह 9 फरवरी 1969 को मुख्यमंत्री बने। डीएमके नेताओं ने उनके नाम पर सहमति जताई थी। एमजी रामचंद्रन उनके पुराने दोस्त थे। उन्होंने अपने मित्र को यह अहम जिम्मेदारी दी। 10 फरवरी 1969 को करुणानिधि मुख्यमंत्री बने।
वह 14 साल की उम्र से राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने तमिल सिनेमा की सबसे विवादित फिल्मों में से एक फिल्म पराशक्ति लिखी। साल 1952 में आई यह फिल्म में कई डायलॉग ऐसे थे, जिन पर आज भी चर्चा होती है। फिल्म के एक सीन में पुजारी एक लड़की से रेप की कोशिश करता है। नायक आता है और सवाल करता है कि क्या किसी पत्थर को फूल चढ़ाने से उसे भगवान का दर्जा मिल जाता है। फिल्म तमिलनाडु में बैन भी रही थी।
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करुणानिधि इन सब से बेपरवाह थे। वह सामाजिक क्रांति के पक्षधर थे। समाज के भेदभावओं पर मुखर होकर बोलते थे। वह जाति व्यवस्था के खिलाफ थे। वह नास्तिक थे। वह सिनेमा के जरिए सामाजिक सुधार और वामपंथ की बात करते थे। करुणानिधि एक बार मंदिर चले गए थे। उनकी खूब आलोचना हुई थी। वह नास्तिक परंपरा से आते थे। डीएमके की तर्कवादी विचारधारा से उनकी विदाई हुई तो वह जनता दल और कांग्रेस में भी चले गए। वह दोबारा उतने सफल नहीं हुए।
एमजी रामचंद्रन: हीरो जिन्होंने दशकों की राजनीति तय की
एमसी रामचंद्रन भी अन्नादुरई और करुणानिधि की तरह फिल्मों से ही आए थे। वह तमिलनाडु के सिनेमा के सबसे बड़े सितारे हासिल हुए। वह भी डीएमके से जुड़े रहे। वह कोषाध्यक्ष थे, तब से ही जनवादी पहलों को लेकर चर्चा में रहे। अपनी फिल्मों में वह गरीब-वंचितों की आवाज उठाने वाले नायक थे। जमीन पर भी इसकी कवायद उन्होंने की। साल 1972 में करुणानिधि के साथ उनका जम नहीं पाया।
उन्होंने DMK से नाता तोड़ा और AIADMK की नींव रख दी। उन्होंने कई फिल्में बनाईं जिसमें खुद को नायक के तौर पर पेश किया। साल 1977 में पहली बार वह मुख्यमंत्री बने। साल 1987 तक वह इसी पद पर बने रहे। उनका नाम जयललिता के साथ भी जुड़ा। सार्वजनिक आलोचना भी हुई। जयललिता की वजह से पार्टी और परिवार में भी झगड़ा हुआ। जयललिता अपमानपूर्वक बाल पकड़कर घसीटी भी गईं थीं। सियासी पिच पर एमजीआर हिट रहे थे।
जयललिता: जिन्हें जनता ने कहा 'अम्मा'
जयललिता एमजीआर की सरकार में मंत्री भी रहीं हैं। दोनों का प्रेम संबंध सुर्खियों में रहा है। जब एमजीआर की मौत हुई तो उनकी पत्नी वीएन जानकी और जे जयललिता के बीच AIADMK की कमान को लेकर सियासी जंग छिड़ी। जयललिता की अगुवाई वाली AIADMK ने 1991 में जीत हासिल की। जयललिता ने MGR के साथ कई फिल्मों में काम किया था। दोनों की जोड़ी सियासत में हिट रही थी। जयललिता भी मुख्यमंत्री बनीं। नेता के तौर पर उनकी ख्याति सबसे ज्यादा रही। 4 जून 1991 को वह पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। उनकी सियासी पारी हिट रही।
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विजयकांत: दम तो दिखाया लेकिन नहीं बन पाए सीएम
विजयकांत: फिल्म स्टार विजयकांत ने DMDK पार्टी बनाई। MGR की तरह नीले रंग की वैन में प्रचार भी किया। उन्हें लोगों ने करुप्पु एमजीआर तक कहा। उनकी फिल्में भी सामजिक संघर्ष को दिखाने वाली रहीं हैं। उन्हें कैप्टन के तौर पर भी लोग जानते हैं। साल 2005 में देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम (DMDK) की स्थापना की और तमिलनाडु की राजनीति में प्रवेश किया।
विजयकांत साल 2006 में पहली बार विधायक बने। वह साल 2016 जीतते रहे। उनकी दो विधानसभाएं रहीं, वृधाचलम और ऋषिवंदियाम से विधायक रहे। 2011 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 29 सीटें जीतीं। वह तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। DMDK ने AIADMK और बाद में NDA के साथ गठबंधन किया। 2014 और 2016 के चुनावों में यह पार्टी असफल रही। साल 2023 में उनका निधन हुआ। मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।
कमल हासन: अधूरी रह गईं सत्ता में आने की ख्वाहिशें
कमल हासन तमिलनाडु के सबसे बड़े सितारों में से एक रहे हैं। बॉक्स ऑफिस पर उनकी तूती बोलती रही है। साल 2018 में उन्होंने मक्कल निधि मय्यम की नींव रखी। उन्होंने कहा कि सिनेमा से बहुत कमाया, अब जनता को लौटाने की बारी है। साल 2019 और 2021 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी उतरी लेकिन कामयाबी नहीं मिली। डीएमकी के साथ उनकी पार्टी का राज्य में गठबंधन है। उनकी मदद से ही वह राज्यसभा में आए हैं।
थलापति विजय: फिल्में तो हिट रहीं, सियासत की बारी है
थलापति विजय, राजनीति में नए नवेले हैं। उन्होंने 27 अक्टूबर 2024 को विक्रवांडी अपनी पहली रैली की थी। उनकी पार्टी टीवीके भी समाजवादी-वामपंथी पार्टी है। उनकी वह आंबेडकर, पेरियार और कामराज को अपनी प्रेरणा मानते हैं। वह मार्क्सवाद से भी प्रभावित हैं। अपनी फिल्मों की तरह ही वह भी सियासत के मैदान में क्रांति करना चाहते हैं। उनकी पार्टी के नाम भगदड़ का कलंक लग गया है। वह तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में, सभी सीटों पर बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ना चाहते हैं।
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