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महाराष्ट्र में AIMIM कम सीटों पर लड़कर BJP के लिए मुश्किल कर सकती है

AIMIM महाराष्ट्र में सिर्फ 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जो कि उसकी एक सोची-समझी रणनीति जान पड़ती है।

AIMIM chief Asaduddin Owaisi

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी

महाराष्ट्र में 20 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सभी पार्टियां वोटर्स को अपने पाले में खींचने की कोशिश में लगी हैं। मुख्य रूप से महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच लड़ाई है। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी पार्टी भी है जो कि काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है और वह है हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम।

 

असदुद्दीन ओवैसी भारतीय राजनीति में इस वक्त इकलौते मुस्लिम आवाज़ की तरह देखे जाते हैं, इसलिए चुनावी समीकरण को बदलने में कई बार उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका भी देखने को मिलती है। 

 

ऐसी खबरें थीं कि ओवैसी ने एमवीए के साथ गठबंधन करने के लिए भी प्रस्ताव रखा था, लेकिन दूसरी तरफ से कोई जवाब न मिलने पर एआईएमआईएम अकेले ही चुनावी मैदान में है।

मैदान में उतारे सिर्फ 16 उम्मीदवार

इस बार के महाराष्ट्र चुनाव में यह बात खास है कि एआईएमआईएम ने विधानसभा की कुल 288 सीटों में से सिर्फ और सिर्फ 16 सीटों पर ही अपने कैंडीडेट्स उतारे हैं। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने 44 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, वह सिर्फ दो ही सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी।

 

तो सवाल उठता कि ओवैसी की पार्टी ने ऐसा क्यों किया कि सीटें बढ़ाने के बजाय उसने कम सीटों पर उम्मीदवार उतारे। अगर इसका गहराई से विश्लेषण करें तो यह एक सोची समझी रणनीति लगती है। दरअसल, ओवैसी ऐसा करके महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की मदद कर रहे हैं और कहीं न कहीं बीजेपी के खिलाफ काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र में ओवैसी, मुस्लिम-दलित वोटों को बंटने से रोकना चाहते हैं, जो कि महायुति के खिलाफ और महा विकास अघाड़ी के समर्थन में काम करेगा।

हम नहीं है बीजेपी की 'बी' टीम

ओवैसी की पार्टी के ऊपर हमेशा से इस बात के आरोप लगते रहते हैं कि वह बीजेपी की 'बी' टीम है। इसका कारण यह है कि राजनीतिक महकमे में ऐसा माना जाता है कि मुसलमानों का वोट आमतौर पर बीजेपी के खिलाफ उस पार्टी के लिए जाता है जो कि बीजेपी उम्मीदवार को हरा सकती है। ऐसे में ओवैसी के कैंडीडेट के चुनाव लड़ने पर उन सीटों पर मुसलमानों के वोटों के बंटने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, यह पिछले कुछ चुनावों में सही साबित नहीं भी हुआ है। अगर हम पिछले यूपी विधानसभा चुनावों की बात करतें तो उन्होंने कुल 100 सीटों पर अपने कैंडीडेट्स उतारे थे, लेकिन उन्हें मुसलमानों का ज्यादा समर्थन मिलता हुआ नहीं दिखा था।

हिंदुओं को भी ओवैसी ने दिया टिकट

खास बात यह है कि इस बार ओवैसी ने पार्टी के टिकट पर कुछ हिंदुओं को भी टिकट दिया है जिससे कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि न सिर्फ मुसलमानों बल्कि हिंदुओं के कुछ वोट को भी अपनी तरफ खींचने की कोशिश है। एआईएमआईएम ने नागपुर से कीर्ति डोंगरे, सम्राट सुरवाडे को मुर्तिज़ापुर से और मिराज विधानसभा सीट से महेश कांबले को टिकट दिया है।

मुस्लिम वोटों को खींचने की जद्दोजहद

महाराष्ट्र में बीजेपी को छोड़कर सभी पार्टियों में मुसलमान वोटों को खींचने की जद्दोजहद दिखती है। इस बार का ट्रेंड देखा जाए तो कांग्रेस के अलावा अजित पवार की पार्टी एनसीपी ने भी कई मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है।

 

अजित पवार ने तो अक्टूबर की शुरुआत में यह तक कहा था कि उनकी पार्टी 10 प्रतिशत सीटों को मुसलमानों को देने पर विचार कर रही है। हालांकि, लोकसभा में पार्टी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था। इसके अलावा प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) ने अपने दूसरी लिस्ट में 10 कैंडीडेट्स के नामों की घोषणा की थी। वे सारे ही मुसलमान थे।

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