क्या है जम्मू कश्मीर आरक्षण नीति जिसके समीक्षा की हो रही मांग?
जम्मू कश्मीर में सैकड़ों छात्रों और राजनेताओं ने रिजर्वेशन पॉलिसी की समीक्षा को लेकर विरोध प्रदर्शन किया।

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह के घर के बार प्रदर्शन करते छात्र । वीडियो स्क्रीन ग्रैब । एक्स
जम्मू कश्मीर में आरक्षण नीति की समीक्षा को लेकर मांग उठ रही है। कई राजनेता और सैकड़ों छात्र इसके लिए जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के आवास के बाहर एकत्र हुए। इस नीति को इस साल के शुरुआत में उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने लागू किया था।
छात्रों के साथ अब्दुल्ला की अपनी पार्टी (नेशनल कॉन्फ्रेंस) के सदस्य और सांसद रूहुल्लाह मेहदी भी मौजूद थे। रविवार को एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने आरक्षण नीति में तर्कसंगतता की मांग को लेकर सीएम के आवासीय कार्यालय के बाहर गुपकर रोड पर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था।
पीडीपी के विपक्ष के नेता वहीद पारा और इल्तिजा मुफ्ती के साथ ही आवामी इत्तिहाद पार्टी के नेता शेख खुर्शीद (इंजीनियर राशिद के भाई) भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
इन सबके अलावा अब्दुल्ला के बेटे भी मेहदी और छात्रों के साथ शामिल होने के लिए बाहर निकल आए।
इस बीच, मुफ्ती ने छात्रों से बात की और बाद में पत्रकारों से कहा, 'हम यहां राजनीति करने नहीं आए हैं।'
उन्होंने कहा कि घाटी में राजनीति अनुच्छेद 370 और राज्य का दर्जा बहाल करने के इर्द-गिर्द घूमती है, और कोई भी 'युवाओं' के बारे में बात नहीं करता।
मुफ्ती ने मीडिया से कहा, 'उनकी बहुत बुनियादी मांगें हैं - जैसे आरक्षण न्यायसंगत होना चाहिए और भेदभावपूर्ण नहीं होना चाहिए... हमें उम्मीद है कि जो सरकार भारी जनादेश के साथ सत्ता में आई है और इस वादे के साथ कि वे आरक्षण को तर्कसंगत बनाएंगे - हमें उम्मीद है कि एनसी सरकार समयबद्ध तरीके से अपने वादों को पूरा करेगी।'
विरोध प्रदर्शन शुरू होने के कुछ घंटों बाद, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने छात्रों को बुलाया और अपने कार्यालय में उनसे बात की।
क्या है पॉलिसी
इस साल के शुरुआत में विधानसभा चुनावों से पहले उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा प्रस्तुत नीति में नौकरियों और प्रवेशों में सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण प्रतिशत घटा दिया गया और आरक्षित श्रेणियों के लिए आरक्षण प्रतिशत बढ़ा दिया गया।
तत्कालीन प्रशासन ने पहाड़ी और तीन अन्य जनजातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दी थी, जिससे अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी के तहत कुल आरक्षण 20 प्रतिशत हो गया था।
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) आयोग की सिफारिश के अनुसार ओबीसी की सूची में 15 नई जातियों को जोड़ने के अलावा, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 8 प्रतिशत आरक्षण भी दिया गया। फरवरी में संसद ने बजट सत्र के दौरान पहाड़ी जातीय जनजाति, पद्दारी जनजाति, कोली और गद्दा ब्राह्मणों के लिए आरक्षण को मंजूरी दी थी।
बाद में मार्च में, एलजी सिन्हा के नेतृत्व में प्रशासनिक परिषद की बैठक हुई और जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023, दिनांक 15.12.2023, संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 2024, संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 2024 और जम्मू और कश्मीर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के आलोक में जम्मू और कश्मीर आरक्षण नियम, 2005 में संशोधन करने के समाज कल्याण विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
क्यों हो रहा विरोध
यह आरक्षण नीति राजनेताओं और छात्रों दोनों को पसंद नहीं आई। घाटी में इस नीति की समीक्षा और इसे वापस लेने की मांग उठ रही थी।
हालांकि एनसी सांसद रूहुल्ला मेहदी ने छात्रों से नवंबर में उनके आंदोलन में शामिल होने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि नई सरकार आरक्षण नीति पर कोई कार्रवाई इसलिए नहीं कर सकी क्योंकि नव निर्वाचित उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार और एलजी सिन्हा के बीच सत्ता के हस्तांतरण को लेकर भ्रम की स्थिति है।
उन्होंने कहा, 'मुझे बताया गया है कि निर्वाचित सरकार और अन्य अलोकतांत्रिक तरीके से थोपे गए कार्यालय के बीच कई मुद्दों पर कामकाज के नियमों के वितरण को लेकर कुछ भ्रम है और यह विषय उनमें से एक है। मुझे भरोसा है कि सरकार जल्द ही नीति को तर्कसंगत बनाने का फैसला लेगी।'
रिव्यू करने के लिए गठित हुआ पैनल
10 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर सरकार ने नौकरियों और एडमिशन में आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया। इस पैनल में स्वास्थ्य मंत्री सकीना इटू, वन मंत्री जावेद अहमद राणा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सतीश शर्मा शामिल हैं। अभी तक समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है।
दो दिन बाद, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने आरक्षण नीति को चुनौती देने वाली एक नई याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।
अदालत ने पिछली याचिका को हाल की याचिका के साथ जोड़ दिया।
सीएम बोले- अदालत का फैसला मानेंगे
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की है, लेकिन वह इस मामले में अदालत के निर्देशों का पालन करेगी।
यह स्पष्ट करते हुए कि वह आरक्षण के मुद्दे पर उभर रही भावनाओं को समझते हैं, अब्दुल्ला ने पुष्टि की कि उनकी पार्टी जेकेएनसी अपने घोषणापत्र के सभी पहलुओं की समीक्षा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
अब्दुल्ला ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'इस प्रतिबद्धता की निरंतरता के रूप में इस वादे को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया गया था। उस उप-समिति को हाल ही में अधिसूचित किया गया था और वह सभी हितधारकों के साथ मिलकर अपना काम शुरू करने की प्रक्रिया में है।'
उन्होंने कहा कि इस नीति को उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई है, और कहा कि उनकी सरकार निश्चित रूप से 'अंतिम कानूनी विकल्प समाप्त हो जाने पर किसी भी निर्णय को मानने के लिए बाध्य होगी'।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा, 'मेरे संज्ञान में आया है कि आरक्षण नीति के इर्द-गिर्द अन्याय की भावना को उजागर करने के लिए श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है। शांतिपूर्ण विरोध एक लोकतांत्रिक अधिकार है और मैं किसी को भी इस अधिकार से वंचित करने वाला अंतिम व्यक्ति होऊंगा, लेकिन कृपया यह जानते हुए विरोध करें कि इस मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया गया है या दबाया नहीं गया है।'
उन्होंने लोगों को आश्वासन दिया कि सभी की बात सुनी जाएगी और उचित प्रक्रिया के बाद निष्पक्ष निर्णय लिया जाएगा।
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