CM से डिप्टी और डिप्टी से फिर CM बनने जा रहे फडणवीस की कहानी क्या है?
कभी CM रहे नेता को पद छोड़ना पड़ा, डिप्टी का पद स्वीकार करना पड़ा लेकिन इस नेता ने सब्र रखा, संघर्ष किया और अब फिर से अपने पुराने पद पर वापसी की तैयारी कर ली है। यह कहानी देवेंद्र फडणवीस की है।

देवेंद्र फडणवीस, Source: Devendra Fadnavis X Handle
लंबे इंतजार के बाद यह तय हो गया है कि देवेंद्र फडणवीस ही महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक दल की बैठक में देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मोहर लगा दी गई है और यह भी कहा गया है कि गुरुवार को शपथ ग्रहण होगा। इस पद के लिए देवेंद्र फडणवीस को लंबा इंतजार करना पड़ा है। इतना ही नहीं, कई बार उन्हें अपमान का घूंट भी पीना पड़ा लेकिन फडणवीस लगे रहे और आखिरकार उस पद पर लौट ही आए जिस पर वह दो बार पहले भी आसीन हो चुके हैं।
30 जून 2022 को यह तय हो चुका था कि अब एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे। इसकी घोषणा कोई और नहीं बल्कि महाराष्ट्र के सीएम रह चुके देवेंद्र फडणवीस कर रहे थे। यानी 'मेरे किनारे पर घर मत बना लेना' कहने वाला नेता, खुद ही किसी और का घर बन जाने का ऐलान कर रहा था। शिकन माथे पर थी, दिल में थोड़ी तकलीफ थी लेकिन एक अच्छे नेता की तरह फडणवीस के चेहरे पर मुस्कान थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी फडणवीस अपने स्वभाव के मुताबिक सौम्यता से अपनी बात रख रहे थे लेकिन उनकी आखिरी बात ने यह साफ कर दिया था कि इस सौम्यता के पीछे उनका दर्द छिपा था। फडणवीस ने कहा कि वह इस सरकार का हिस्सा नहीं बनेंगे। ऐसा कहने की वजह यही थी कि यह पद स्वीकार करने का मतलब फडणवीस का डिमोशन था।
खैर, समय आगे बढ़ा और और शाम तक यह भी स्पष्ट हो गया कि देवेंद्र फडणवीस सरकार का हिस्सा होंगे और डिप्टी सीएम बनेंगे। इस घटना के कुछ महीने बाद देवेंद्र फडणवीस ने सार्वजनिक तौर पर भी स्वीकार किया कि डिप्टी सीएम बनना उनके लिए हैरान करने वाला था और वह इसके लिए तैयार नहीं थे। लेकिन यही तो राजनीति है कि आप न चाहते हुए भी वे चीजें करते हैं जो न तो आप करना चाहते हैं और न ही वे आपको पसंद होती हैं। इस सबके बावजूद बीजेपी के पूर्व नेता गंगाधर फडणवीस के बेटे और नितिन गडकरी के शिष्य कहे जाने वाले देवेंद्र फडणवीस ने धैर्य रखा। पार्टी के लिए मेहनत की और मुंबई से लेकर दिल्ली तक की राजनीति को साधने के साथ-साथ जमीन पर भी काम करते रहे। उसका असर महाराष्ट्र के चुनाव में दिखा है और बीजेपी अपने दम पर 132 सीटें जीतकर महायुति में सबसे मजबूत दिखने लगी है।
यह कहानी उन्हीं देवेंद्र फडणवीस की है जिन्हें 5 साल सरकार चलाने के बाद कई बार मन मसोस कर रह जाना पड़ा। कभी उद्धव ठाकरे की जिद के चलते शपथ लेने के बाद इस्तीफा देना पड़ा तो कभी एकनाथ शिंदे को अपने हाथों अपनी कुर्सी सौंप देनी पड़ी।
2019 के बाद क्या हुआ?
देवेंद्र फडणवीस के संघर्ष की यह कहानी साल 2019 में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के ठीक बाद से शुरू होती है। शिवेसना और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था। पहले भी उसी की सरकार थी और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे। चुनाव जीतने के बाद भी यही लग रहा था कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे। यहीं पर उद्धव ठाकरे अड़ गए थे। उद्धव ठाकरे का कहना था कि उनकी अमित शाह से बात हुई थी कि ढाई-ढाई साल शिवसेना और बीजेपी का सीएम रहेगा। 24 अक्तूबर 2019 को चुनाव के नतीजे आए थे, शिवसेना-बीजेपी गठबंधन को पूर्ण बहुमत भी मिला था लेकिन सीएम पद पर बात अटक गई। दरअसल, फडणवीस और अमित शाह ने कहा कि ऐसी कोई बात ही नहीं हुई थी और शिवसेना को कोई आश्वासन दिया ही नहीं गया था।
नतीजा यह हुआ कि अपने बेटे आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने की चाह रखने वाले उद्धव ठाकरे दूसरे रास्ते देखने लगे। एक तरफ उद्धव ठाकरे कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी से बातचीत में लगे हुए थे। फडणवीस को लगा कि बात हाथ से निकल सकती है। उन्होंने अजित पवार से बात की और उन्हें अपने साथ ले लिया। 23 नवंबर 2019 की सुबह आनन-फानन में देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली। कहा यह गया कि बीजेपी अब एनसीपी की मदद से सरकार बनाने जा रही है। हालांकि, यहां मामला बिगाड़ दिया शरद पवार ने। शरद पवार ने कहा कि वह बीजेपी के साथ नहीं जा रहे हैं। मजबूर होकर पांच दिन में ही देवेंद्र फडणवीस को 28 नंवबर को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।
इस्तीफा देने के बाद फडणवीस ने कहा, 'महाराष्ट्र ने महायुति को शानदार जनादेश दिया। नतीजों के दिन ही उद्धव ठाकरे ने यह कह दिया कि उनके पास सभी विकल्प खुले हैं, यह हमारे लिए एक बड़ा झटका था। यह बड़ा सवाल है कि वह विकल्प की बात क्यों कर रहे हैं। जो गलफहमियां पैदा हुईं उन्हें बातचीत से सुलझाया जा सकता था लेकिन उद्धव कभी बात करना ही नहीं चाहते थे।' खैर, यहां से शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस की सरकार बनी, उद्धव ठाकरे सीएम बने और देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम पद की शपथ लेने वाले अजित पवार इस सरकार में भी डिप्टी सीएम बने।
2022 में पलट गया खेल
लगभग ढाई साल सरकार चल चुकी थी और इसी बीच एमएलसी के चुनाव हुए। इसी चुनाव में कुछ ऐसा हुआ कि महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई। उद्धव ठाकरे से अच्छी करीबी रखने वाले फडणवीस को सबसे बड़ा झटका उद्धव ने ही दिया था। इसकी कसक फडणवीस के मन में भी थी। ऐसे में जब उन्हें मौका मिला तो देवेंद्र ने किसी भी हाल में इस मौके को जाने नहीं दिया। 'मी पुन्हा येईन' यानी 'मैं वापस आऊंगा' का नारा देने वाले फडणवीस फिर से इस नारे को सच साबित करने में लग गए। महाराष्ट्र के MLC चुनाव में बीजेपी को जीत मिली थी। स्पष्ट था कि शिवसेना में बगावत हो गई। जब तक उद्धव ठाकरे इसकी वजह समझ पाते, तब तक उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी।
मुंबई में बीजेपी का जश्न चल रहा था और फडणवीस यहां से यह बताकर निकले कि वह नासिक जा रहे हैं, जहां 21 जून को योग दिवस का कार्यक्रम होना है। इस कार्यक्रम में अमित शाह को भी आना था। रात में ही खबरें आने लगीं कि एकनाथ शिंदे ने शिवसेना विधायकों को साथ लेकर बगावत कर दी है और वह विधायकों के साथ गुजरात के सूरत पहुंच गए हैं। फडणवीस को इसकी जानकारी देने की कोशिश एक नेता ने की। जवाब मिला- मैं दिल्ली में हूं और मुझे सब पता है। शुरुआत में बीजेपी साफ कहती रही कि इस बगावत के पीछे उसका हाथ नहीं है लेकिन बाद में एकनाथ शिंदे ने ही इसके बारे में सबकुछ बताया।
जुलाई 2022 में एकनाथ शिंदे ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बताया कि जब शिवसेना के बागी विधायकों को सूरत से गुवाहाटी ले जाया गया, तब वह फडणवीस से मिलते थे। इतना ही नहीं, शिंदे ने तो यह भी कहा कि उनके साथी विधायक सो रहे होते तो वह फडणवीस से मिलने जाते और उनके उठने से पहले ही गुवाहाटी लौट आते थे। दरअसल, पिछली बार अजित पवार और शरद पवार के चक्कर में धोखा खा चुके देवेंद्र फडणवीस इस बार किसी भी तरह की कोई चूक नहीं करना चाहते थे। एकनाथ शिंदे के बारे में ठाकरे परिवार को यह तो पता था कि वह फडणवीस के करीबी हैं लेकिन यह करीबी इस कदर भारी पड़ेगी इसको लेकर उनसे चूक हो गई।
फडणवीस की राजनीति
सौम्य स्वभाव के फडणवीस के बारे में कहा जाता है कि वह भले ही कम उम्र में सबकुछ हासिल करते गए हों लेकिन राजनीति में वह कच्चे नहीं हैं। इसका उदाहरण भी उनके राजनीतिक फैसलों में मिलता है। नागपुर क्षेत्र से आने वाले नितिन गडकरी की उंगली पकड़कर राजनीति करने वाले फडणवीस ने देखते ही देखते गडकरी के ही विरोधी कहे जाने वाले गोपीनाथ मुंडे का हाथ थाम लिया था। गोपीनाथ मुंडे ही वह शख्स थे जिनके सहारे फडणवीस महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष बने और अंत में सीएम की कुर्सी तक भी पहुंचे।
देवेंद्र फडणवीस संघ की नर्सरी से निकले नेताओं में से एक हैं। वह नागपुर से आते हैं और आरएसएस से भी शानदार समन्वय रखते हैं। सीएम बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने खुद को चतुर नेता के तौर पर भी स्थापित किया। युवा फडणवीस के सामने उनकी ही पार्टी में उनके कई प्रतिद्वंद्वी थे। नितिन गडकरी केंद्र में मंत्री बन गए थे। वहीं, फडणवीस के विरोधी नेता कहे जाने वाले विनोद तावड़े, एकनाथ खड़से, पंकजा मुडे और चंद्रकांत पाटिल भी अलग-अलग वजहों से किनारे होते गए। किसी का टिकट कटा, किसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो कोई कहीं और फंसा। फायदा फडणवीस को मिला और वह महाराष्ट्र बीजेपी के एकमात्र मजबूत नेता के तौर पर नजर आने लगे।
मराठा आरक्षण और फडणवीस
बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस को एक ऐसा राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था जो मराठी लोगों का राज्य कहा जाता है। फडणवीस नागपुर के ब्राह्मण परिवार से आते थे। लिहाजा राजनीतिक तौर पर खुद को और मजबूत करने की कोशिश में देवेंद्र फडणवीस ने मराठा आरक्षण का कानून पास करवाया। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सरकार के इस फैसले को पलट दिया और माइलेज लेने की कोशिश में आगे बढ़े फडणवीस पर ही इसका दोष मढ़ दिया गया। इसके बावजूद, देवेंद्र फडणवीस की व्यक्तिगत इमेज साफ रही।
उन्होंने राजनीति और सरकार को अच्छी तरह संभाला और पांच साल बेहद आसानी से सरकार भी चलाई। जलयुक्त शिवार अभियान, आपले सरकार और राइट टु सर्विस ऐक्ट जैसे फैसलों के जरिए देवेंद्र फडणवीस ने एक अच्छे प्रशासक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। फडणवीस ने सीएम रहते हुए युवाओं, महिलाओं और गरीबों के लिए भी कई कार्यक्रम शुरू किए। बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं के बावजूद उनकी अगुवाई में महायुति 2019 में चुनाव जीतने में कामयाब रही।
चतुर हैं फडणवीस
देवेंद्र फडणवीस के बारे में कहा जाता है कि वह जितने सीधे दिखते हैं, राजनीतिक तौर पर उतने ही चालाक हैं। उनके पास बहुत सारे खबरी हैं जो विपक्षी दलों के साथ-साथ अपनी ही पार्टी में मौजूद प्रतिद्वंद्वियों की खबरें भी उन तक पहुंचाते हैं। यही वजह है कि फडणवीस अपने कार्यकाल में किसान आंदोलन और मराठा आंदोलन से निपटने में कामयाब रहे। इतना ही नहीं, एकनाथ शिंदे की सरकार होते हुए भी कई मौकों पर फडणवीस ही क्राइसिस मैनेजेर के तौर पर सामने आए। उन्होंने मीडिया का इस्तेमाल भी बहुत बढ़िया तरीके से किया है और एक वर्ग के बीच अपने समर्थक तैयार कर लिए हैं। वह जानते हैं कि कब किससे क्या कहना है और कहां, कौनसी बात छिपा लेनी है। उनकी इसी चतुराई की बदौलत उनकी सरकार के मंत्रियों को तो पद छोड़ना पड़ा था लेकिन इसका दाग फडणवीस के दामन पर नहीं लगने पाया।
शिवसेना को निपटा गए फडणवीस?
देवेंद्र फडणवीस को सीएम के पद से इस्तीफा देना पड़ा था और इसकी बड़ी वजह उद्धव ठाकरे थे। इसका बदला फडणवीस ने अच्छे से लिया। फडणवीस ने एकनाथ शिंदे को अपने साथ लाकर न सिर्फ उद्धव की सरकार गिराई बल्कि उद्धव से वही पार्टी छीन ली जो उनके पिता बाल ठाकरे ने बनाई थी। फडणवीस ने एक और चतुराई दिखाई और एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने पर सहमत हो गए। इसका नतीजा यह हुआ कि रही सही शिवसेना भी उद्धव ठाकरे के हाथ से निकलती गई और विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे की शिवसेना आगे निकल गई। वहीं, उद्धव ठाकरे एकदम सीमित हो गए।
कौन हैं देवेंद्र फडणवीस?
सीएम बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस राष्ट्रीय पटल पर चर्चित हो गए। इससे पहले का उनका परिचय बीजेपी नेता, कॉरपोरेटर, मेयर और विधायक का था। नागपुर से लॉ की डिग्री लेने और बिजनेस मैनेजमेंट पढ़ने वाले देवेंद्र का परिवार पहले से राजनीति में सक्रिय था और उनके पिता बीजेपी के नेता थे। साल 1992 में उनकी सक्रिय राजनीति में एंट्री होती है और वह नागपुर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के कॉरपोरेटर चुने गए। अगली बार फिर जीते तो नागपुर के मेयर बन गए। 1999 में विधानसभा का टिकट मिला और उसी साल विधायक भी बन गए। इसके ठीक 15 साल के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला तो आरएसएस और बीजेपी दोनों के चहेते फडणवीस को सीएम बनाया गया। दरअसल, फडणवीस 2023 में ही महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष बने थे। नितिन गडकरी के मार्गदर्शन में काम करने वाले फडणवीस आगे चलकर गोपीनाथ मुंडे के करीबी बन गए थे। चुनाव जीते तो उन्हें पीएम मोदी का भी आशीर्वाद मिला और उनके लिए पीएम मोदी ने कहा, 'देवेंद्र देश के लिए नागपुर का तोहफा हैं।'
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