देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा का चुनाव एक साथ कराने के लिए एक देश एक चुनाव बिल लोकसभा में पेश किया जा चुका है. इस बिल पर 269 वोट इसके समर्थन में पड़े जबकि 196 वोट विपक्ष में पड़े.
इसके बाद विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति यानी कि जेपीसी को भेज दिया गया. यह समिति में 31 सदस्य होंगे और इसकी अध्यक्षता लोकसभा सांसद पीपी चौधरी करेंगे.
तो इस लेख में खबरगांव आपको बताएगा कि कौन हैं पीपी चौधरी?
राजस्थान से पाली सीट से बीजेपी सांसद पीपी चौधरी शुरू से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं। उनका राजनीतिक सफर पिछले सालों में काफी तेजी से आगे बढ़ा है।
2014 में पहली बार बने सांसद
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे तभी वह भी पहली बार सांसद बने थे। उस साल ही उन्होंने अपनी राजनीतिक शुरूआत की थी और पाली की सीट कांग्रेस से छीन ली थी। इस साल भी वह पाली से ही सांसद हैं।
पेशे से वकील थे चौधरी
उसके पहले चौधरी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में वकील के सीनियर अधिवक्ता के रूप में काम करते थे। पहले कार्यकाल में सांसद बनने के बाद वह लाभ के पद पर बनी संयुक्त स्थायी समिति के चेयरमैन सहित कई संसदीय समितियों का हिस्सा रहे हैं। इसके बाद साल 2016 में उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया और वह कानून एवं न्याय मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया।
अपने दूसरे कार्यकाल में वह तमाम पैनल के सदस्य और अध्यक्ष रहे। साल 2021 में वह जन विश्वास (प्रावधान संशोधन) विधेयक के अध्यक्ष और 2022 में निजी डेटा संरक्षण विधेयक की संयुक्त संसदीय समिति के भी अध्यक्ष रहे।
चौधरी ने जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी, जोधपुर से कानून की पढ़ाई की और इसके बाद हाई कोर्ट में और फिर सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस शुरू की।
स्थानीय पाली नेता ने नाम न बताए जाने की शर्त पर कहा कि चौधरी जमीन पर खुद ज्यादा सक्रिय नहीं रहते थे बल्कि बीजेपी के इवेंट में ज्यादा दिखते थे। आमतौर पर उनकी टीम के सदस्य जमीन पर ज्यादा रहते थे।
एक देश एक चुनाव के रहे हैं समर्थक
चौधरी एक देश एक चुनाव के समर्थक रहे हैं। उनका कहना रहा है कि भारतीयों की 'मेहनत की कमाई' को बचाने के लिए यह जरूरी है। उनके मुताबिक बार-बार चुनाव होने की वजह से राज्य और चुनाव आयोग के जरिए संसाधनों का उपयोग उसी में होता रहता है जो कि गवर्नेंस, विकास और कल्याणकारी ऐक्टिविटी पर नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
वह इस तर्क को भी खारिज करते हैं जिसके तहत कहा जाता है कि इससे क्षेत्रीय पार्टियां स्थानीय मुद्दे को नहीं उठा पाएंगी।
वह मीडिया वेबसाइट पर छपे एक लेख में तर्क देते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनाव का उदाहरण दिया जिसमें बीजेपी का वोट शेयर विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनावों की तुलना में कम था।
उन्होंने कहा कि इसका सीधा सा मतलब है कि जिन लोगों ने लोकसभा में बीजेपी को वोट दिया उनमें से कुछ लोगों ने विधानसभा के लिए बीजेपी को वोट नहीं दिया।