हर समुदाय की अपनी संस्कृति और प्रथा होती है। अगर वह संविधान में वर्णित मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है तो उन्हें जारी रखा जा सकता है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि अगर राज्य में उनकी सरकार बनती है तो यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करेंगे लेकिन आदिवासी, इस कानून से बाहर रहेंगे।
झारखंड में आदिवासियों की 32 उपजातियां रहती हैं। इन आदिवासी जातियों के नाम मुंडा, संताल (संथाल या सौतार), उरांव, खड़िया, गोंड, कोल, कनबार, सावर, असुर, बैगा, बंजारा, बथूड़ी, बेदिया, बिंझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक बड़कई, गोराइत, हो, करमाली,खरवार, खोंड, किसान, कोरा, कोरबा, लोहरा, महली, माल पहाड़िया, पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया और भूमिज है। इन आदिवासियों की अलग-अलग प्रथाएं हैं, जो प्रचलित धर्मों की प्रथाओं से अलग हैं।
क्यों यूसीसी लाना चाहते हैं अमित शाह?
समान नागिरक संहिता (UCC), सभी नागरिकों के लिए एक समान कानूनी ढांचा तैयार करेगी। यह लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी है। इस्लामिक कानून में 3 शादियां, संपत्ति के बंटवारे संबंधी अधिकार, महिला-पुरुषों के संपत्ति संबंधी अधिकारों में भेद जैसी स्थितियां हैं। आजादी के वक्त से ही यूसीसी पर बहस चलती रही है। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में यह प्रयोग किया है, अब अगर झारखंड में बीजेपी आई तो ऐसा दांव चल सकती है।
यूसीसी पर अमित शाह ने कहा क्या है?
समान नागरिक संहिता पर अमित शाह ने रविवार को कहा, 'आदिवासी का कोई अधिकार नहीं छीना जायेगा। उत्तराखंड में एक मॉडल भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने देश के सामने रखा है। उसमें हमने आदिवासियों को उनके रिति-रिवाजों को, संस्कारों को और उनके कानूनों को पूरी तरह यूसीसी से बाहर रखा है। बीजेपी देश भर में जहां यूसीसी लाएगी, वहां आदिवासी को बाहर रखकर उसको लागू करेगी।'
क्यों UCC के दायरे से बाहर रहेंगे आदिवासी?
कुछ जनजातियों में लिव-इन-रिलेशनशिप की प्रथा बेहद पुरानी है। सरहुल परब, करम परब, मागे परब, जावा, टुसू, भगता परब, आखांइन जतरा, जानी शिकार जैसी तमाम ऐसी प्रथाए हैं, जो हिंदू और दूसरे धर्मों की प्रथाओं से अलग हैं। कहीं-कहीं बहुविवाह का प्रचलन है, हालांकि उस पर अब रोक है। गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि झारखंड के आदिवासियों की स्थानीय परंपराओं में दखल नहीं दिया जाएगा, क्योंकि वे किसी के मानवाधिकारों का हनन नहीं करती हैं।