विपक्ष के नेता और रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद राहुल गांधी ने आज संसद में एकलव्य और द्रोणाचार्य का जिक्र किया। संसद में युवाओं की बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि ‘जैसे द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा काटा, वैसे ही सरकार युवाओं का अंगूठा काट रही है।’ इस वक्तव्य के सामने आते ही कि कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं, जिसमें द्रोणाचार्य के अंगूठा काटने को गलत बताया है।
इससे पहले भी राहुल गांधी ने अभय मुद्रा पर भी बोल चुके हैं। उन्हें संसद में भगवान शिव की तस्वीर दिखाते हुए कहा था कि इस चित्र में कांग्रेस पार्टी चुनाव चिह्न ‘अभय मुद्रा’ है। आइए जानते हैं द्रोणाचार्य और एकलव्य वास्तविक कथा क्या है और अभी मुद्रा किसे कहा जाता है?
द्रोणाचार्य और एकलव्य की कथा
लोक मान्यताओं के अनुसार, द्रोणाचार्य कुरु वंश के राजकुमारों के गुरुकुल के प्रमुख गुरु थे। वह कौरव और पांडव राजकुमारों को शास्त्र विद्या सिखाते थे। उनसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई छात्र आतुर रहते थे। इसी दौरान, निषाद राज के पुत्र एकलव्य द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखने की इच्छा लेकर उनके पास आया। लेकिन द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा देने से यह कहकर मना कर दिया कि वह केवल राजकुमारों को ही शिक्षा देते हैं।
एकलव्य ने ठान लिया था कि वह धनुर्विद्या सीखकर ही रहेगा। इसके लिए वह स्वयं ही अभ्यास करने का निश्चय किया। उसने द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उन्हें अपना गुरु मान लिया और उनके सामने खड़े होकर धनुर्विद्या का अभ्यास आरंभ कर दिया। एकलव्य के कठोर परिश्रम के बाद वह धनुर्विद्या में पारंगत हो गया।
इसके कुछ समय बाद, एक बार द्रोणाचार्य और उनके शिष्य जंगल में अभ्यास कर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक कुत्ते का मुख तीरों से भरा हुआ है, लेकिन वह घायल नहीं हुआ है। यह देखकर द्रोणाचार्य समझ गए कि ऐसा केवल एक कुशल धनुर्धर ही कर सकता है। जब उन्होंने खोज की, तो पाया कि यह कार्य एकलव्य ने किया था।
गुरु द्रोणाचार्य को यह आभास हुआ कि एकलव्य अर्जुन से बेहतर धनुर्धर बन जाएगा। इसलिए उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा मांगते हुए कहा कि वह अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काटकर दे। एकलव्य ने बिना किसी झिझक के अपना अंगूठा काटकर गुरु को समर्पित कर दिया।
जानिए क्या है अभय मुद्रा?
कई बार जब हम देवी-देवताओं के चित्र देखते हैं तो उसमें वह अभय मुद्रा में जिसे आशीर्वाद की मुद्रा भी कहा जाता है, में दिखाई देते हैं। मान्यताओं के अनुसार, अभय मुद्रा को शुभता और सुरक्षा का प्रतीक कहा जाता है, जिसे भगवान शिव, बुद्ध, गुरु नानकदेव और महावीर स्वामी के चित्र में दिखाई देता है। भगवान शिव के अभय मुद्रा को उनके द्वारा दिए जाने वाले आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है और यह उनकी प्रसन्न मुद्रा मानी जाती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।