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नरमुंड की माला, शमशान में तपस्या, कैसा होता है अघोरी साधुओं का जीवन?

अघोरी साधुओं का जीवन आम सन्यासियों से बहुत अलग होता है। आइए जानते हैं अघोरी साधुओं किस तरह तपस्या करते हैं और उनका उद्देश्य क्या है?

AI Image of Aghori Sadhu

सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: AI Credit)

हिन्दू धर्म में सन्यास की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। संन्यासी अलग-अलग परंपराओं का पालन करके मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग ढूंढते हैं। इन्हीं में से एक है अघोरी परंपरा। बता दें कि अघोरी साधुओं का जीवन रहस्यमय, कठिन और साधारण जीवन से बिल्कुल अलग होता है। यह साधु अपनी कठोर तपस्या, विचित्र साधनाओं और समाज से अलग जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। 

 

अघोरी साधुओं का जीवन त्याग, साधना और आध्यात्मिक शक्तियों की खोज पर आधारित होता है। अघोरी साधु भगवान शिव के भक्त होते हैं और उन्हें शिव का स्वरूप मानते हैं। उनका मानना है कि शिव ही सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं।

नरमुंड और श्मशान का महत्व

अघोरी साधु अक्सर नरमुंड (खोपड़ियों) की माला पहनते हैं और श्मशान घाटों में तपस्या करते हैं। उनके अनुसार, मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है और इसे समझकर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। श्मशान में तपस्या करना इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह स्थान मृत्यु और जीवन के बीच का संतुलन दिखाता है। वहां की ऊर्जा और वातावरण उन्हें अपने साधनाओं में सहायता प्रदान करते हैं।

जीवनशैली और रहन-सहन

अघोरी साधु का जीवन पूरी तरह से प्रकृति और आध्यात्म पर निर्भर होता है। वे आम लोगों की तरह घर, परिवार या संपत्ति से बंधे नहीं होते। उनका निवास स्थान श्मशान, जंगल या किसी दूरस्थ स्थान पर होता है। वे अपने खाने-पीने में भी नियमों का पालन करते हैं। अघोरी शुद्धता और अपवित्रता के भेद को समाप्त मानते हैं। वे हर चीज को भगवान का प्रसाद मानते हैं, चाहे वह भोजन हो, पानी हो या फिर अन्य कुछ।

आध्यात्मिक साधनाएं और तंत्र-मंत्र

अघोरी साधु तंत्र-मंत्र और साधनाओं में निपुण होते हैं। वे भगवान शिव और शक्ति की उपासना करते हैं और मानते हैं कि कठिन साधनाओं के माध्यम से वे उच्चतम आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त कर सकते हैं। उनकी साधना बहुत कठिन और मानसिक व शारीरिक शक्ति की परीक्षा होती हैं। इनमें ध्यान, मंत्र जाप और कई रहस्यमयी तांत्रिक प्रक्रियाएं शामिल होती हैं।

अघोरी बनने की प्रक्रिया

अघोरी साधु बनने के लिए व्यक्ति को अपने जीवन का पूर्ण त्याग करना पड़ता है। वे किसी गुरु के मार्गदर्शन में दीक्षा लेते हैं और समाज, परिवार और भौतिक सुख-सुविधाओं से अलग हो जाते हैं। उन्हें अपने अंदर की सभी इच्छाओं और भावनाओं को समाप्त करना पड़ता है। यह प्रक्रिया अत्यंत कठिन होती है और हर कोई इसे नहीं अपना सकता है।

समाज से दूरी

अघोरी साधु समाज से अलग रहते हैं और अकेले जीवन जीना पसंद करते हैं। उनका मानना है कि सांसारिक जीवन में उलझकर व्यक्ति अपने लक्ष्य से भटक जाता है। वे समाज के नियमों और परंपराओं को नहीं मानते, बल्कि अपनी साधनाओं और जीवनशैली के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं।

अघोरी साधुओं की मान्यताएं

अघोरी साधु यह मानते हैं कि दुनिया में कोई भी चीज अपवित्र नहीं है। वे हर चीज में भगवान शिव का रूप देखते हैं। उनका उद्देश्य सांसारिक मोह-माया और द्वैत को समाप्त कर अद्वैत की प्राप्ति करना होता है। उनके अनुसार, सृष्टि में सब कुछ शिव की रचना है, इसलिए पवित्र और अपवित्र का भेद करना अनुचित है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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