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अश्वत्थामा और असीरगढ़ किले के इस रहस्य को जानकर चौंक जाएंगे आप

मध्य प्रदेश में स्थित असीरगढ़ किले का संबंध महाभारत के योद्धा अश्वथामा से जुड़ता है। आइए जानते हैं क्या है इस स्थान का रहस्य?

Asirgarh Fort and Ashwathama Image

असीरगढ़ किला और अश्वत्थामा। (Pic Credit: Creative Image)

हिन्दू धर्म में कई मान्यताएं ऐसी हैं जो पौराणिक धर्म-ग्रंथों पर आधारित हैं, जिससे जुड़े कई रहस्य भी प्रचलित हैं। इन्हीं में एक है महाभारत काल के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र और अष्ट चिरंजीवियों में से एक अश्वत्थामा के जीवित होने की मान्यता शामिल है। अश्वत्थामा के लिए कहा गया है कि वह आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं और विचरण करते हैं। बता दें कि अष्ट चिरंजीवी वह आठ पौराणिक कथाओं के पात्र हैं, जिन्हें अमरत्व का वरदान या श्राप मिला था।

कैसे अश्वत्थामा हुए अमर?

पौराणिक कथा के अनुसार, अश्वत्थामा महाभारत के महान योद्धा, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। उन्हें महाभारत के युद्ध में ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने के कारण श्रीकृष्ण ने श्राप दिया था कि वे अमर रहेंगे और अनंत काल तक पृथ्वी पर भटकते रहेंगे।

असीरगढ़ किला

अश्वत्थामा के इसी श्राप से असीरगढ़ किले से जुड़ी कई कहानियां और रहस्य प्रचलित हैं। बता दें कि असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित है और इसे ‘दक्षिण का द्वार’ भी कहा जाता है। यह किला ऐतिहासिक रूप से कई राजाओं और बादशाहों के अधीन रहा, लेकिन पौराणिक दृष्टि से इसे अश्वत्थामा की तपस्या और निवास स्थान के रूप में जाना जाता है।

 

असीरगढ़ का किला लगभग 15वीं शताब्दी में बनाया गया था, जब यह क्षेत्र फारूकी राजवंश के अधीन था। इस किले का निर्माण राजा आसा अहमद शाह ने करवाया था, जो एक शक्तिशाली शासक था। किले की वास्तुकला मुगल और राजपूत शैली का मिश्रण है, जो उस समय की विशेषता थी। किले की दीवारें मजबूत और ऊंची हैं, जो हमलावरों को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई थीं। किले के अंदर कई महल, मंदिर और अन्य संरचनाएं हैं, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।

अश्वत्थामा और किले से जुड़ी मान्यताएं

लोककथाओं और मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और असीरगढ़ किले के पास स्थित शिव मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने आते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, हर सुबह किले के शिव मंदिर, जो गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रख्यात हैं, में पूजा के साक्ष्य दिखाई देते हैं, जिसमें सुबह के समय ताजे फूल और शिवलिंग का जलाभिषेक होना शामिल है। कहा जाता है कि यह पूजा अश्वत्थामा द्वारा की जाती है। कुछ कथाओं में यहां तक कहा गया है कि अश्वत्थामा किले के पास जंगलों में रहते हैं और समय-समय पर ग्रामीणों को अपनी उपस्थिति का एहसास कराते हैं। 

 

कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके बड़े-बुजुर्गों के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई थीं, जो अश्वत्थामा के होने का दावा करते हैं। वह बताते हैं कि अश्वत्थामा ने अपने घाव पर लगाने के लिए हल्दी और तेल मांगा था। ऐसा इसलिए क्योंकि मान्यता है कि अश्वथामा के माथे पर मणि को निकालने के बाद वह घाव बन गया था जो कभी ठीक नहीं होता। वहीं कुछ बुजुर्गों का कहना है कि जो भी अश्वत्थामा को देख लेता है, वह मानसिक रूप से बीमार पड़ जाता है, जिसे आम भाषा में पागल कहते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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