हिंदू धर्म में भगवान गणेश की उपासना प्रथम देवता के रूप में की जाती है। शिव पुराण और गणेश पुराण में भगवान गणेश को समर्पित कई कथाओं का वर्णन मिलता है। इन्हीं में से एक कथा गजानन और चंद्र देव से जुड़ी है। यह कथा उस समय की है जब भगवान गणेश ने चंद्र देव के घमंड को तोड़ा था।
जब गणेश जी ने दिया चंद्र देव को श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कैलाश में देवताओं की सभा चल रही थी, जिसमें ब्रह्मा जी के साथ-साथ ऋषि-मुनि भी उपस्थित थे। इस सभा में भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय भी शामिल थे। भगवान गणेश और कार्तिकेय अन्य बालकों के साथ खेल रहे थे।
इस दौरान भगवान शिव के हाथ में एक दिव्य फल था। वह यह सोच रहे थे कि यह फल अपने किस पुत्र को दें। कुछ समय बाद, दोनों बालकों ने भगवान शिव से वह फल मांगा। दोनों इस फल को पूरा-पूरा पाना चाहते थे। तब भगवान शिव ने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन मांगा।
यह भी पढ़ें: इंद्र और विष्णु संवाद: जब अहंकार और विनम्रता का हुआ था आमना-सामना
ब्रह्मा जी ने कहा कि नियम के अनुसार, फल कार्तिकेय जी को ही देना चाहिए क्योंकि किसी भी वस्तु पर सबसे पहले बड़े का अधिकार होता है।
यह सुनकर भगवान शिव ने वह दिव्य फल कार्तिकेय को दे दिया। लेकिन इससे भगवान गणेश ब्रह्मा जी पर क्रोधित हो गए। जब सभा समाप्त हो गई और सभी देवता अपने-अपने स्थान लौट गए, तब ब्रह्मलोक में भगवान गणेश उग्र रूप में पहुंचे। गणेश जी का यह रूप देखकर सभी भयभीत हो गए।
चंद्र देव इस पूरी घटना को देख रहे थे और उसी समय उन्हें हंसी आ गई। भगवान गणेश का क्रोध अब चंद्र देव की ओर स्थानांतरित हो गया और उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया, 'चंद्र देव! तुमने इस समय मेरी हंसी उड़ाई है, अतः इसका फल तुम्हें अवश्य मिलेगा। अब से तुम किसी को भी देखने योग्य नहीं रहोगे और जो कोई भी तुम्हें देखेगा, वह पाप का भागी होगा।'
इस श्राप को मिलते ही चंद्रमा का सौंदर्य क्षीण हो गया और वे देखने योग्य नहीं रह गए। वह जिस भी देवता के पास जाते, सब पाप लगने के भय से अपनी दृष्टि नीची कर लेते। अंत में देवराज इंद्र ने ब्रह्मा जी से उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने सुझाव दिया कि चंद्र देव को भगवान गणेश की उपासना करनी चाहिए।
चंद्र देव की उपासना से प्रसन्न हुए विघ्नहर्ता
इसके बाद चंद्र देव ने विधिपूर्वक भगवान गणेश की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गजानन प्रकट हुए और बोले, 'वर मांगो, चंद्रमा!' चंद्र देव ने कहा, 'मुझे अपनी गलती का पूरा एहसास हो गया है। कृपया आप अपने श्राप से मुझे पूर्ण रूप से मुक्त करें।'
यह भी पढ़ें: जब रावण की भरी सभा में हनुमान जी ने दिया था सुशासन का ज्ञान
तब भगवान गणेश बोले, 'मैं तुम्हें पूरी तरह से श्राप से मुक्त नहीं कर सकता, लेकिन इसे कुछ हद तक कम कर सकता हूं। वर्ष में एक दिन, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर, इस श्राप का प्रभाव रहेगा। उस दिन जो कोई तुम्हें देखेगा, उस पर कलंक या बदनामी का संकट आ सकता है।'
इसी कारण से आज भी गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि उस दिन चंद्र दर्शन से झूठे आरोप या बदनामी झेलनी पड़ सकती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी रामायण कथा और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।