भगवान नरसिंह हिन्दू धर्म में विष्णु के चौथे अवतार माने जाते हैं। वे आधे सिंह और आधे मानव के रूप में प्रकट हुए थे। नरसिंह अवतार का उद्देश्य अधर्मी राजा हिरण्यकश्यप का वध करके धर्म की स्थापना करना था। भारत के अलावा भगवान नरसिंह की पूजा अन्य देशों में भी अलग-अलग नामों और रूपों में होती रही है। आइए जानते हैं कि किन देशों में नरसिंह की उपासना कैसे होती है और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं क्या हैं।
भारत में भगवान नरसिंह
भारत में भगवान नरसिंह को भगवान विष्णु के उग्र रूप में जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक राक्षस ने कठोर तप करके ब्रह्मा जी से वरदान लिया था कि वह न किसी मनुष्य से मरेगा, न किसी पशु से; न दिन में, न रात में; न धरती पर, न आकाश में। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, जिससे वह क्रोधित था। जब उसने प्रह्लाद को मारना चाहा, तब भगवान विष्णु एक विशेष रूप में- आधा सिंह, आधा मानव — प्रकट हुए और शाम के समय, दहलीज पर, अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध किया। यह कहानी धर्म पर आस्था और अधर्म के अंत की प्रतीक बन गई।
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नेपाल में नरसिंह की पूजा
नेपाल में भगवान नरसिंह को 'नरसिंहा' कहा जाता है। काठमांडू के कई मंदिरों में उनकी मूर्तियां स्थापित हैं। वहां नरसिंह को रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों की रक्षा करते हैं और बुरी शक्तियों को नष्ट करते हैं। नेपाल में यह भी माना जाता है कि नरसिंह अवतार आत्मिक और भौतिक संकट से मुक्ति दिलाता है।
इंडोनेशिया में नरसिंह
इंडोनेशिया, खासकर बाली में, भगवान नरसिंह को 'Narasimha' के रूप में पूजा जाता है। यहां हिन्दू धर्म का गहरा प्रभाव है और कई मंदिरों में विष्णु के अवतारों की मूर्तियां मिलती हैं। नरसिंह को यहां धर्म के रक्षक और अन्याय के नाशक के रूप में माना जाता है। इंडोनेशियाई कला और शास्त्रीय नाटकों में नरसिंह अवतार की कथाएं चित्रित की जाती हैं।
थाईलैंड में नरसिंह का प्रभाव
थाईलैंड में हिन्दू देवी-देवताओं का प्रभाव बौद्ध धर्म में घुला-मिला हुआ है। नरसिंह को यहां 'Phra Narai Song Suban' (भगवान विष्णु का अवतार) के रूप में जाना जाता है। थाई संस्कृति में वे धर्म और न्याय के प्रतीक माने जाते हैं। हालांकि यहां उनकी पूजा भारत जैसी नहीं है, पर राजसी चिन्हों और कला में उनका प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
कंबोडिया में नरसिंह
कंबोडिया के प्रसिद्ध अंगकोरवाट मंदिर में भगवान विष्णु और उनके अवतारों की मूर्तियों में नरसिंह भी प्रमुखता से मौजूद हैं। यहां की दीवारों पर उकेरी गई चित्रकथाओं में नरसिंह का हिरण्यकश्यप वध प्रसंग बड़ी सुंदरता से चित्रित किया गया है। कंबोडियन हिन्दू परंपरा में नरसिंह शक्ति, विजय और सत्य के प्रतीक हैं।
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तिब्बत और चीन में नरसिंह प्रभाव
हालांकि तिब्बत और चीन में हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा सीमित है लेकिन बौद्ध तांत्रिक परंपरा में नरसिंह के समान रूप वाले देवता को 'सिंहमुख' या 'सिंहनाद' कहा जाता है। यह रूप ज्ञान, शक्ति और निडरता का प्रतीक माना जाता है। वहां यह विश्वास है कि यह शक्ति बुराई को परास्त करने में समर्थ होती है।
नरसिंह अवतार का सांस्कृतिक महत्व
भगवान नरसिंह का रूप केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह संदेश देता है कि जब अधर्म बढ़ता है, तब ईश्वर किसी भी रूप में आकर धर्म की रक्षा करते हैं। यह विचार भारत से बाहर कई देशों में भी स्वीकार किया गया और विभिन्न संस्कृतियों में नरसिंह के समान रूपों को अपनाया गया।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।