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कर्म और भाग्य में कौन श्रेष्ठ? नारद और विष्णु संवाद से समझिए

भगवान विष्णु और नारद मुनि में कई संवादों को धर्म-ग्रंथों को विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं इस संवाद को विस्तार से।

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भगवान विष्णु और नारद मुनि।(Photo Credit: AI Image)

नारद जी भगवान विष्णु के परम भक्तों में गिना जाता है। धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु और नारद जी कई संवादों को विस्तार से वर्णित किया गया है। इनमें भगवान विष्णु, नारद जी को विभिन्न विषयों का ज्ञान देते हुए नजर आते हैं। ऐसी ही कथा में एक बार नारद मुनि स्वर्गलोक से वैकुण्ठ में भगवान विष्णु से मिलने पहुंचे। वंदन के बाद उन्होंने मुस्कराते हुए भगवान से पूछा:

 

नारद जी: 'प्रभु! मुझे एक शंका है — क्या मनुष्य की सफलता उसके कर्मों से तय होती है या भाग्य से? कई लोग तो दिन-रात मेहनत करते हैं लेकिन उन्हें फल नहीं मिलता, जबकि कुछ लोग बिना प्रयास के सब कुछ पा लेते हैं। इसका कारण क्या है?'

 

भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले: 'नारद, तुम्हारा प्रश्न बड़ा गूढ़ है, पर इसका उत्तर तुम्हें एक अनुभव से मिलेगा, केवल शब्दों से नहीं।'

 

नारद: 'प्रभु, जैसा आप आदेश दें।'

कथा के माध्यम से उत्तर:

भगवान विष्णु ने नारद को पृथ्वी पर एक साधारण से किसान के घर भेजा। उसका नाम था धनराज। विष्णु ने कहा, 

 

'जाओ, और इस किसान के जीवन को कुछ दिन देखो।'

 

नारद जी पृथ्वी पर आए और किसान धनराज के घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि वह एक गरीब लेकिन ईमानदार व्यक्ति है। वह रोज़ सुबह उठकर खेतों में मेहनत करता, दिन भर पसीना बहाता, और रात को भगवान का नाम लेकर भोजन करता और सो जाता। तीन दिन बीत गए। नारद जी वैकुण्ठ लौटे और बोले:

 

नारद मुनि: 'प्रभु! धनराज तो बहुत परिश्रम करता है, पर उसकी हालत वैसी ही है। तो क्या उसका भाग्य ही ऐसा है?'

 

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भगवान विष्णु: 'अब एक और स्थान चलो। एक राजा है वीरसेन, उसके पास सब कुछ है — धन, वैभव, ऐश्वर्य। देखो कि वह कैसे जीता है।'


नारद जी राजा वीरसेन के महल पहुंचे। उन्होंने देखा कि राजा विलासिता में जीवन जी रहा है, दूसरों के श्रम पर ऐश कर रहा है, परंतु धर्म और सेवा से दूर है।

 

जब नारद जी लौटे, तो विष्णु बोले, 'चलो, अब मैं तुम्हें दोनों का भविष्य दिखाता हूं।'

 

विष्णु जी ने नारद जी को एक दिव्य दृष्टि दी। उन्होंने देखा कि धनराज किसान अगले जन्म में एक समृद्ध राजा बनेगा, जबकि राजा वीरसेन को अगले जन्म में एक गरीब जीवन मिलेगा।

नारद आश्चर्यचकित हो गए।

 

नारद: 'प्रभु, ये कैसे संभव हुआ?'

 

भगवान विष्णु: 'नारद, यही तो उत्तर है तुम्हारे प्रश्न का। वर्तमान जीवन में जो कर्म हम करते हैं, वही हमारा भविष्य निर्धारित करते हैं। भाग्य भी पूर्वजन्म के कर्मों से बनता है। जो आज मेहनत करता है, ईमानदारी से जीता है, वह कल उसका फल अवश्य पाएगा। और जो केवल भाग्य पर भरोसा कर आलस्य करता है, उसका पतन निश्चित है।'

 

भगवान विष्णु: 'कर्म ही सच्चा भाग्य है, नारद। जैसे बीज बोओगे, वैसे ही फल पाओगे। इसलिए मनुष्य को सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए, क्योंकि वही भविष्य का भाग्य बनाते हैं।'

 

नारद जी ने सिर झुका कर कहा: 'प्रभु, अब मुझे समझ आ गया कि कर्म ही सब कुछ है। अब मैं इसे सबको बताऊंगा।'

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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