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भागवत पुराण में है कलियुग का पूरा वर्णन, क्या सच हो रही हैं ये बातें

श्रीमद्भावत महापुराण में कलियुग के विषेय में विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जो कर रही हैं कलियुग की भविष्यवाणी।

Bhagwat Puran Kalyug in Prediction

भगवत महापुराण में कलयुग का वर्णन। (Pic Credit: Freepik)

हिन्दू धर्म ग्रंथों में सभी चार युगों के विषय में विस्तार से बताया गया है। मनुस्मृति, महाभारत और पुराणों में चार युग- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के महत्व और उनमें हुई दैवीय लीलाओं के विषय में विस्तार से बताया गया है। इन्हीं में से एक है कलियुग। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, वर्तमान समय में कलियुग चल रहा है और अब तक इसके 5000 से अधिक वर्ष पूरे हो चुके हैं। 

 

महाभारत में एक श्लोक का वर्णन मिलता है कि ‘कलि: शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:। उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृत: सम्पद्यते चरन्।।’ इस श्लोक का अर्थ है कि कलियुग सोने के समान निष्क्रिय होता है, द्वापर अंगड़ाई लेने जैसा, त्रेता उठने जैसा, और सतयुग चलने जैसा है। अर्थात कलियुग में नींद की भांति अंधकार अपने चरम पर होगा है। कलियुग से जुड़ी भविष्यवाणी श्रीमद्भागवतपुराण में विस्तार से वर्णित है। 

 

बता दें कि श्रीमद्भागवतपुराण की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी, जब वह महाभारत और अन्य पुराणों को लिखने के बाद असंतुष्ट थे। तब नारद मुनि ने उन्हें श्रीमद्भागवतपुराण लिखने का सुझाव दिया, जिसमें उन्होंने कृष्ण की लीलाओं और उनके संदेश को प्रमुख स्थान दिया। आइए जानते हैं कि कलियुग के विषय में इस श्रीमद्भागवत महापुराण के 12वें स्कन्द के 2 अध्याय में क्या-क्या भविष्यवाणी की गई हैं।

कैसा होगा कलियुग?

ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन् नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥
वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥

 

अर्थात- हे राजन, समय बीतने के साथ जीवन, शक्ति और स्मृति कम हो जायेगी। कलियुग में धन ही जन्म, आचरण और सदाचार का स्रोत है। बल ही धर्म एवं न्याय व्यवस्था का कारण है। इस दुअरना धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप हो जाएगा। जिसके पर्याप्त मात्रा में होगा, उसी को लोग कुलीन, सदाचारी और सद्गुणी मानेंगे और जिसके हाथ में शक्ति होगी, वह धर्म और न्याय व्यवस्था को अपने अनुसार बदल सकेगा।

 

दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतुः मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥
लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वचः ॥

 

अर्थात- व्यवहार में विवाह के प्रति आकर्षण के कारण भ्रम है। साथ ही एक स्त्री और एक पुरुष के प्रति आकर्षण एक ब्राह्मण के लिए धागे के समान है। कलियुग में विवाह-संबंध इत्यादि के लिए कुल, शील या योग्यता आदि की परख नहीं की जाएगी। विवाह के पूर्व ही एक स्त्री और एक पुरुष के प्रति आकर्षण बढ़ता रहेगा। वहीं ब्राह्मण की पहचान उनके गुण या स्वभाव से नहीं बल्कि उनके यज्ञोपवीत से हुआ करेगी।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता.

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