भारत में ज्योतिष विद्या का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। इसे वेदों की 'आंख' कहा गया है क्योंकि इसे समय, ग्रह-नक्षत्र और भविष्य का मार्ग बताने वाली विद्या के रूप में माना जाता है। इसका सबसे प्राचीन उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद में मिलता है। वेदों को समझने के लिए छह वेदांग बताए गए हैं, जिनमें ‘ज्योतिष वेदांग’ का काम यज्ञ-हवन और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए सही समय तय करना था।
पुराणों में भी ज्योतिष का उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में ग्रह-नक्षत्र और युगों का वर्णन, भागवत पुराण में खगोल विज्ञान और समय की गणना, नारद पुराण में शुभ-अशुभ मुहूर्त, गरुड़ पुराण में ग्रह दोष और उनके निवारण के उपाय और लिंग पुराण में नक्षत्र-राशियों का विवरण दिया गया है। इन ग्रंथों ने ज्योतिष को धार्मिक आस्था और दैनिक जीवन में गहराई से स्थापित किया है।
भारत में ज्योतिष का इतिहास
वैदिक काल और प्रारंभिक विकास:
मान्यताओं के अनुसार, ज्योतिष की शुरुआत वेदों के यज्ञ-हवन के समय और मुहूर्त तय करने की आवश्यकता से हुई थी। ऋषियों ने सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्रों और ग्रहों की गति को देखकर समय, ऋतु और शुभ-अशुभ कार्यों का निर्धारण किया था। वेदांग ज्योतिष के रचयिता के रूप में पराशर, गर्ग, और भृगु ऋषि का नाम प्रमुख है।
पुराणों और ग्रंथों में उल्लेख:
महाभारत, रामायण और विभिन्न पुराणों, जैसे विष्णु पुराण, गरुड़ पुराण, नारद पुराण और भागवत पुराण में ग्रह-नक्षत्रों और उनके प्रभाव का वर्णन मिलता है। बृहज्जातक (वराहमिहिर), बृहत संहिता और होरा शास्त्र जैसे ग्रंथों ने ज्योतिष को व्यवस्थित रूप दिया है।
मध्यकाल और आधुनिक काल:
मध्यकाल में ज्योतिष ने खगोल विज्ञान और गणित से गहरा संबंध बना लिया था। विक्रमादित्य काल के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने ज्योतिष और खगोल विज्ञान को नए आयाम दिए थे। आधुनिक काल में भी ज्योतिष भारतीय समाज में विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, यात्रा, और धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह भी पढ़े: जन्म, महाभारत, मोक्ष: कृष्ण के जीवन की बड़ी घटनाएं कहां-कहां हुईं?
किन ग्रंथों में चर्चा है
भारत में ज्योतिष विद्या के कई महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं, जिनमें से प्रमुख हैं:
वेदांग ज्योतिष – लग्न, तिथि, नक्षत्र, सूर्य-चंद्र की गति का वर्णन इस ग्रथ में किया गया है।
बृहत्संहिता (वराहमिहिर) – ग्रहों के प्रभाव, वर्षा, कृषि, वास्तु और शुभाशुभ योग का ज्ञान की चर्चा की गई है।
बृहतजातक – इसका इस्तेमाल कुंडली बनाने और फलित ज्योतिष के आधार के रूप में किया जाता है।
सूर्य सिद्धांत – इसमें खगोल गणना, ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि की जानकारी मिलती है।
लघु पाराशरी / बृहत पाराशर होरा शास्त्र – इसे फलित ज्योतिष का आधार माना जाता है, जिसे महर्षि पाराशर ने लिखा।
जैमिनि ज्योतिष – महर्षि जैमिनि ने लिखा है, इसे विशेषकर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की भविष्यवाणी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
यह भी पढ़े: उडुपी मठ: जहां नौ छेदों वाली खिड़की के पार से दर्शन देते हैं कृष्ण
वैदिक ज्योतिष और तांत्रिक (तंत्र) ज्योतिष में अंतर
अंतर |
वैदिक ज्योतिष |
तांत्रिक ज्योतिष |
मुख्य उद्देश्य |
वेद, वेदांग, पुराण और शुद्ध खगोल गणना |
तंत्र शास्त्र, मंत्र, यंत्र और रहस्यमयी साधनाएं |
उपयोग |
कुंडली निर्माण, दशा-अंतर्दशा, गोचर फल |
तांत्रिक अनुष्ठान, यंत्र-पूजा, विशेष मंत्र-जाप |
मुख्य साधन |
गणितीय सूत्र, पंचांग, खगोलीय डेटा |
विशेष यंत्र, रत्न, तांत्रिक मंडल, बलिदान (कुछ परंपराओं में) |
स्वरूप |
अधिक वैज्ञानिक और गणनात्मक |
अधिक रहस्यात्मक और आध्यात्मिक/गूढ़ |
उपचार पद्धति |
दान, व्रत, जप, यज्ञ |
तांत्रिक विधि, मंत्र-तंत्र और यंत्र की स्थापना |