बिरसा मुंडा का जीवन और उनके संघर्ष से जुड़ी कथाएं विशेष रूप से आदिवासी जनजाति समाज में सुनी और पढ़ी जाती है। 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान आदिवासी जनजातियों की भूमि पर कब्जा और धर्मांतरण के खिलाफ उनके संघर्ष की चर्चा आज भी की जाती है। बता दें कि झारखंड व देश के अन्य राज्यों में बिरसा मुंडा के अनुयायियों द्वारा एक विशेष धर्म का पालन जाता है। बिरसा मुंडा के अनुयायी 'बिरसाइत धर्म' को मानते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य उनके आदिवासी समुदायों को सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से पुनर्जागरण की दिशा में प्रेरित करना था।
कब और कैसे हुई थी बिरसाइत धर्म की उत्पत्ति
वर्ष 1875 में झारखंड के उलीहातू गांव में जन्में बिरसा मुंडा, मुंडा जनजाति से संबंध रखते थे, जो भारत के झारखंड, ओडिशा, बिहार और पश्चिम बंगाल के विभिन्न इलाकों में निवास करती थी। 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान आदिवासी जनजातियों की भूमि पर कब्जा किया और जमींदारों ने उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। आदिवासी समाज को धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों का सामना करना पड़ा, जिनमें ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण और जमींदारों द्वारा शोषण शामिल थे।
जब बिरसा मुंडा को यह आभास हुआ कि आदिवासी समाज की पहचान और संस्कृति खतरे में है, तब उन्होंने सभी को संगठित किया और उन्हें अपने पारंपरिक धर्म और संस्कारों की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही, उन्होंने एक नए धार्मिक आंदोलन की नींव रखी, जिसे बाद में बिरसाइत धर्म के रूप में जाना गया।
बिरसाइत धर्म के प्रमुख सिद्धांत
- आदिवासी समाज सदियों से प्रकृति को देवता के रूप में पूजते आ रहे हैं, और बिरसा मुंडा ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। इसलिए बिरसाइत धर्म में प्रकृति का विशेष स्थान है। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि वे वृक्ष, जल, भूमि और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करें और उनकी पूजा करें। प्रकृति और भूमि को संरक्षित करना बिरसाइत धर्म का मुख्य उद्देश्य है।
- बिरसा मुंडा ने बिरसाइत धर्म के माध्यम से मुख्य रूप से सामाजिक सुधार को बढ़ावा दिया। उन्होंने आदिवासी समाज को शराब, अंधविश्वास, और सामाजिक कुरीतियों से दूर रहने के लिए कहा। इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें बाहरी शोषण से बचाना था।
- ब्रिटिश शासन के दौरान, ईसाई मिशनरियों ने धर्मांतरण को तेजी से बढ़ाया तब, बिरसाइत धर्म ने आदिवासी समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को पुनर्जीवित किया था। बिरसा मुंडा ने अपने अनुयायियों से कहा कि वे अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक धरोहर को पुनः अपनाएं।
- बिरसा मुंडा का प्रभाव उनके जीवनकाल से आगे भी रहा। उन्होंने न केवल आदिवासी समाज के सामाजिक और धार्मिक जागरण में योगदान दिया, बल्कि एक ऐसी पहचान स्थापित की जो आज भी आदिवासी समाज में महत्वपूर्ण है। बिरसाइत धर्म आज भी झारखंड और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में बिरसा मुंडा के अनुयायियों द्वारा मान्यता प्राप्त है।