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चरणामृत और पंचामृत को एक समझने की न करें गलती, जानें अंतर और नियम

पूजा-पाथ चरणामृत या पंचामृत प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। हालांकि, यह दोनों एक-दूसरे से भिन्न और अलग हैं। आइए जानते हैं, क्या है इनमें अंतर और महत्व।

Image of Charnamrit in front of god

भगवान के सामने रखा गया चरणामृत। (Pic Credit: Creative Image)

हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की उपासना के दौरान विभिन्न प्रकार के नियम और परंपराओं का पालन किया जाता है। इनमें अधिकांश परंपराएं प्राचीन काल से चली आ रही हैं। इन्हीं में से एक है पंचामृत या चरणामृत तैयार करने की परंपरा। अधिकांश लोग चरणामृत और पंचामृत को एक समझते हैं, जो की गलत धारणा है। दोनों के अपने अलग महत्व और नियम हैं। जानते हैं, क्या है चरणामृत और पंचामृत में अंतर और इनका महत्व?

क्या है चरणामृत?

चरणामृत का शाब्दिक अर्थ है ‘भगवान के चरणों का अमृत’। यह पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति या विग्रह को स्नान कराने के बाद प्राप्त हुए चरणों के जल को कहा जाता है। चरणामृत को आमतौर पर दूध, जल, तुलसी के पत्ते और कभी-कभी शहद से तैयार किया जाता है। इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। चरणामृत भगवान के प्रति श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है और इसे ग्रहण करने से पवित्रता और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

क्या है पंचामृत?

पंचामृत का अर्थ है ‘पांच अमृत’ और इसे पवित्र द्रव्य को पांच पवित्र सामग्रियों- दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से तैयार किया जाता है। यह विशेष रूप से भगवान के अभिषेक और पूजा के लिए तैयार किया जाता है। पंचामृत को अमृत के समान माना जाता है और इसे ग्रहण करने से शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि होती है। जब भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है तो उसमें अधिकांशतः पंचामृत का प्रयोग किया जाता है।

चरणामृत और पंचामृत का क्या है महत्व?

चरणामृत को ग्रहण करने से व्यक्ति का मन शुद्ध होता है और यह आस्था और भक्ति को बढ़ाने का माध्यम बनता है। माना जाता है कि इसे ग्रहण करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। वहीं पंचामृत शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और मानसिक ताप को दूर रखता है। इसके साथ आयुर्वेद शास्त्र में यह बताया गया है कि इसे ग्रहण करने से पाचन तंत्र मजबूत होता है और यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इससे व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

चरणामृत और पंचामृत के क्या हैं नियम

चरणामृत को जल, तुलसी पत्र और चंदन से तैयार किया जाता है। इसकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए और भक्तों को श्रद्धा के साथ वितरित किया जाता है। इसके साथ । इसे भगवान को अर्पित करने के बाद भक्तों को प्रसाद स्वरूप दिया जाता है।

 

पंचामृत तैयार करते समय सामग्रियों को साफ बर्तनों में रखा जाना चाहिए, और इसे बनाते समय पूरी पवित्रता और भक्ति रखनी चाहिए। मान्यता है कि चरणामृत अथवा पंचामृत का सेवन करने से तन व मन शुद्ध होता है और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ इन दोनों पवित्र द्रव्य को ग्रहण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ये जमीन पर ना गिरे। इससे इसका अपमान होता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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