दुनियाभर में 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन ईसाई धर्म के लोग धूमधाम से क्रिसमस का उत्सव मनाते हैं। हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर चर्च में प्रार्थना की जाती है और एक विशेष प्रकार का भोग अर्पित किया जाता है। बता दें कि क्रिसमस के दिन चर्च में शराब चढ़ाई जाती है।
ईसाई धर्म में शराब चढ़ाने की परंपरा का गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यह परंपरा बाइबल में बताई गई घटनाओं से जुड़ी हुई है। ईसाई धर्म में शराब को 'पवित्र रक्त' का प्रतीक माना जाता है, जो प्रभु यीशु मसीह के बलिदान को दर्शाता है।
इतिहास और परंपरा का महत्व
ईसा मसीह ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में 'अंतिम भोज' (Last Supper) के दौरान अपने शिष्यों को रोटी और शराब दी थी। उन्होंने रोटी को अपने शरीर और शराब को अपने रक्त का प्रतीक बताया था। इस घटना के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि उनका बलिदान मानवता के पापों को माफ करने के लिए होगा। तब से यह परंपरा ईसाई धर्म में प्रचलित हो गई कि चर्च में शराब को मसीह के बलिदान का प्रतीक मानकर चढ़ाया और ग्रहण किया जाता है।
क्रिसमस पर विशेष रूप से शराब चढ़ाने का कारण
क्रिसमस प्रभु यीशु के जन्म का उत्सव है। इस दिन चर्च में विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं। प्रार्थना के दौरान शराब को प्रभु यीशु के बलिदान की याद में चढ़ाया जाता है। इसे 'यूखारिस्ट' (Eucharist) या 'पवित्र भोज' की परंपरा कहा जाता है। इसमें रोटी और शराब को प्रतीकात्मक रूप से यीशु के शरीर और रक्त के रूप में चढ़ाया जाता है।
क्या है इसका धार्मिक महत्व?
ईसाई धर्म के अनुयायियों का मानना है कि इस पवित्र परंपरा का पालन करने से उन्हें मसीह के बलिदान और उनके द्वारा दिए गए प्रेम और करुणा के संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा मिलती है। शराब को पवित्रता, बलिदान और आत्मसमर्पण का प्रतीक मानते हुए इसे ग्रहण किया जाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।