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विज्ञान और अध्यात्म से है ‘स्वाहा’ का खास संबंध, जानें कारण और महत्व

हिंदू धर्म में हवन के दौरान स्वाहा शब्द का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। आइए जानते हैं, क्या है इसके पीछे छिपा कारण और महत्व।

AI Image of Havan by Sadhu Sant

हवन करते हुए साधु - संतों का प्रतीकात्मक चित्र। (Pic Credit: AI)

भगवान की उपासना में और पूजा-पाठ के दौरान विभिन्न परंपराओं का पालन किया जाता है। इनमें से कुछ ऐसी परंपराएं हैं, जिनका प्रचलन पौराणिक काल से चला आ रहा है। इनमें से एक है हवन की परंपरा, जो घर में 2-3 माह के अंतराल पर होता रहता है। हवन या यज्ञ वह अनुष्ठान है, जिसमें अग्नि को साक्षी रखकर देवताओं का आह्वाहन किया जाता है और आहुति प्रदान की जाती है।

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस स्थान पर हवन होता है, वहां देवी-देवताओं का आशीर्वाद बना रहता है। हवन की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है, जिसमें साधु-संत देवताओं को प्रसन्न करने के लिए और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए हवन या यज्ञ का आयोजन करते थे। हवन के दौरान मंत्रोच्चारण के साथ-साथ एक शब्द का प्रयोग आपने कई बार सुना होगा। वह शब्द है ‘स्वाहा’, जिसके बिना हवन में दी गई आहुति अधूरी मानी जाती है। लेकिन कभी सोचा है कि 'स्वाहा' बोलना इतना आवश्यक क्यों होता है। तो आइए जानते हैं-

हवन में क्यों बोला जाता है स्वाहा?

पौराणिक कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष की पुत्री का नाम स्वाहा था, जिनका विवाह अग्नि देव से हुआ था। इसलिए यह मान्यता है कि जब भी अग्नि में कोई चीज आहुति के रूप में समर्पित की जाती है, तब उस समय उनकी पत्नी का भी ध्यान किया जाता है। इसी से अग्नि देव सामग्री स्वीकार करते हैं।

 

एक कथा में इसका भी वर्णन मिलता है कि स्वाहा का जन्म प्रकृति के एक कला के रूप में हुआ। तब भगवान श्री कृष्ण ने स्वाहा को यह वरदान दिया कि देवता आहुति तभी स्वीकार करेंगे, जब उनके नाम का उच्चारण किया जाएगा। इसलिए हवन के दौरान स्वाहा को बहुत ही स्पष्ट और ऊंचा कहना चाहिए।

विज्ञान के दृष्टिकोण से स्वाहा का महत्व

हवन में ‘स्वाहा’ के उच्चारण का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। जब आहुति दी जाती है, तो हवन सामग्री अग्नि के संपर्क में आने पर विभिन्न औषधीय गुणों को वायुमंडल में फैलाती है। ‘स्वाहा’ का उच्चारण एक विशेष ध्वनि ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो वायुमंडल को शुद्ध करने और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने में सहायता मिलती है। वैदिक शास्त्र, जैसे कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद, यज्ञ और हवन की महत्ता को स्पष्ट करते हैं, जिसमें ‘स्वाहा’ का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद शास्त्र में हवन सामग्री जैसे घी, गुग्गुल, नीम, तुलसी, और अन्य औषधियों के दहन से होने वाले लाभों का वर्णन मिलता है। इनसे उत्पन्न धुएं में कीटाणुनाशक गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य और वातावरण के लिए बहुत लाभकारी हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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